नागपुर हिंसा के आरोपी फहीम ख़ान के घर बुलडोजर क्यों चला? अवैध कार्रवाई की वजह से या फिर मुस्लिम होने की वजह से? किसी भी स्थिति में क्या यह कार्रवाई क़ानून के अनुसार सही है? क्या क़ानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ? आइए, पूरे मामले को समझते हैं कि आख़िर सचाई क्या है।
दरअसल, नागपुर में हाल ही में हुई हिंसा के बाद प्रशासन ने सख्त रुख अपनाते हुए मुख्य आरोपी फहीम खान के घर पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई की। नागपुर नगर निगम और पुलिस की साझा टीम ने फहीम खान के दो मंजिला मकान के कथित अवैध हिस्से को ढहा दिया। फहीम खान को 17 मार्च को हुई हिंसा का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है, जिसमें औरंगजेब की कब्र को हटाने के मुद्दे पर दो गुटों के बीच झड़प हुई थी। इस हिंसा में कई लोग घायल हुए, संपत्तियों को नुक़सान पहुंचा और पुलिस पर भी हमला हुआ। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह बुलडोजर कार्रवाई क़ानूनी रूप से सही थी? और क्या यह सुप्रीम कोर्ट के हालिया दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं करती है?
प्रशासन का दावा है कि फहीम खान के घर का एक हिस्सा अवैध था। नागपुर नगर निगम ने इसे महाराष्ट्र क्षेत्रीय एवं नगर योजना अधिनियम, 1966 के उल्लंघन के तहत चिह्नित किया था। फहीम को 24 घंटे का नोटिस दिया गया था, जिसमें उन्हें अवैध निर्माण को स्वयं हटाने का निर्देश था।
नागपुर नगर निगम के उप अभियंता सुनील गजभिये ने एएनआई से कहा, 'हमें एक शिकायत की जांच करने का आदेश मिला था। हमने उचित जांच की। महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 53(1) के अनुसार 24 घंटे के लिए नोटिस जारी किया गया था। जैसे ही अवधि पूरी हुई, यह कार्रवाई की गई।'
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अधिकारियों का कहना है कि यह कार्रवाई हिंसा से सीधे नहीं जुड़ी, बल्कि अवैध निर्माण को लेकर थी। हालाँकि, कार्रवाई का समय और पूरे घटनाक्रम को देखते हुए यह साफ़ लगता है कि फहीम की हिंसा में कथित भूमिका की वजह से इस कार्रवाई में तेजी दिखाई गई।

क्या SC के आदेश का पालन हुआ?
फहीम के घर पर प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद सोशल मीडिया पर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुरूप थी? नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा था कि किसी भी नागरिक के घर को बिना सही क़ानूनी प्रक्रिया के तोड़ा नहीं जा सकता है, भले ही वह व्यक्ति किसी अपराध का आरोपी या दोषी क्यों न हो। कोर्ट ने साफ़ किया था कि अवैध निर्माण को हटाने के लिए कम से कम 15 दिनों का नोटिस और सुनवाई का अवसर देना ज़रूरी है।
इसके साथ ही कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया कि किसी व्यक्ति के अपराध को उसके परिवार के आवास के अधिकार से जोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
- किसी भी ढाँचे को ढहाने के 15 दिन पहले नोटिस ज़रूरी
- संबंधित संपत्ति पर नोटिस चिपकाना अनिवार्य है
- शिकायत मिलने के बाद ज़िला कलेक्टर को सूचित करें
- अधिकारी संबंधित व्यक्ति की शिकायत सुनें, रिकॉर्ड रखें।
- संपत्ति के मालिक को अदालत तक जाने का मौक़ा मिले
- नोटिस मिलने के 15 दिनों में ढाँचे को खुद से गिराने का मौका मिले
- संपत्ति ढहाए जाने से जुड़ी पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफ़ी हो
- निर्देश नहीं माने तो अधिकारी ज़िम्मेदार, निजी ख़र्च से ढाँचा बनाना होगा
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा था,
“
सरकार या प्रशासन किसी शख्स को दोषी नहीं ठहरा सकते। केवल आरोप के आधार पर यदि सरकारें संबंधित व्यक्ति की संपत्ति को ढहाती हैं तो ये क़ानून के शासन पर हमला है। सरकारी अधिकारी जज नहीं बन सकते हैं और अभियुक्तों की संपत्तियाँ नहीं ढहा सकते हैं।
