सच्चर कमेटी रिपोर्ट को डेढ़ दशक से ज्यादा समय बीत चुके हैं। साल 2006 में जब तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा सच्चर कमेटी की रिपोर्ट जारी की गयी थी तब और अब के भारत में जमीन-आसमान का फर्क आ गया है।
सच्चर रिपोर्ट के पंद्रह साल : हाशिए से बहिष्करण तक का सफर
- विश्लेषण
- |
- |
- 26 Jul, 2022

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने भारत में मुस्लिम समुदाय के पिछड़ेपन को सामने रखा था। लेकिन अब यह रिपोर्ट कहां है, इस पर अमल क्यों नहीं हुआ, इस सवाल का जवाब कौन देगा।
इस नए भारत में अल्पसंख्यक समुदायों विशेषकर मुस्लिम समुदाय की समस्याओं या हकों की बात करना बहुसंख्यक समुदाय के हितों पर “आघात” माना जाता है जिसे वे अपनी भाषा में “तुष्टिकरण” कहते हैं। ऐसे में अब इस नए भारत में सच्चर कमिटी के रिपोर्ट का कोई वारिस ही नहीं बचा है।
खुद मुस्लिम समुदाय के लिए अभी सबसे बड़ा मुद्दा सुरक्षा और अपने जान-माल की हिफाज़त बन गया है। बहुसंख्यक और उग्र हिन्दुतत्व की राजनीति ने मुसलामानों को राजनीतिक रूप से अप्रासांगिक बना दिया है। भारतीय लोकतंत्र के चुनावी खेल को महज 80 बनाम 20 प्रतिशत में समेट दिया गया है जिसका मूल सुर “मुस्लिम तुष्टिकरण” और “हिंदू प्रताड़ना” है। मुसलमान अब “वोट बैंक” भी नहीं रहे, यहां तक कि उनको अपना वोट बैंक मानने वाली तथाकथित सेक्युलर पार्टियां भी मुस्लिम समुदाय के मसलों पर चुप रहकर ख़ैरियत मनाती हैं।