हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
आगे
बहुत खामोशी है उदारीकरण के पैरोकारों और रुपए के अवमूल्यन में अनेक गुण देखने वाले अर्थशास्त्रियों में। डॉलर जब 79.37 रुपए का हो गया और रिजर्व बैंक की सारी कवायद के बाद भी अगले दिन मात्र चार पैसे सुधर पाया तो कोई भी ऐसा अर्थशास्त्री सामने नहीं आया जो रुपए के अवमूल्यन को निर्यात बढाने और जीडीपी बढने में योगदान का तर्क दे रहा था। डॉलर को चालीस रुपए पर लाने की बात करने वाले तो अब इस सवाल को छूने से भी बचने लगे हैं।
उधर बाजार के जानकार हाल फिलहाल डॉलर के 82 रुपए तक पहुंचने की भविष्यवाणी करने लगे हैं। अभी करोना के समय से ही डॉलर दो रुपए से ज्यादा महंगा हुआ है जबकि इस बीच खुद अमेरिका परेशानी में रहा है और उसके यहां भी डॉलर के भविष्य को लेकर तरह-तरह की चर्चा चलती रही है। अब यह कहने में हर्ज नहीं है कि किसी भी देश की मुद्रा की कीमत वहां की अर्थव्यवस्था की स्थिति और आर्थिक प्रतिष्ठा को बताती है और इस बुनियादी पैमाने पर हमारी स्थिति दिन ब दिन कमजोर होती दिखती है।
यह खबर ज्यादा प्रचारित नहीं हुई है कि बीते कुछ समय से हमारा रिजर्व बैंक डॉलर की बढत को थामने के लिए अपनी अंटी से काफी रकम खर्च कर रहा है। प्रसिद्ध वित्तीय संस्था बर्कले की रिपोर्ट है कि पिछले पांच महीने में रिजर्व बैंक ने डॉलर को थामने के लिए अपने पास से 41 अरब डॉलर बाजार में उतारे हैं। सौभाग्य से अभी तक देश के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति अच्छी है।
बर्कले का अनुमान है कि रिजर्व बैंक ने वायदा और हाजिर, दोनों बाजारों में रेट रोकने में यह पैसा लगाया है। पर रिजर्व बैंक की भी अपनी सीमा है और जोर जबरदस्ती से रेट थामना बाजार में बहुत लम्बे समय तक कारगर नहीं हो सकता।
वित्त मंत्री ने भी देसी तेल कम्पनियों के बाहर तेल बेचने पर (हालांकि यह पुराने करार का उल्लंघन है) पर ‘विंडफाल टैक्स’ और सोने के आयात को महंगा करके अपनी तरफ से रुपए को मजबूती देने की कोशिश की है लेकिन इतने से विदेश व्यापार का घाटा पटेगा या मैनेज होने लायक रहेगा यह कहना मुश्किल है।
यह बात तब और सही लगती है जब हम देखते हैं कि जून में समाप्त तिमाही में हमारा विदेश व्यापार का घाटा रिकार्ड बना चुका है और आगे चीजें और बिगडती लग रही हैं। अमेरिका समेत सारे युरोप में संकट दिखने से हमारे सामान की मांग बढने की गुंजाइश नहीं दिखती और इधर आयात बेहिसाब बढता जा रहा है। सिर्फ पहली तिमाही का विदेश व्यापार का घाटा 70.25 अरब डॉलर का हो गया है।
कहना न होगा कि इसमें पेट्रोलियम आयात का बिल सबसे बडा है जबकि हम रूस से सस्ता तेल लेने का नाटक भी चलाते रहे हैं। सिर्फ तेल का बिल हमारे जीडीपी के पांच फीसदी तक आ चुका है और वह भी अस्सी डॉलर प्रति बैरल के हिसाब पर। इस साल तो कीमतें कभी भी इस स्तर से नीचे नहीं आई हैं सो इस बार आयात का बिल और बडा होगा।
सोने का आयात भी बेहिसाब बढा है जिसके चलते वित्त मंत्री ने कर बढाए हैं। इसी तरह कोयले का आयात भी बहुत बढा है। अब मुश्किल यह है कि हम ऊर्जा के मामले में बहुत सख्ती करेंगे तो उसका असर पूरी अर्थव्यवस्था और सारे उत्पादन पर पडेगा। पर असली समस्या तैयार सामान, खासकर सिले कपडों से लेकर जेम-ज्वेलरी तक, का निर्यात कम होने से है। अमेरिका और युरोपीय संघ, दोनों जगह से मांग गिरी है। एक कारण यह भी है कि दूसरे देश हमसे सस्ता माल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बेच रहे हैं। बांग्लादेश और वियतनाम जैसे मुल्कों में सस्ते श्रम के चलते सस्ता उत्पादन होता है। उधर, चीनी सामान भारतीय बाजार में अटे पड़े हैं।
जानकार, इससे भी ज्यादा दो चीजों को लेकर डरे हैं। अभी भी फ़ेडरल रिजर्व अपने यहां बैंक रेट बढाने वाला है जिसकी आशंका से पहले ही दुनिया भर के बाजारों के प्राण सूखे हुए हैं। हमारे यहां से भी बडी मात्रा में विदेशी पूंजी बाहर वापस हुई है-शेयर बाजारों की गिरावट उसका प्रमाण है। अर्थव्यवस्था में पूंजी का अभाव असली चोट है जो सेंसेक्स गिरने-चढने की तरह तत्काल नहीं दिखती। दूसरी चीज है विदेशी कर्ज की अदायगी का समय पास आना।
अर्थव्यवस्था में जान आने से ही इस मुसीबत से छुटकारा मिल सकता है। निर्यात की कमाई बढ़ेगी तो संकट कम होगा। अभी जब दुनिया भर में गेहूं और अनाज की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है और हमारा गेहूं पहली बार बाहर लाभकारी दाम पर बिकने की स्थिति में आया है तब सरकार ने निर्यात पर रोक लगा दी। सरकारी गोदामों में छह करोड टन गेहूं का भंडार है लेकिन उसने अच्छी फसल देखने के बाद भी यह कदम उठाया। कई और कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगी है।
इस बार मुनाफे की आस में खुली मंडियों में काफी गेहूं निजी कंपनियों ने खरीदा है। लिहाज़ा इस बार सरकारी खरीद केन्द्रों पर कम आया है। सिर्फ मेक इन इंडिया का नारा लगा है काम चीन से माल मंगाने या उससे पुर्जे मंगाकर जोडने का हुआ है। इन जुमलों का हिसाब भी होना चाहिए और चालीस रुपए के डॉलर का भी।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें