चुनाव और जाति का रिश्ता हमारे लोकतंत्र का एक अखिल भारतीय ‘गुण’ है, लेकिन राजनैतिक मामलों में अगुआ माने जाने वाले बिहार को इस मामले में बाकी मुल्क़ से चार कदम आगे माना जाता है। पर जो लोग दो और दो चार के हिसाब से जातियों के आँकड़े और उम्मीदवारों की जाति तथा पार्टियों-नेताओं के साथ जातीय गोलबन्दियों का हिसाब किताब लगाने पहुँच रहे हैं, बिहार उनको निराश कर रहा है।
बिहार : तो क्या इस बार जाति और धर्म पर वोट नहीं पड़ेगा?
- बिहार
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- 25 Oct, 2020

जिस प्रदेश का सारा हिसाब जाति पर चलता माना जाता रहा हो, जहाँ बालाकोट मसले ने 40 में से 39 सीटें मोदी जी की झोली में डाल दी हों, वहां का यह चुनाव हैरानी पैदा कर रहा है। पर यह हैरानी बाहर बैठे राजनैतिक पंडितों, चुनावी रणनीतिकारों और जाति-सम्प्रदाय की राजनीति करने वालों को ही है। बिहार चुनाव में जो प्रभावी खिलाडी हैं, वे खुश हो रहे हैं कि उन्होंने जो बातें उठाई हैं, वे लोगों को पसन्द आ रही हैँ, उन पर चर्चा हो रही है और उसी पर मतदान होने की उम्मीद है।