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बीजेपी की राज्य ईकाइयों में क्यों बढ़ रहा है असंतोष! 

देश के कम से कम आधा दर्जन राज्यों में दल-बदलुओं को गाँठ कर सत्ता की मलाई चाट रही बीजेपी कभी भीतर ही भीतर तो कभी सरेआम विधायकों या नेताओं के असंतोष की शिकार हो रही है। ताज़ा मामला कर्नाटक का है। इसे मिलाकर त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, मणिपुर, नगालैंड, असम, गोआ, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित कम से कम 10 राज्यों में बीजेपी में असंतोष की चिंगारी सुलग रही है। इन राज्यों में आगे-पीछे गुटबाजी, उपेक्षा, सत्ता की रेवड़ियों की चाहत अथवा दल-बदलुओं के अधूरे मंसूबों की कसमसाहट बीजेपी की संगठनात्मक शैली पर सवालिया निशान लगा रही है। 

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क्या कहा था वाजपेयी ने?

अपने सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी के 1996 में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देते समय दिए गए राजनीति में शुचिता की मिसाल बने बयान को बीजेपी अब शायद भूल चुकी। उन्होंने कहा था, “पार्टी तोड़कर, सत्ता के लिए गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा।”

वही बीजेपी मोदी-शाह युग में विपक्षी दलों में तोड़फोड़ और दल-बदल करवा कर सरकार बनाने के मामले में कांग्रेस का 55 साल का रिकार्ड तोड़ती नज़र आ रही है। 

दलबदलुओं के भरोसे बीजेपी

कर्नाटक हो अथवा मध्य प्रदेश, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड या गोआ, बीजेपी सत्ता हासिल करने अथवा उसे बरकरार रखने के लिए विपक्षी विधायकों को तोड़ कर उनकी सरकारों को अपलक नेस्तनाबूद कर रही है।

इस चक्कर में दुनिया का कथित सबसे बड़ा राजनैतिक दल बीजेपी अपने दल-बदलू मंत्रियों की उंगलियों पर नाच रहा है। अमित शाह द्वारा कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा को खुद बेंगलुरू जाकर समर्थन देने के बावजूद मंत्री बने दल-बदलू विधायक मुख्यमंत्री के काबू नहीं आ रहे।

येदियुरप्पा को अपने मंत्रियों की नाराज़गी के मद्देजनर पिछले पाँच दिन में चार बार उनके विभाग बदल कर घुटने टेकने पड़े हैं।

इसके साथ ही हरियाणा के आयाराम- गयाराम से शुरू और भजनलाल से पक्के हुए दल-बदल के सिलसिले में खुद को पीएचडी जताने वाली बीजेपी के सांगठनिक खोखलेपन का भांडा भी सरे चौराहे फूट रहा है। सोमवार को तो दिन में दो बार मंत्रियों के विभागों में फेरबदल करके येदियुरप्पा ने राजनीतिक अवसरवाद का नया रिकार्ड ही बना डाला। 

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बी. एस. येदियुरप्पा, मुख्यमंत्री, कर्नाटक

दिन में दो बार विभाग बदला

सरकार से इस्तीफे की धमकी देकर दिन में दो बार अपने विभाग बदलवा लेने वाले मंत्री हैं जेडीयू से आए जे. सी. मधुस्वामी। उन्होंने मुख्यमंत्री को धमकाया कि 26 जनवरी को झंडारोहण करने के बाद उनके मंत्रिमंडल से वे इस्तीफा दे देंगे।

उनके दबाव में येदियुरप्पा ने सोमवार को ही उनके विभाग बदल कर उन्हें पर्यटन, पर्यावास एवं पर्यावरण विभाग का मंत्री घोषित किया था। उसके बावजूद मधुस्वामी के असंतुष्ट रहने पर शाम होते-होते मुख्यमंत्री ने दोबारा उनका विभाग बदल कर उन्हें लघु सिंचाई विभाग का मंत्री बना दिया। 

