मोदी के दस वर्ष के “गुड गवर्नेंस” में अगर कोई मंत्री प्रेस-कांफ्रेंस करके तुलनात्मक आंकड़े देते हुए बताये कि यूपीए के दस साल में 16 फीसदी रोजगार कृषि क्षेत्र में कम हुए जबकि एनडीए के समतुल्य दस वर्षों में इस क्षेत्र में रोजगार 19 प्रतिशत बढे, तो आप इसे क्या कहेंगे? बहरहाल मोदी के मंत्री हैं लिहाजा यह कह कर भी खुश थे जबकि उन्हें रोना चाहिए था.

भय-जनित सम्मान के अतिरेक में ऐसी गलतियाँ स्वाभाविक हैं. “यशस्वी” प्रधानमंत्री मोदी (एक ऐसा विशेषण जो मंत्री से संतरी तक और भाजपा के शीर्ष नेताओं से मोहल्ले में गेरुआ दुप्पटा डाले “थूक लगा कर रोटी बनाने वाले मुसलमान को तलाशते हुए बेरोजगार धर्म-रक्षकों तक) के नाम के पहले न लगायें तो रात को बुरे सपने आते हैं. एक औसत दर्जे की समझ रखने वाला व्यक्ति भी जनता है कि कृषि से आबादी को निकल कर मैन्युफैक्चरिंग या सेवा क्षेत्र में डालना हीं भारत की न ख़त्म होने वाली गरीबी का एकमात्र इलाज है. पिछले सात दशकों से इसकी कोशिश हो रही है और स्वयं “यशस्वी प्रधानमंत्री” ने भी सन 2014 से तथाकथित “गुड गवर्नेंस” की शुरुआत करते हुए “मेकिंग इंडिया” और “स्किल इंडिया” कार्यक्रम इसी आशय से लांच किये थे.