कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
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कल्पना सोरेन
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बीजेपी - सरायकेला
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नरेंद्र मोदी की सरकार विदेशी दबाव में आ गयी। फिर मोदी सरकार के दबाव में आकर बीजेपी ने नुपुर शर्मा और नवीन कुमार जिन्दल को क्रमश: निलंबित और निष्कासित कर दिया। उन्हें फ्रिंज एलिमेंट करार दिया। इनमें से हर एक बात बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए चौंकाने वाली थी। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि वाकई ऐसा हो सकता है। अपने कार्यकर्ताओं के गुस्से से चिंतित बीजेपी और उसकी सरकार ने अब एक रास्ता निकाल लिया है। रास्ता है दो के बदले 32 पर एफआईआर।
नुपुर-नवीन पर एफआईआर तो होंगे लेकिन गिरफ्तारी नहीं होगी। अगर गिरफ्तारी पर विपक्ष ने जोर दिया, हंगामा किया तो सबसे पहले हंगामा करने वाले नेताओं की गिरफ्तारी होगी। इसमें नेता भी होंगे और पत्रकार भी। नेताओँ में वे होंगे जिनकी गिरफ्तारी से बीजेपी कार्यकर्ताओं को सुकून मिलेगा।
जाहिर है असदुद्दीन ओवैसी का नाम इसमें ऊपर है। मगर, बाकी राजनीतिक दल भी ऐसी भूल ना करें क्योंकि उनके खिलाफ भी एक्शन लिए जा सकते हैं। रिकॉर्ड खंगाले जा सकते हैं और एफआईआर दर्ज करायी जा सकती है।
दिल्ली दंगा सबसे बड़ा उदाहरण है जिसमें बीजेपी सरकार ने अपने नेताओं का बचाव करने के लिए विरोधी दलों के नेताओं पर दबाव बनाए। जब विपक्ष ने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने “देश के गद्दारों को..गोली….” का नारा लगाया और लगवाया और इसलिए उन पर दिल्ली में भड़के दंगों का जिम्मेदार माना जाना चाहिए। तब मोदी सरकार ने अलग ही पैंतरा दिखाया।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में बयान दिया कि दिल्ली दंगे के पीछे 14 फरवरी को एक पार्टी की प्रमुख ने दिल्ली के रामलीला मैदान से लोगों से आर-पार की लड़ाई के लिए सड़क पर उतरने का आह्वान किया था। इसी वजह से माहौल खराब हुआ। इशारा सीधे-सीधे सोनिया गांधी की तरफ था। एक अन्य कांग्रेस नेता, वारिस पठान, एक अन्य संगठन की ओर से दिए गये बयानों का जिक्र भी उन्होंने किया। तब भी सीधा संकेत यही था कि अगर विपक्ष अनुराग ठाकुर की गिरफ्तारी पर जोर देगा तो गिरफ्तारी विपक्ष के नेताओं और खासकर सोनिया गांधी की भी होगी।
दिल्ली दंगे से महाराष्ट्र के अमरावती में दिए गये उमर खालिद के भाषण को जोड़ दिया गया और उनकी गिरफ्तारी हुई। शाहीन बाग में 8 जनवरी को साजिश के मकसद से ताहिर हुसैन व अन्य से मुलाकात और 24 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप के आगमन के मौके पर बड़ा धमाका करने की थ्योरी दिल्ली पुलिस ने सामने रख दी। लेकिन, बाद में पुलिस को हलफनामे से यह थ्योरी इसलिए वापस लेनी पड़ी क्योंकि 8 जनवरी तक डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरा भी तय नहीं हुआ था। इस बाबत पहली बार खबर 11 फरवरी 2020 को प्रकाशित-प्रसारित हुई थी।
दिल्ली दंगे में 53 लोग मारे गये। इनमें ज्यादातर मुसलमान थे। इसके बावजूद सबसे ज्यादा धर-पकड़ मुसलमानों की ही हुई और मुकदमे भी उन पर ही थोपे गये। जब-जब दिल्ली दंगे में न्याय की मांग की जाती यह धर-पकड़ और मुकदमे लादने का खेल तेज कर दिया जाता।