जस्टिस गवई और जस्टिस विश्वनाथन की बेंच
फहीम खान के मामले में केवल 24 घंटे का नोटिस दिया गया, जो सुप्रीम कोर्ट के 15 दिन के नियम का उल्लंघन लगता है। इसके अलावा, कोई औपचारिक सुनवाई नहीं हुई, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह कार्रवाई निष्पक्ष थी या जल्दबाजी में की गई। कई क़ानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे 'बुलडोजर जस्टिस' क़रार देते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना बताया है। उनका तर्क है कि अगर निर्माण अवैध था, तो भी प्रक्रिया का पालन करना ज़रूरी था, न कि इसे हिंसा से जोड़कर त्वरित कार्रवाई करना।
इस कार्रवाई का समय और माहौल से इसको राजनीतिक रंग मिलता दिख रहा है। फहीम ख़ान माइनॉरिटी डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हैं और वह 2024 के लोकसभा चुनाव में नितिन गडकरी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ चुके हैं। उन्होंने अपनी गिरफ्तारी को 'राजनीतिक प्रतिशोध' क़रार दिया था। उनके समर्थकों का मानना है कि यह कार्रवाई उनकी राजनीतिक सक्रियता को दबाने की कोशिश है। वहीं, दूसरी ओर, सरकार इसे क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में एक कड़ा क़दम बता रही है।
यह घटना नागपुर जैसे संवेदनशील शहर में तनाव को बढ़ा सकती है, जहाँ पहले से ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आशंका बनी हुई है। यह कार्रवाई एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ कार्रवाई के रूप में देखी जा रही है, जिससे सामाजिक सौहार्द पर असर पड़ सकता है।
हाई कोर्ट की रोक
इधर, बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने सोमवार को दंगों में आरोपी व्यक्तियों के रिश्तेदारों के घरों को गिराने पर रोक लगा दी और कहा कि नागपुर नगर निगम की कार्रवाई की कानूनी जांच की ज़रूरत है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि तोड़फोड़ मनमाने ढंग से की गई और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। याचिकाएं मुख्य आरोपी फहीम खान की मां 69 वर्षीय मेहरुनिस्सा और अब्दुल हाफिज द्वारा दायर की गई थीं। इनके रिश्तेदार का नाम पिछले सप्ताह के दंगों में आया था। जबकि खान का घर अदालत के हस्तक्षेप से पहले पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया था, हाफिज के घर को ध्वस्त करने की कार्रवाई को हाईकोर्ट के आदेश के बाद रोक दिया गया।
बहरहाल, फहीम खान के घर पर बुलडोजर कार्रवाई ने कई सवाल खड़े किए हैं। एक तरफ़, यह हिंसा के ख़िलाफ़ सरकार की सख़्ती को दिखाती है, लेकिन दूसरी ओर, यह क़ानूनी प्रक्रिया और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर सवाल उठाती है। अगर यह कार्रवाई अवैध निर्माण के ख़िलाफ़ थी तो उचित समय और प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं किया गया? क्या यह हिंसा के लिए सजा का एक तरीक़ा था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया है? यह मामला निश्चित रूप से कोर्ट तक पहुंच सकता है, जहां इसकी वैधानिकता की जाँच होगी। यदि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है तो अब आगे क्या होगा?
वैसे, उत्तर प्रदेश में एक ऐसे मामले में पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार पर 25 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था। 2019 में एक घर तोड़ने के मामले में अदालत सुनवाई कर रही थी। तब कोर्ट ने कहा था कि मकान या आशियाना तोड़ने की कार्रवाई ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से की गई थी। इसके लिए कोई नोटिस नहीं दिया गया था और बाक़ी प्रक्रियाओं का पालन भी नहीं हुआ था। कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा था कि किसी भी सभ्य समाज में बुलडोज़र के ज़रिए इंसाफ़ नहीं होना चाहिए।
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