मधुस्वामी को येदियुरप्पा ने 21 जनवरी को ही चिकित्सा शिक्षा एवं कन्नड़ भाषा तथा संस्कृति मंत्री बनाया था। उसमें भी कन्नड़ भाषा एवं संस्कृति विभाग बदल कर उन्हें हज एवं वक्फ विभाग दिया गया था। उससे पहले उनके पास कानून एवं न्याय विभाग तथा लघु सिंचाई विभाग था। उनके द्वारा इस्तीफे की धमकी मिलने पर मुख्यमंत्री ने सोमवार को दो बार उनके विभाग बदले। 

उनके अलावा खुद से चिकित्सा शिक्षा विभाग छिनने से नाराज प्रदेश के दूसरे मंत्री के सुधाकर भी सोमवार को उसे वापस पाकर मुदित हो गए। वे फिर से स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभागों के प्रभारी बन गए। 

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कर्नाटक विधानसभा
मुख्यमंत्री द्वारा पिछले  पाँच दिन में अपने मंत्रियों के सामने अनेक बार झुकने के बावजूद मंत्रिमंडल में शांति छाने की गारंटी नहीं है। मंत्री पद नहीं मिलने से नाराज बीजेपी के दर्जन भर विधायक दिल्ली में आलाकमान तक हो आए हैं।   
तो क्या विपक्षी दलों की निर्वाचित सरकारों के विधायक तोड़कर उन्हें गिराने और अपनी सरकार बनाने वाला बीजेपी का कथित ‘मास्टरस्ट्रोक’ अब उसी के गाल पर चाँटे की तरह लग रहा है?

सभी दल-बदलुओं को मलाई?

आखिर सभी दल-बदलुओं को सत्ता की मलाई बीजेपी कैसे चटाएगी? यूं भी दल-बदलू तो अब बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात से लेकर उत्तराखंड तक बीजेपी की रीढ़ बन चुके हैं। अब अगर दल-बदलुओं को ही सारे मंत्री पद दे देगी तो बरसों बीजेपी, आरएसएस का झंडा उठाए धक्के खाकर विधायक बने अपने वफादार कार्यकर्ताओं को कैसे संतुष्ट करेगी? कोई भी दल अपने वफादारों को सत्ता की मलाई से महरूम करके आखिर कितने चल पाएगा?

कर्नाटक, गोआ, त्रिपुरा, मध्यप्रदेश, मणिपुर, ओडिशा, पश्चिम बंगाल हो या उत्तराखंड, बीजेपी चौतरफा दल-बदलुओं के कारण अपने काडर विधायकों एवं कार्यकर्ताओं के असंतोष में घिरी है। कर्नाटक में विधायकों एवं पार्टी काडरों में मुख्यमंत्री के पुत्र एवं प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष बी वाई विजयेंद्र के सरकारी कामकाज में दखल पर भी असंतोष है।

मध्य प्रदेश में दल-बदल के जरिए कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरा कर बीजेपी को फिर से शिवराज चौहान की सरकार बनाए दस महीने बीत चुके मगर विधायकों में असंतोष बार-बार सिर उठा रहा है। ऐसा उपचुनाव में जीते 19 विधायकों की बदौलत 230 सदस्यीय विधानसभा में 129 विधायकों के बहुमत का समर्थन हासिल हो जाने के बावजूद है।  

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शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

क्या हुआ था मध्य प्रदेश में?

गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने बीजेपी को 107 सीटों पर रोक कर 116 सीट जीतने वाली कांग्रेस को सत्ता सौंपी थी। कांग्रेस ने बसपा एवं निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाई मगर 15 माह बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा 22 विधायकों के साथ बीजेपी में दलबदल करके कमलनाथ सरकार गिरा दी।

सिंधिया समर्थकों सहित 25 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफ़े तथा अन्य कारणों से खाली 28 सीटों पर उपचुनाव में 19 सीट जीत कर शिवराज सरकार ने अपने पाँव तो जमा लिए मगर अब सत्ता की रेवड़ियों से महरूम विधायक बीजेपी की नाक में दम किए हुए हैं। 

