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बिहार के बीजेपी नेताओं के सियासी अरमानों पर शाह ने फेरा पानी

लोकसभा चुनाव के बाद से ही बिहार बीजेपी में कुछ नेताओं की सियासी महत्वाकांक्षाएँ बढ़ गई थीं और वे ख़ुद को राज्य के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर देख रहे थे। लेकिन उनके सियासी अरमानों पर पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने पानी फेर दिया है। अमित शाह ने न्यूज़ 18 के साथ इंटरव्यू में कहा है कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही विधानसभा का चुनाव लड़ा जाएगा। बिहार में नवंबर, 2020 के आसपास विधानसभा चुनाव होने हैं। 

सीएम की कुर्सी पर थी नज़र!

बिहार में बीजेपी और जेडीयू मिलकर सरकार चला रहे हैं। मुख्यमंत्री का पद जेडीयू के पास है जबकि उप मुख्यमंत्री का पद बीजेपी के पास। लोकसभा चुनाव तक सब ठीक था और गठबंधन सरकार ठीक चल रही थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिलने के बाद से ही बिहार में बीजेपी के कुछ नेताओं ने यह राग अलापना शुरू कर दिया था कि बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी उनकी पार्टी के पास होनी चाहिए। 

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बिहार की राजनीति में गिरिराज सिंह, सीपी ठाकुर, संजय पासवान और कुछ अन्य क्षेत्रीय नेता नीतीश के ख़िलाफ़ हैं और उन्हें यह लगता है कि बीजेपी अब अकेले बहुमत पाने की स्थिति में आ चुकी है। संजय पासवान तो नीतीश को केंद्र की राजनीति करने की सलाह भी दे चुके हैं।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कुछ दिन पहले बाढ़ से निपट पाने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए नीतीश कुमार पर हमला बोला था। गिरिराज सिंह ने कहा था, ‘ताली सरदार को मिलेगी तो गाली भी सरदार को मिलेगी।’ इस पर जेडीयू की ओर से भी तीख़ी प्रतिक्रिया जताई गई थी।
ऐसे नेता पार्टी आलाकमान तक यह बात पहुंचाने की कोशिश में थे कि बीजेपी अब अकेले दम पर ही लड़कर राज्य में सरकार बना सकती है तो उसे जेडीयू के साथ की क्या ज़रूरत है। उनका यह भी कहना था कि अगर जेडीयू का साथ चाहिए भी तो वह छोटे भाई की भूमिका में रहे यानी सीएम की कुर्सी का दावा छोड़ दे। इसे लेकर इन नेताओं ने बीते कुछ दिनों में नीतीश कुमार को निशाने पर रखा था लेकिन अमित शाह के बयान के बाद ऐसा लगता है कि इनके सियासी मंसूबों पर पानी फिर गया है।
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इस बार दशहरे के मौक़े पर पटना के गाँधी मैदान में आयोजित दशहरा मेले से बीजेपी के नेताओं के दूरी बनाये रखने के बाद भी दोनों दलों के नेताओं के बीच दूरियां दिखाई दी थीं। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा हुई थी कि बीजेपी के नेताओं के ऐसा करने के पीछे ज़रूर कोई बड़ी वजह है। 
बीजेपी के नीतीश विरोधी गुट के नेताओं की इन  कोशिशों को इस बात से हवा मिली थी जब बिहार के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने अंग्रेजी अख़बार ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ के साथ बातचीत में कहा था कि मुख्यमंत्री पद के चेहरे के बारे में फ़ैसला बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व और संसदीय बोर्ड करेगा। 

समर्थन में खड़े रहे सुशील मोदी

लेकिन जब-जब बीजेपी के नीतीश विरोधी नेताओं ने उनके ख़िलाफ़ बयान दिये, बिहार सरकार में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी खुलकर नीतीश कुमार के समर्थन में खड़े रहे। इसे लेकर भी काफ़ी दिनों तक असमंजस की स्थिति बनी रही। सुशील मोदी ने एक बार ट्वीट किया था, ‘नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के कैप्टन हैं और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी वही कैप्टन रहेंगे और जब कैप्टन चौके और छक्के लगा रहा हो और विरोधियों की पारी से हार हो रही हो तो किसी भी प्रकार के बदलाव का सवाल ही कहां उठता है?’ हालांकि बाद में उन्होंने इस ट्वीट को डिलीट कर दिया था और तब भी इसे लेकर कई तरह की चर्चाएं हुई थीं। सुशील मोदी ने यह भी कहा था कि जीतने वाले कप्तान को बदलने की क्या ज़रूरत है।

बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों में पिछले कुछ महीनों में खटास बढ़ने के बाद यह आशंका जताई जा रही थी कि दोनों दलों का गठबंधन टूट सकता है।

शाह बोले, अटल है गठबंधन 

इंटरव्यू के दौरान गठबंधन की स्थिरता को लेकर सवाल पूछे जाने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बीजेपी-जेडीयू का गठबंधन अटल है और राज्य में दोनों दल आगामी विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे। शाह ने कहा, ‘हम लोग नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे।’ शाह ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर दोनों पार्टियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में काम कर रही हैं और राज्य में हम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में काम करेंगे। 

दोनों दलों के बीच मतभेदों के बारे में पूछे जाने पर शाह ने कहा कि गठबंधन में इस तरह के मतभेद होते रहते हैं और इसे स्वस्थ गठबंधन की निशानी माना जाना चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा, ‘मतभेद मनभेद में नहीं बदलने चाहिए।’ 

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मंत्रिमंडल विस्तार में उभरे थे मतभेद

दोनों दलों के बीच मतभेद की ख़बरें तब आम हुई थीं जब केंद्रीय मंत्रिमंडल में उचित स्थान न मिलने की बात कहकर नीतीश कुमार ने जेडीयू के मोदी सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था। जेडीयू की उपेक्षा से नाराज होकर नीतीश कुमार ने कुछ दिन बाद जब बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार किया था तो उसमें बीजेपी को जगह नहीं दी थी। उसके बाद यह माना गया था कि ऐसा करके नीतीश कुमार ने बीजेपी और विशेषकर मोदी-शाह से बदला लिया है।

विचारधारा में है अंतर 

बता दें कि बीजेपी और जेडीयू की विचारधारा पूरी तरह अलग है। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी बीजेपी और जेडीयू में विचारधारा का यह अंतर साफ़ दिखाई दिया था। 25 अप्रैल को दरभंगा में एक रैली हुई थी, इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ हाथ ऊपर उठाते हुए 'वंदे मातरम', का नारा लगाते दिखे थे लेकिन नीतीश कुमार एकदम चुपचाप बैठे रहे थे। इस दौरान वह काफ़ी असहज दिखे थे और आख़िर में कुर्सी से खड़े तो हुए थे, लेकिन तब भी उन्होंने ‘वंदे मातरम’ का नारा नहीं लगाया था। इसके अलावा भी धारा 370, तीन तलाक़ क़ानून को लेकर जेडीयू का स्टैंड बीजेपी से पूरी तरह अलग है।
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क़मर वहीद नक़वी
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