लगभग 2,500 साल पहले एथेंस, यूनान का इतिहासकार, राजनैतिक दार्शनिक और सेनानायक रहे थ्यूसीडाइड्स ने चेतावनी दी थी, "यह सोचना आपके लिए एक ग़लती होगी कि आपके शहर की वर्तमान सैन्य शक्ति के कारण, या आपके द्वारा अर्जित किए गए सैन्य लाभ के कारण, भाग्य हमेशा आपका साथ देगा। विवेक वाले इंसान भविष्य की अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए अपने सैन्य लाभ को सुरक्षित रख कर ही आने वाले आपदा को समझदारी से निपटने में सक्षम रहते हैं। हम आपदा नहीं चाहते; हम युद्ध को रोकना चाहते हैं, लेकिन अगर ऐसा होता है, तो सैन्य बल को मजबूत कर लड़ाई जीतने के लिए तैयार रहना चाहिए।"
इजराइल शुरू से ही लगातार ख़तरे में रहा है। जब इज़राइल की 1948 में स्थापना हुई, तो उसके पास कोई संसाधन नहीं थे - न तेल, न गैस, कुछ भी नहीं। उसके पास एकमात्र संसाधन यहूदी ज्ञान का भंडार था। इसलिए हजारों वर्षों की यहूदी विद्वता और सीखने की परंपरा का लाभ उठाते हुए, इजराइलियों ने अपने सामने आने वाली समस्याओं का समाधान खोजने के लिए अपने ज्ञान का इस्तेमाल किया। उनकी सेना में विचारों के मुक्त प्रवाह और सूचनाओं के आदान-प्रदान को प्रोत्साहन दिया जाता है- जहां उच्च सैन्य अधिकारियों से सवाल पूछने को न केवल बर्दाश्त किया जाता है, बल्कि प्रोत्साहित भी किया जाता है, ताकि लोग एक-दूसरे के साथ खुलकर बात कर सकें। यह खुली बातचीत उनके सैन्य आविष्कार में सहयोग करते हैं। और दूसरी बात यह है कि इस देश में हर कोई सेना में काम करता है। सैन्य उद्योग में काम करने के लिए अलग कोई डिग्री नहीं है। एक नौसेना या मिसाइल या राडार कंपनी के इंजीनियर जानते हैं कि युद्ध में स्थिति कैसी होती है और वे उन अनुभवों से लाभ उठा सकते हैं। वे सोच सकते हैं, "जब मैं दक्षिणी लेबनान पर आक्रमण कर रहा था तो एक सैनिक के रूप में मुझे क्या मदद मिली थी या चाहिए?" यह अन्य देशों में नहीं के बराबर है। इजराइली इंजीनियर सैनिक भी हैं, और सैनिक इंजीनियर भी हैं। इज़राइल में, यह दोहरी पहचान एक राष्ट्रीय संपत्ति है।
अपनी सैन्य अजेयता में इज़राइल का अति विश्वास ही उनके मौजूदा बदहाली का कारण बन गया है। मई 1948 में इजराइल राष्ट्र के जन्म की घोषणा के बाद से उन्होंने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अपने पड़ोसी अरब राज्यों के साथ आठ युद्ध लड़े और जीते, दो प्रमुख फिलिस्तीनी शस्त्र विद्रोह जिन्हें पहले और दूसरे इंतिफादा के रूप में जाना जाता है, और अन्य सशस्त्र आतंकवादी मुकाबलों की लंबी श्रृंखला में लगातार हिस्सा ले कर कामयाबी हासिल की।
56 साल पहले 5-10 जून 1967 को इजराइल ने छह दिवसीय युद्ध में मिस्र, सीरिया और जॉर्डन से लड़ाई की थी। इस युद्ध के परिणामस्वरूप, इज़राइल ने वेस्ट बैंक (जो जॉर्डन का था), गोलान हाइट्स (जो सीरिया का था) और सिनाई प्रायद्वीप (जो मिस्र का था) पर कब्ज़ा कर लिया। इजराइल ने युद्ध के हर आयाम में उत्तम प्रदर्शन किया। उनके पास अद्भूत इंटेलिजेंस थी, जिसने रणनीतिक और सामरिक रूप से आश्चर्यचकित कर मिस्र की सैन्य कमान संरचना को तोड़ दिया, और फिर व्यवस्थित रूप से वेस्ट बैंक और गोलान हाइट्स दोनों को सुरक्षित कर लिया। ऐसा करने में इज़राइल ने रणनीतिक गहराई हासिल की जो उसके पास कभी नहीं थी। इसने मिस्र को स्वेज नहर के पार रहने पर मजबूर कर दिया, जॉर्डन को जॉर्डन नदी के पीछे धकेल दिया और सीरिया को गोलान हाइट्स से पीछे हटने और अपनी इजराइली बस्तियों को सीरिया के तोपखाने की सीमा से बाहर रखने के लिए मजबूर कर दिया था। पिछले 71 वर्षों से, इज़राइल की सेना ने अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन अब उनकी चमक 1967 में दिखाई गई प्रतिभा के आसपास भी नहीं, न ही 1956 में उनके सिनाई पर हमला कर कब्जा करने वाले कार्यवाही जैसा। फिर भी, इज़राइल ने अपनी सैन्य सर्वशक्तिमानता की सोच बरकरार रखी है।
धारणा यह है कि उनकी सेना इज़राइल के लिए केवल एक उपकरण मात्र नहीं है, बल्कि उसकी सुरक्षा की गारंटी है। लेकिन क्या सच में ऐसा है?
