भारत में लोकसभा चुनाव के दो चरणों की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा धार्मिक ध्रुवीकरण के विकट प्रयासों की चर्चा देश ही नहीं विदेश में भी हो रही है। अल्पसंख्यकों, ख़ासतौर पर मुसलमानों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निशाना बनाने की उनकी कोशिश देश की लगभग बीस करोड़ आबादी के नागरिक गरिमा और मानवाधिकार को गहरे संकट में डाल रहा है। अफ़सोस कि भारत के मानवाधिकार आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। इसी का नतीजा है कि पहली मई को जेनेवा में होने जा रही एक महत्वपूर्ण बैठक में यह तय होगा कि भारत के मानवाधिकार आयोग का ‘ए-स्टेटस’ बरक़रार रखा जाये या फिर इसका दर्जा घटा दिया जाये।
धार्मिक ध्रुवीकरण की मोदी-नीति से दांव पर भारत की वैश्विक छवि
- विश्लेषण
- |
- 29 Mar, 2025
मोदी के चुनावी भाषणों की वजह से भारत के मानवाधिकार की साख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दांव पर लग गई है। 1 मई को ग्लोबल एलायंस ऑफ़ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशन्स की बैठक हो रही है, जिसमें भारत के मानवाधिकार की रेटिंग घटाई जा सकती है। ऐसा हुआ तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब होगी। लेकिन मोदी को परवाह नहीं है। वो हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के जरिए चुनाव जीतना चाहते हैं लेकिन भारत को मुश्किल में डालने जा रहे हैं।
