प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के ऐन बीच में जिस तरह से आदिवासी नायक भगवान बिरसा मुंडा को उनकी 150 वीं जयंती पर याद किया है, उसे आदिवासी वोटरों को लुभाने की एक कवायद की तरह देखा जा सकता है। 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी लगातार यह दावा करते आए हैं कि देश में जो कुछ भी अच्छा हो रहा है, वह उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद से है। उनकी पूरी मशीनरी यह नया कथानक बनाने में जुटी रहती है और इसका चुनावी लाभ भी भाजपा को मिला है। स्थानीय नायकों का स्मरण इसी रणनीति का हिस्सा है। और ऐसा करते हुए मोदी सहित समूची भाजपा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कठघरे में खड़ा करती है कि उनकी सरकार के समय से ही ऐसे नायकों की उपेक्षा की गई। मगर शायद प्रधानमंत्री मोदी की टीम ने उन्हें याद नहीं दिलाया कि झारखंड के एक और आदिवासी नायक ने राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में पंडित नेहरू का खुलकर समर्थन किया था। यह थे, जयपाल सिंह मुंडा, जिन्होंने संविधान सभा की बैठकों में आदिवासियों के मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठाया था।
मोदी को क्यों याद नहीं आते जयपाल सिंह मुंडा; वजह नेहरू तो नहीं?
- विश्लेषण
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- 17 Nov, 2024

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद ही कभी जयपाल सिंह मुंडा का उल्लेख करते हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? क्या इसलिए कि जयपाल सिंह मुंडा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर भरोसा करते थे?
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बेदह गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। उनकी पढ़ाई मिशनरी स्कूल में हुई थी, लेकिन वहीं रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ उनके मन में विद्रोह भड़क उठा था। 9 जून 1900 को महज 25 बरस की उम्र में बिरसा मुंडा की रांची के जेल में बीमारी की हालत में मौत हो गई थी। इससे करीब एक साल पहले दिसंबर 1899 में बिरसा मुंडा ने जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के अधिकारों का दावा करते हुए “उलगुलान” की शुरुआत की थी। यह आंदोलन अंग्रेजी राज के खिलाफ बगावत था। इस आंदोलन में ऐलान किया गया, “अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टुंडू जाना” यानी हमारा राज आ गया है, महारानी का राज खत्म हो गया है! अंग्रेजी राज द्वारा क्रूरता से इस आंदोलन को दबाने की कोशिश की गई। बिरसा मुंडा को बहुत कम वक्त मिला, इसके बावजूद वह आदिवासी विद्रोह के एक महानायक के रूप में हमेशा के लिए दर्ज हो गए।