ग़ुलाम नबी आज़ाद का कांग्रेस को अलविदा कहना कोई अप्रत्याशित नहीं है। इसका आभास तो तभी होने लगा था जब 1 अगस्त 2018 को तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा उन्हें उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से नवाज़ा गया और बाद में नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 में आज़ाद को देश के पदम् भूषण सम्मान से भी अलंकृत किया था।
देश को 'कांग्रेस मुक्त' बनाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशों के बीच किसी कांग्रेस नेता को ही इतना सम्मान देना, आमजनों द्वारा उसी समय से आज़ाद को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा था।
कल तक जो ख़ुद 'ग़ुलाम' थे, आज़ाद हो गये
- विश्लेषण
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- 27 Aug, 2022

कांग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी आजाद कितने 'आजाद' हुए हैं। राहुल गांधी पर उनके हमलों का क्या मतलब निकलता है?
जब अमिताभ बच्चन के लोकसभा सीट से त्यागपत्र के बाद 1988 में इलाहबाद में उपचुनाव हो रहे थे, उस समय मुख्य विपक्षी उम्मीदवार विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक जनसभा में ग़ुलाम नबी आज़ाद की तरफ़ इशारा करते हुये कहा था कि जो दिल्ली में ग़ुलाम हैं वह यहां (इलाहबाद में ) आज़ाद हैं। यही वह दौर भी था जब वीपी सिंह, अरुण नेहरू, आरिफ़ मोहम्मद ख़ान, रामधन, सत्यपाल मलिक जैसे वरिष्ठ नेताओं को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया था । उस समय भी अनेक वरिष्ठ कांग्रेस नेता आज के ग़ुलाम नबी आज़ाद की ही तरह कुछ ख़ास 'चाटुकारों ' के बीच घिरे रहने का राजीव गाँधी पर आरोप लगाते थे। अंतर यह है कि तब आज़ाद की गिनती राजीव गाँधी की उस चाटुकार मण्डली में होती थी जो कथित तौर पर राजीव गाँधी को ग़लत सलाह दिया करते थे।