बहुत खामोशी है उदारीकरण के पैरोकारों और रुपए के अवमूल्यन में अनेक गुण देखने वाले अर्थशास्त्रियों में। डॉलर जब 79.37 रुपए का हो गया और रिजर्व बैंक की सारी कवायद के बाद भी अगले दिन मात्र चार पैसे सुधर पाया तो कोई भी ऐसा अर्थशास्त्री सामने नहीं आया जो रुपए के अवमूल्यन को निर्यात बढाने और जीडीपी बढने में योगदान का तर्क दे रहा था। डॉलर को चालीस रुपए पर लाने की बात करने वाले तो अब इस सवाल को छूने से भी बचने लगे हैं।