राज्य में चार बार मंत्रिमंडल विस्तार के बावजूद मंत्री पद नहीं मिलने से बीजेपी काडर के विधायकों में असंतोष है। पार्टी विधायक अजय विश्नोई ने मुख्यमंत्री चौहान पर विंध्य- महाकौशल क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप लगाकर विधायक दल में पनप रहे असंतोष का इजहार भी किया।

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सिंधिया का दबाव

सिंधिया समर्थकों को पार्टी में अहम पद देने के दबाव तथा अपने काडरों द्वारा उनके विरोध में फँसा नेतृत्व पार्टी के संगठन में भी फेरबदल से कतरा रहा है। सुगबुगाहट यह भी है कि विधायकगण सरकारी निकायों एवं निगमों में नियुक्ति पाने के जुगाड़ में चुप्पी साधे हैं। 

पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा का तो दावा है कि बीजेपी के कम से कम 35 वरिष्ठ विधायक सत्ता नहीं मिलने से बौखलाए हुए हैं। उनमें से अनेक के कांग्रेसियों के संपर्क में होने का दावा भी किया जा रहा है। हालांकि सिंधिया के दल-बदल के बाद से कांग्रेस की हालत खुद ही पतली है। सिंधिया के 12 मंत्री अभी राज्य मंत्रिमंडल में हैं। उनके दबाव में चार मंत्री पद शिवराज भर नहीं पा रहे।

ज्योतिरादित्य पंचायत सचिवों को सातवें वेतन लाभ दिलवाने के लिए भी मुख्यमंत्री पर दबाव बढ़ाएंगे। पंचायत सचिव संगठन का कहना है कि अभी तो उन्हें छठवां वेतनमान ही नहीं मिला।

शिवराज सरकार ने प्रदेश के लाखों कर्मचारियों को सातवें वतेनमान का लाभ दे दिया है, लेकिन पंचायत सचिव इससे वंचित हैं।

त्रिपुरा में बग़ावत

उधर सुदूर त्रिपुरा में भी मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के ख़िलाफ़ बीजेपी के कार्यकर्ताओं सहित कम से कम 10 विधायकों ने असंतोष का झंडा बुलंद कर रखा है। फ़िलहाल बीजेपी आलाकमान ने उन्हें पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव तक रुकने के लिए मना लिया है। बीजेपी को डर है कि बंगालीभाषी त्रिपुरा में आईपीएफ़टी से साझेदारी में बनी उसकी सरकार अस्थिर होने पर पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता पर उसका दावा कमज़ोर पड़ सकता है। 

बिप्लब ने हालांकि असंतुष्ट विधायकों पर दबाव बनाने के लिए जनता के दरबार में जाने की घोषणा की थी मगर आला कमान ने उन्हें भी चुप कर दिया। पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षक विनोद कुमार सोनकर के अनुसार मुख्यमंत्री को सरकार चलाने पर ध्यान देने तथा बाकी बातें संगठन पर छोड़ देने को कहा गया है। 

सरकार में बीजेपी की साझेदार आईपीएफटी अध्यक्ष एवं राजस्व मंत्री नरेंद्र चंद्र देबबर्मन ने साफ कहा कि लोकतंत्र में विश्वास जनसभा में नहीं, बल्कि विधानसभा में हासिल किया जाता है। विपक्षी सीपीआईएम एवं कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पर उनकी पार्टी में ही उंगली उठने का कारण उनकी प्रशासनिक नाकामी बताया है।
त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी ने 2018 के चुनाव में 36 सीट जीतकर सीपीआईएम को 25 साल बाद सत्ता से बाहर किया था। फिर अपने साझीदार आईपीएफटी के आठ विधायकों के साथ बहुमत सरकार बनाई जिसमें सुदीप राय बर्मन स्वास्थ्य मंत्री थे।

कांग्रेस के पूर्व नेता बर्मन जो तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे, ऐन चुनाव से पहले सात विधायकों के साथ बीजेपी में आ गए थे। उनके परिवार के राजनीतिक रसूख के कारण उन्हें राज्य में बीजेपी सरकार का सूत्रधार माना जाता है। लेकिन मुख्यमंत्री देब ने पिछले साल मई में उन्हें बरख़ास्त कर दिया था। तभी से राज्य सरकार के खिलाफ माहौल तथा बीजेपी विधायक दल में बगावत की सुगबुगाहट है। 

पंजाब में असंतोष

दिल्ली की देहरी पर किसानों के धरने के मद्देनजर बीजेपी की पंजाब इकाई में असंतोष गहरा रहा है। पार्टी की 78 वर्षीय नेता और पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांता चावला ने केंद्र सरकार को मामला जल्द से जल्द सुलटाने की सलाह दी है। उनके अनुसार, प्रधानमंत्री चाहें तो एक दिन में मामला सुलटा सकते हैं। 

केंद्र सरकार की लापरवाही एवं किसानों के दबाव में बीजेपी के 15 से ज्यादा नेता शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो चुके। राज्य में अगले महीने ही स्थानीय निकाय चुनाव के कारण प्रदेश ईकाई में बौखलाहट है।

सुश्री चावला के अनुसार, किसानों की मौत के मद्देनजर उन्होंने दिसंबर में ही किसानों से समझौते की मांग प्रधानमंत्री एवं कृषि मंत्री को पत्र लिखकर की थी। 

बीजेपी के पूर्व प्रदेश सचिव मनजिंदर सिंह कंग के अनुसार, राज्य ईकाई का नेतृत्व केंद्र को गुमराह कर रहा है। पंजाब में बीजेपी के 31 नेताओं के घरों के बाहर किसानों का पक्का धरना जारी है। वे बीजेपी नेताओं को कोई भी सार्वजनिक कार्यक्रम भी नहीं करने दे रहे। हालांकि प्रदेश संगठन सचिव दिनेश कुमार ने किसान आंदोलन के कांग्रेस, वामपंथियों के हाथों से होते हुए अब खालिस्तानियों एवं नक्सलियों की पकड़ में चले जाने का दावा किया है। उन्होंने निकाय चुनाव अकेले ही पूरे दम से लड़ने का संकेत किया है।

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बीजेपी-जेजेपी सरकार सांसत में

हरियाणा में भी किसान आंदोलन के कारण बीजेपी-जेजेपी सरकार सांसत में है। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर सहित राज्य के सभी मंत्रियों एवं सत्तारूढ़ विधायकों का किसानों ने बाहर निकलना दूभर कर रखा है। जेजेपी के आधे से ज्यादा विधायक सरकारी पद छोड़ चुके। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और उनके पिता एवं पार्टी अध्यक्ष अजय चौटाला भी केंद्र सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य बरकरार रखने की लिखित गारंटी देने के अनुरोध के बाद से चुप्पी साधे हैं।

उधर विपक्षी कांग्रेस ने सरकार पर दबाव बनाते हुए विधानसभा सत्र बुलाने की माँग की है ताकि उसमें अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सके। बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंदर सिंह खुद किसानों के धरने में जा रहे हैं, जिससे पार्टी में मतभेद जाहिर है। 

जेजेपी के उपाध्यक्ष रामकुमार गौतम ने सरकारी पद से इस्तीफा देकर किसानों से तत्काल बातचीत की मांग खट्टर सरकार से की है। सिरसा में चौटाला के घर पर किसानों ने धरना लगा रखा है। किसान आंदोलन का खामियाजा बीजेपी को स्थानीय निकाय चुनाव में भुगतना पड़ा है।

पश्चिम बंगाल में झगड़ा

पश्चिम बंगाल में बीजेपी की बर्दवान सहित अनेक जिला ईकाइयों में विधानसभा चुनाव से पहले ही नए-पुराने नेताओं के बीच झगड़ा शुरू हो गया। इसकी वजह से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से 12 एवं कांग्रेस तथा सीपीआईएम से तीन-तीन विधायकों एवं पदाधिकारियों का थोक में बीजेपी में दल-बदल कराना है। 

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दिलीप घोष, अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल बीजेपी

