आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला कांग्रेस में शामिल हो सकती हैं। 4 जनवरी को पार्टी में शामिल होने की संभावना है। तो क्या शर्मिला तेलंगाना सीएम रेवंत रेड्डी की तरह कमाल कर पाएँगी? कहा जा रहा है कि रेवंत रेड्डी ने कांग्रेस के लिए दक्षिण के लिए अवसर उपलब्ध करा दिए हैं। क्या वाईएस शर्मिला राजनीति में उस तरह पारंगत हैं और क्या वह कांग्रेस के लिए उस आंध्र प्रदेश में मौका भुना पाएँगी जहाँ उनके भाई जगन मोहन रेड्डी मुख्यमंत्री हैं?
मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व शर्मिला को इस साल लोकसभा चुनाव के साथ-साथ आंध्र प्रदेश में एक महत्वपूर्ण भूमिका देगा। समझा जाता है कि इस कदम का उद्देश्य आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करना है। पार्टी को उम्मीद है कि जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी छोड़ने के इच्छुक लोग अब कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। यह काफी अहम इसलिए है कि प्रमुख विपक्षी दल तेलुगु देशम पार्टी संघर्ष करती दिख रही है।
तो सवाल है कि क्या शर्मिला अपने भाई के विरोध में उतरेंगी और ऐसा करेंगी तो क्यों? क्या वह इतनी अनुभवी नेता हैं कि वह कांग्रेस को राज्य में पुनर्जीवित कर पाएँ?
दरअसल, शर्मिला पहली बार 2012 में सुर्खियों में आईं जब तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग नहीं हुआ था। तब उनके भाई जगन मोहन रेड्डी कांग्रेस में ही थे। राज्य आंदोलन के जोर पकड़ने के बीच उनके भाई ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और वाईएससीआरपी का गठन किया। उनके साथ 18 विधायक भी शामिल हुए। भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद रेड्डी जेल में थे, उनकी मां वाईएस विजयम्मा और बहन वाईएस शर्मिला ने अभियान का नेतृत्व किया। वाईएससीआरपी ने चुनावों में जीत हासिल की। यानी शर्मिला और उनके भाई के बीच पहले एकजुटता थी और किसी तरह की अनबन की ख़बर नहीं थी।
शर्मिला का कांग्रेस को लेकर नरम रुख तब सामने आया जब पिछले साल तेलंगाना के चुनाव से पहले अपनी पार्टी के चुनाव नहीं लड़ने और कांग्रेस को समर्थन की घोषणा कर दी।
शर्मिला के कांग्रेस के क़रीब जाने के दो कारण बताए जा रहे हैं। एक तो उनके भाई से मतभेद हैं और कहा जा रहा है कि उन्हें अपनी पार्टी की गतिविधियों को जारी रखने के लिए धन की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
यह घटनाक्रम तब सामने आ रहा है जब कांग्रेस पार्टी द्वारा तेलंगाना में विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने और राज्य में भारत राष्ट्र समिति का प्रभुत्व खत्म कर दिया है। तो सवाल वही है कि क्या शर्मिला आंध्र प्रदेश में रेवंत रेड्डी की तरह अपने भाई को शिकस्त दे पाएँगी?
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