चंद अन्य पुरानी घटनाओं को याद कीजिए। 5 जनवरी 2020 को जेएनयू परिसर में एबीवीपी के छात्रों ने बाहर से कैम्पस में घुसकर हमला किया था जिसके वीडियो सामने आए थे। एक पूरा वाट्सएप ग्रुप पकड़ में आया था जिनमें जुड़े नाम एबीवीपी से जुड़े छात्र-छात्राओं के थे। एबीवीपी की एक छात्र नेता कोमल शर्मा की तस्वीर भी वायरल हुई थी। इसके बावजूद नामजद एफआईआर एबीवीपी कार्यकर्ताओं पर नहीं हुई। उल्टे जो वामपंथी छात्र-छात्राएं हमले में घायल हुए, उन पर मामले दर्ज करा दिए गये। जब-जब जेएनयू कैम्पस की घटना में दोषी लोगों को गिरफ्तार करने की मांग तेज होती, वामपंथी छात्र-छात्राओं पर ही शिकंजा कस दिया जाता। हिंसा की इसी किस्म की एक और घटना 2022 में भी हुई और तब भी पुलिसिया कार्रवाई का पैटर्न यही रहा।
सीएए-एनआरसी आंदोलन के खिलाफ कार्रवाई करती हुई पुलिस ने जेएनयू के छात्रों को हमेशा निशाने पर रखा। इसी तरह शाहीन बाग आंदोलन पर तीन बार हमले हुए। गोलियां चलीं। हमलावरों के खिलाफ पुलिस ने क्या कार्रवाई की? क्या कोई यूएपीए जैसी धारा लगायी गयी? नहीं। सबके सब दोबारा नफरत फैलाने के काम में जुट गये।
सीएए-एनआरसी आंदोलन के दौरान यूपी में कई युवकों की मौत फायरिंग की वजह से हुई। पुलिस ने बयान दे दिया कि उसने कोई फायरिंग नहीं की। इस मामले में पीड़ित परिवारों पर दबाव डालकर रातों रात लाश का अंतिम संस्कार करा दिया गया। जिस किसी ने विरोध किया, उनके साथ मारपीट और उन्हें जेल में भेजने का काम किया गया। नतीजा यह हुआ कि युवकों की मौत की घटना का विरोध भी पीड़ित पक्ष भूल गया। किसी जांच और पुलिस पर कार्रवाई का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
अब लौटते हैं 9 जून 2022 को असदुद्दीन ओवैसी समेत 32 लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों पर। इनमें सबा नक़वी जैसी पत्रकार भी हैं। बाकी नामों पर गौर करें शादाब चौहान, हाफिजुल हसन अंसारी, इलियास शरफुद्दीन, मौलाना मुफ्ती नदीम, अब्दुर्रहमान, नगमा शेख, डॉ मोहम्मद कलीम तुर्क, अतीतुर रहमान ख़ान, शाजा अहमद, इम्तियाज अहमद, दानिश कुरैशी, काशिफ, मोहम्मद साजिद शाहीन, गुलजार अंसारी, सैफुद्दीन, मौलाना सरफराजी, मसूद फयाज हाशमी।
कुछ हिन्दुओं के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज किए गये हैं। उनमें शामिल हैं बिहार लाल यादव, आर विक्रमन, विनीता शर्मा, कुमार दिवाशंकर, यति नरसिंहानंद, स्वामी जीतेन्द्रानन्द, लक्ष्मण दास, अनिल कुमार मीणा, क्यू सेंसी, पूजा शकुन पाण्डे, पूजा प्रियंवदा, मीनाक्षी चौधरी।
राजनीतिक रूप से जब-जब नुपुर शर्मा-नवीन जिंदल पर कार्रवाई की मांग को ऊंचे स्तर पर और ऊंची आवाज़ में उठाया जाएगा, तब-तब पुलिस इसी पैटर्न पर आगे बढ़ेगी। कहने की जरूरत नहीं कि विरोधियों पर सख्त तरीके से मामले मजबूत बनाए जाएंगे और जिन्हें सरकार अपना समझती है उन पर केस हल्का किया जाता रहेगा ताकि कुछ समय बाद वे कानूनी गिरफ्त से बाहर हो सकें।
दिल्ली दंगे में वारिस पठान पर कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी। न ही सोनिया गांधी के भाषण को दिल्ली दंगे की वजह बताते हुए ही कोई एक्शन आगे बढ़ा। जाहिर है अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस बार भी अगर विपक्ष अपनी आवाज़ थोड़ी धीमी कर ले तो असदुद्दीन ओवैसी या दूसरे राजनीतिक विरोधियों पर कार्रवाई आगे नहीं बढ़ेगी।
स्पष्ट रूप से नुपुर शर्मा और नवीन जिन्दल को बीजेपी और बीजेपी सरकार का पूरा संरक्षण है। केवल सांगठनिक स्तर पर की गयी कार्रवाई दुनिया की आंखों में धूल झोकने के लिए की गयी। कानूनी कार्रवाई से बचने का प्रयास किया जाता रहा है।
अब जब कार्रवाई की विवशता आ गयी तो साथ में राजनीतिक विरोधियों को भी इस तरह से लपेट दिया गया है कि अंदरखाने एक राजनीतिक समझौता की समझ विकसित हो जाए।
कहने की जरूरत नहीं है कि दो के बदले 32 पर एफआईआर की नीति अपनाकर बीजेपी ने अपने नाराज़ कार्यकर्ताओं को मनाने की कोशिश की है। यह कदम विपक्ष के लिए चेतावनी की तरह है। वे खामोश नहीं रहेंगे, तो उन्हें खामोश करने के लिए जेल भेजने का इंतज़ाम कर दिया जाने वाला है।
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