बीजेपी के पुराने पदाधिकारियों को तृणमूल के लोगों से राबता बनाने में दिक्कत स्वाभाविक है। पिछले पांच साल से तो बीजेपी वाले उन्हीं के खिलाफ मुहिम चला रहे थे। पश्चिम बंगाल में तो राजनीतिक लड़ाई यूं भी गली-मुहल्लों तक फैली हुई है।

वाममोर्चा से लेकर तृणमूल कांग्रेस एवं कांग्रेस का भी अपने प्रभाव के क्षेत्रों में मुहल्ला समितियों पर कब्जा है। धीरे-धीरे बीजेपी ने भी मुहल्लों में घुसपैठ की है। तृणमूल से लोग तोड़कर विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी उसे मजबूत करना चाह रही है ताकि मतदान बूथों पर उसकी पकड़ बन सके।  

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी तृणमूल से आ रहे नेताओं की बाढ़ के प्रति पार्टी के भीतर आशंका जता चुके। वे ख़ुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कराने को भी आला कमान पर जोर डाल रहे हैं।

केरल- तमिलनाडु

पश्चिम बंगाल की तरह ही केरल और तमिलनाडु की बीजेपी ईकाइयों में भी विधानसभा चुनाव से पहले ही मतभेद बाहर आ रहा है। केरल में वरिष्ठ नेता सोभा सुरेंद्रन ने बिना पूछे खुद को प्रदेश ईकाई का उपाध्यक्ष बनाने पर एतराज किया है। वे पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रह चुकी हैं, इसलिए प्रदेश पदाधिकारी बनाने को अवनति मान रही हैं। उनके अनुसार प्रदेश अध्यक्ष के सुरेंद्रन द्वारा राज्य कार्यकारिणी की घोषणा के बाद अनेक नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। 

तमिलनाडु में भी अन्नाद्रमुक की सज़ायाफ़्ता पूर्व महासचिव वी. के. शशिक़ला से विधानसभा चुनाव में गठबंधन के पार्टी के प्रयास का स्थानीय बीजेपी के एक वर्ग ने विरोध किया है। उन्हें लगता है कि इससे राज्य में बीजेपी कहीं अपने राजनीतिक उदय से पहले ही बदनाम न हो जाए।  

बाहरी लोगों को बीजेपी में शामिल करने पर बीजेपी की ओडिशा, असम, मणिपुर, नगालैंड, गोवा, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखंड इकाइयों में भी असंतोष जारी है।

महाराष्ट्र-असम

महाराष्ट्र में तो कांग्रेस एवं एनसीपी के 23 विधायकों को विधानसभा चुनाव से पूर्व बीजेपी में शामिल कराने के बावजूद उसे सत्ता से बाहर रहना पड़ा। बड़े पैमाने पर दलबदल कराने का बीजेपी को विधानसभा चुनाव में वांछित फायदा मिलने के बजाए उसकी सीटें घट गईं। 

असम में सीएए और एनआरसी से लोगों में बीजेपी के खिलाफ नाराजगी है। उसी से निपटने को प्रधानमंत्री मोदी राज्य में विधानसभा चुनाव से ऐन पहले भूमिहीनों को जमीन के एक लाख पट्टे बांट कर आए हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने भी कथित घुसपैठियों से असमवासियों की रक्षा सिर्फ बीजेपी द्वारा करने का शिगूफा छोड़ कर कांग्रेस एवं बदरूद्दीन अजमल पर निशाना साधा है। पार्टी के कुछ विधायकों एवं पदाधिकारियों के असम में जनदबाव में बीजेपी छोड़ने की सुगबुगाहट है तो कुछ अन्य सत्ता की मलाई न मिलने से खफा हैं। 

उत्तराखंड

उत्तराखंड एवं यूपी में विधानसभा चुनाव से पूर्व बीजेपी ने थोक में कांग्रेस, बीएसपी एवं सपा के विधायकों एवं पूर्व विधायकों सहित अनेक नेताओं को दलबदल करवाया था। उनकी बदौलत बीजेपी ने विधानसभाओं में जबरदस्त बहुमत भी हासिल किया मगर अगले साल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पुराने नेता, सत्ता की मलाई चाट रहे दलबदलुओं पर उंगली उठा रहे हैं। 

