क्या अंग्रेज़ों से फाँसी की जगह गोली से उड़ाये जाने की माँग करने वाले साम्यवादी क्रांतिकारी शहीद-ए-आज़म भगत सिंह और अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगकर जेल से छूटे और फिर उनसे पेंशन लेकर हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ाने में जुटने वाले विनायक दामोदर सावरकर को एक श्रेणी में रखा जा सकता है? क्या मदनमोहन मालवीय का नाम उन्हें ‘महामना’ की उपाधि देने वाले महात्मा गाँधी की हत्या की साज़िश में शामिल (कपूर कमीशन का निष्कर्ष) सावरकर के साथ लिया जा सकता है? इन दोनों सवालों के जवाब में ‘हाँ’ कहने वालों को या तो इतिहास का ज्ञान नहीं होगा, या फिर वे सावरकर का दाग़ धोने की किसी शातिर योजना पर काम कर रहे होंगे।