सेलेक्टिव एप्प्रोप्रिएशन ऑफ़ फैक्ट्स (केवल मतलब के तथ्य चुनना), बैकवर्ड प्रोजेक्शन ऑफ़ लॉजिकल प्रेमाइसेज (इतिहास में हुई गलतियों को आज दुरुस्त करने वाले उपक्रम को अपरिहार्य राष्ट्रीय इबादत का दर्जा दिलाना), अवैज्ञानिक और अपुष्ट ईश्वरीय आदेशों का जिक्र “अपने” सत्य को खड़ा करना और छोटी सी बात को वितंडा बनाना भारत के दक्षिणपंथियों को मोदी-काल की अनूठी देन है. ये सब पहले भी थे लेकिन इस काल में इसे व्यापक विस्तार और संस्थागत शक्ति दे कर तथा मीडिया के इस्तेमाल के जरिये राष्ट्रीय चिंतन परम्परा को दूषित कर भारतीय समाज को एक ऐसी जड़ता की गर्त में डाल दिया है जिससे बाहर निकलना मुश्किल होगा.
दक्षिणपंथी कुतर्क में मोदी काल का अप्रतिम योगदान
- विश्लेषण
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- 14 Dec, 2024
मोदी-काल में दक्षिणपंथ की विकृत सोच और कुतर्कों का दायरा वहां तक पहुंच चुका है, जहां तक आप सोच नहीं सकते। विडंबना यह है कि कुछ जज भी इसमें शामिल होकर इस वैध बनाने की जबरन कोशिश में लगे हुए हैं। कुछ जजों के लिए अब संविधान के भी कोई मायने नहीं रह गए हैं। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह क्या कहना चाहते हैं, पढ़कर समझिएः
