भारत में लोकसभा चुनाव के दो चरणों की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा धार्मिक ध्रुवीकरण के विकट प्रयासों की चर्चा देश ही नहीं विदेश में भी हो रही है। अल्पसंख्यकों, ख़ासतौर पर मुसलमानों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निशाना बनाने की उनकी कोशिश देश की लगभग बीस करोड़ आबादी के नागरिक गरिमा और मानवाधिकार को गहरे संकट में डाल रहा है। अफ़सोस कि भारत के मानवाधिकार आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। इसी का नतीजा है कि पहली मई को जेनेवा में होने जा रही एक महत्वपूर्ण बैठक में यह तय होगा कि भारत के मानवाधिकार आयोग का ‘ए-स्टेटस’  बरक़रार रखा जाये या फिर इसका दर्जा घटा दिया जाये।