उत्तराखंड में तो पांच साल बाद सरकार बदलने के रिवाज से घबराए अनेक दलबदलू मंत्री एवं विधायकों ने कांग्रेस में वापसी की जोड़तोड़ शुरू कर दी है। सतपाल महाराज, हरकसिंह रावत और यशपाल आर्य जैसे कांग्रेस के कद्दावर नेता तो हरीश रावत की मनमानी के विरोध में बीजेपी में गए थे।

हरीश रावत को हरिद्वार ग्रामीण एवं कीरतपुर, दोनों चुनाव क्षेत्रों से हारकर उसका खामियाजा भी चुकाना पड़ा। ऐसा माना जा रहा है कि पूर्व कांग्रेसियों को बीजेपी की रीति नीति भी खटकने लगी है इसलिए वे कांग्रेस में लौटने को आतुर हैं। 

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योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश

यूपी में भी बीजेपी के ब्राह्मण नेताओं में योगी आदित्यनाथ के कथित ठाकुर प्रेम से नाराजगी है। साथ ही अन्य दलों से आए बहुत से नेता भी पार्टी में घुटन महसूस कर रहे हैं। इसलिए अगले विधानसभा चुनाव से पहले यूपी और उत्तराखंड दोनों ही सहोदर राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी से दलबदल का नया दौर चल सकता हैं। योगी के मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री मोदी की पसंद पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को शामिल कराने के लिए पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को मुख्यमंत्री से बात करने खुद लखनऊ जाना पड़ा है। 

इसकी वजह शर्मा को बीजेपी में शामिल करने के बाद योगी द्वारा उन्हें मिलने का समय तीन बाद दिया जाना है। जाहिर है कि योगी यूपी में अपने समानांतर सत्ता केंद्र को जड़ क्यों पकड़ने देंगे? देखना यही है कि अरविंद को यूपी भेजने की मोदी-शाह की रणनीति को योगी कहीं राम मंदिर के चक्कर में खुद की लोकप्रियता बढ़ने के गेम में पलीता न लगा दें।   

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वसुंधरा राजे सिंधिया, पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान

राजस्थान

राजस्थान में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित चार नेताओं ने सोशल मीडिया पर खुद को अगला मुख्यमंत्री घोषित करवाने की होड़ कर रखी है। बाकी दो केंद्रीय मंत्री हैं—अर्जुनराम मेघवाल एवं गजेंद्र सिंह शेखावत। इनके समर्थक अपने नेताओं को 2022 में राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार बताने की होड़ करके पार्टी में गुटबाजी की झलक दिखा रहे हैं।
वसुंधरा राजे के समर्थकों ने तो ‘वसुंधरा राजे समर्थक राजस्थान’ नाम से अलग समूह ही बना लिया है। जाहिर है कि इसका मकसद राज्य की राजनीति से पूर्व मुख्यमंत्री को बाहर करने की कोशिश को ध्वस्त करना है।

प्रदेश के नेताओं की गुटबाजी पर लगाम कसने के लिए बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य में कोर ग्रुप बना दिया है। इसके 12 सदस्यों में वसुंधरा, पुनिया, मेघवाल एवं शेखावत सहित नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया भी शामिल हैं।

ये हैं-प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे, राज्यसभा सांसद ओमप्रकाश माथुर, प्रदेश महामंत्री चंद्रशेखर, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, केंद्रीय मंत्रियों गजेंद्र सिंह व अर्जुन राम मेघवाल और कैलाश चौधरी के साथ ही प्रदेश उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत, लोकसभा सांसद सीपी जोशी और कनकमल कटारा शामिल हैं।

चार विशेष आंमत्रित सदस्य हैं-राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह, राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भारती बेन सियाल और राष्ट्रीय सचिव अल्कासिंह गुर्जर।

लेकिन अगर इसी तरह असंतोष पार्टी में बढ़ता रहा तो बीजेपी के लिये दिक्कत पैदा होगी । और ये नये समीकरण का आग़ाज़ कर सकता है । 

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अनन्त मित्तल
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