किसी भी तरह का इजराइली सैन्य गतिरोध हमास के हित में होगा। धीमी आक्रमण की योजना इजराइल के नागरिकों की पुकार पर ध्यान न देने जैसा भी होगा और हमास द्वारा मिसाइल हमले को जारी रखना जन आक्रोश को और भी भड़कायेगा और उनके मौजूदा विश्वास को चकनाचूर कर यह सन्देश देगा कि सभी लोग समाज में असुरक्षित हैं।
मौजूदा हालत में इजराइल की प्राथिमकता हमास के कब्जे में बंधक अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालना है। सैन्य कार्रवाई, इजराइली जेलों में बंद हमास के लोगों से अदला बदली या फिर किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से ये बंधक निकाले जायेंगे अभी तक स्पष्ट नहीं है। इजराइल के नामवर इंटेलिजेंस समूह जिनमें शिन बाथ, मोसाद और मिलिट्री इंटेलिजेंस शामिल हैं, को जमीनी हकीकत पता लगाने में वक़्त लग रहा है। तकनीकी जानकारी को अच्छी तरह से खंगालने का काम जारी होगा, उसके बाद ही अगले कदम का निर्णय लिया जायेगा। इस बार हमास का हमला बहुत ही सुनियोजित ढंग से किया गया लगता है खासकर पैराग्लाइडिंग उपकरणों के इस्तेमाल में जिसके लिये खास प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है। प्रत्येक दिन प्रायः 13000 फिलिस्तीनी ग़ज़ा से इजराइल जीविका उपार्जन के लिये जाते थे। हमास ने शायद उनमें कुछ अपने लोगों को भी शामिल कर दिया हो जो इजराइल के रक्षा कवच की कमजोरियों का पता लगा कर आतंकवादी हमले में इस्तेमाल किया हो।
इजराइली डिफेन्स फ़ोर्स ग़ज़ा में घुसकर सैन्य कार्रवाई करने के बजाय अपना ध्यान हमास के शिखर पर महत्वपूर्ण लीडरों को ख़त्म करने पर देगा। आने वाले दिनों में ईरान या फिर क़तर में रह रहे हमास के लीडरों के खात्मे की भी संभावना है।
इस झड़प का अंत जल्द नहीं होता दिख रहा है। हमास की कोशिश उनकी झड़प को धर्म के इर्द गिर्द रची गयी मनोवैज्ञानिक युद्ध और वैश्विक स्तर पर राजनैतिक रूप से लड़ने की है जबकि इजराइल इसका जबाब सिर्फ सैन्य कार्रवाई से ही करना चाहता है। 1993 के ओस्लो शांति समझौता में यासर अराफात और इजराइली प्रधानमंत्री रोबिन दोनों को नोबल शांति पुरुस्कार से नवाजा गया पर बाद में रोबिन की हत्या कर दी गयी। अराफात का विरोध कर हमास ने 2006 के आम चुनाव में जीत हासिल की। आज इजराइल में यहूदियों और फिलिस्तीनियों दोनों पक्षों में उग्रवादी सोच का ही दबदबा है। नतीजन चल रहा झड़प बिना किसी राजनैतिक समाधान के लंबे समय तक चलता रहेगा। हिंसा का चक्र काफी तेज और घातक रूप से घुमेगा।
भारत की मौजूदा विदेश नीति आंतरिक कारकों से भी प्रभावित है जिनमें इजराइल से रक्षा के कई उपकरण जिनमें हेरॉन जैसे ड्रोन और कथित पेगसस जैसे जासूसी मालवेयर भी शामिल हैं, की खरीददारी की है। मिसाइल सुरक्षा कवच आयरन डोम की विफलता के साथ राडार का सही वक़्त पर चेतावनी न देना भी भारत के रक्षा में प्रश्न खड़े करते दिख रहे हैं। अडानी द्वारा संचालित इजराइली बंदरगाह और धर्म का समावेश भी विदेश नीति को प्रभावित करता दिख रहा है। आख़िर में भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ, खासकर, इंटेलिजेंस समूह को इजराइल की इस विफलता से सबक लेने की ज़रूरत है कि उन्हें हर समय चौकन्ना रहना होगा।
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