नया अध्यक्ष चुनने और पार्टी में अंदरूनी सिर फुटौव्वल रोकने की चुनौतियों से जूझ रही कांग्रेस एक के बाद एक ऐसे क़दम उठा रही है, जिनसे जनता में उसकी छवि सुधरने की बजाए और बिगड़ती ही जा रही है।
गुरुवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक कमेटी बनाई, जिसे मोदी सरकार की तरफ़ से जारी किए गए अध्यादेशों का अध्ययन करके इन पर पार्टी का नज़रिया तय करने की ज़िम्मेदारी दी गई है।
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हाशिए पर धकेले जा रहे हैं 'असंतुष्ट'?
पांच सदस्यों वाली इस कमेटी में उन 23 नेताओं में से एक को भी जगह नहीं दी गई है जिन्होंने पार्टी नेतृत्व में बदलाव और कार्यशैली में सुधार की मांग करते हुए सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी। इसे चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को पार्टी में हाशिए पर धकेलने की कोशिशों की शुरुआत माना जा रहा है।कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बनाई गई इस कमेटी में पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश, डॉ अमर सिंह और गौरव गोगोई को रखा गया हैं। जयराम रमेश को समिति का संयोजक बनाया गया है। यह कमेटी केंद्र की ओर से जारी प्रमुख अध्यादेशों पर चर्चा और पार्टी का रुख़ तय करने का काम करेगी। ये पांचों गांधी परिवार के क़रीबी माने जाते हैं।
इस कमेटी में ग़ुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा जैसे नेताओं को शामिल नहीं किए जाने पर सवाल उठ रहे हैं।
पार्टी में खामोशी
दो दिन पहले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के दौरान इन नेताओं समेत 23 नेताओं की ओर से सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी पर जमकर हंगामा हुआ था। चिट्ठी लिखने वाले नेताओं पर बीजेपी से सांठगांठ के आरोप तक लगे थे, हालांकि बाद में इन आरोपों से पार्टी ने आधिकारिक तौर पर इनकार किया था।इस कमेटी में सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को शामिल नहीं करने के मुद्दे पर कांग्रेस का कोई प्रवक्ता मुंह खोलने का तैयार नहीं है। आपसी बातचीत में कुछ नेताओं ने यह ज़रूर कहा है कि इस कमेटी को चिट्ठी या उसे लिखने वाले नेताओं से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
कमेटी में उन्हीं नेताओं को जगह दी गई है, जिनके पास पहले से कोई बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं है। इसके गठन में किसी को ख़ास तवज्जो देना या किसी को नज़रअंदाज़ करने जैसी कोई बात नहीं है। पार्टी अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी को यह तय करने का पूरा अधिकार है कि किसे क्या ज़िम्मेदारी दी जाए।
इस तरह की बातें विवाद से बचने के लिए कही जा रहीं है। जब इन नेताओं से यह पूछा गया कि क्या कमेटी में शामिल किए गए नेता अध्यादेशों के बारे में राज्यसभा में विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, उप नेता आनंद शर्मा, संविधान और क़ानूनी मामलों के जानकार कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार शशि थरूर जैसे नेताओं के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर राय दे सकते हैं? इस सवाल को सुनकर उनकी बोलती बंद हो गई। उनके पास यह कहने के सिवा कोई चारा नहीं बचा कि आलाकमान के फ़ैसले पर वो कुछ नहीं कह सकते।
कांग्रेस के कई नेताओं से इस बारे में हुई बातचीत से इतना इशारा ज़रूर मिला है कि आलाकमान चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को बख़्शने के मूड में क़तई नहीं है।
नाराज़ है नेतृत्व
सोनिया गांधी ने भले ही इसे पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र ज़िंदा रहने का हवाला देते हुए मामला रफ़ादफ़ा करने की कोशिश की हो। लेकिन जिस तरह राहुल ने इस चिट्ठी और इसे लिखने वालों के ख़िलाफ़ तेवर दिखाए थे, उसे देखते हुए लगता नहीं कि वह इतनी जल्दी मामले को छोड़ेगें।राहुल खेमे के लोग चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को निपटाने में जुट गए है। कार्यसमिति का बैठक के बाद इन नेताओं को दी गई नसीहत से राहुल के क़रीबी नेताओं का हौसला बढ़ा है।
निशाने पर जितिन प्रसाद
ऐसी ही कोशिश उत्तर प्रदेश में हुई। लखीमपुर खीरी की ज़िला कांग्रेस कमेटी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग की है।कपिल सिब्बल खुल कर जितिन प्रसाद के बचाव में आगे आए है। सिब्बल ने कहा है कि पार्टी को अपने लोगों पर नहीं, बल्कि बीजेपी पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करने की ज़रूरत है।
सिब्बल ने ट्वीट किया है, ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण है कि उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद को आधिकारिक रूप से निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस को अपने लोगों पर नहीं, बल्कि बीजेपी को सर्जिकल स्ट्राइक से निशाना बनाने की ज़रूरत है।’’ उनके इस ट्वीट से परोक्ष रूप से सहमति जताते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने ट्वीट किया, ‘भविष्य ज्ञानी’।
पशोपेश में पार्टी
दरअसल कांग्रेस आलाकमान ख़ासकर सोनिया गांधी नेतृत्व में बदलाव और पार्टी की कार्यशैली में सुधार की माँग को लेकर लिखी गई इस चिट्ठी को लेकर पसोपेश में दिखती हैं। इस चिट्ठी को राहुल समर्थक सोनिया और राहुल के ख़िलाफ़ बग़ावत मान रहे हैं जबकि इसमें इन दोनों के नेतृत्व में पूरा विश्वास जताया है।सोनिया गांधी एक तरफ रूठे आज़ाद और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही हैं। वहीं राहुल गांधी के क़रीबी इन नेताओं की घेराबंदी में जुटे हैं। इन नेताओं पर अंदरूनी तौर पर हो रहे हमलों से कांग्रेस में अंदरूनी जंग और ख़तरनाक मोड़ ले सकती है। पार्टी के बेहद वफ़ादार और वरिष्ठ नेताओं को बीजेपी से सांठगांठ जैसे गंभीर आरोपों से ‘बाइज़्ज़त बरी’ करना चाहिए।
लिहाज़ा सोनिया गांधी के सामने इस अविशवास के माहौल को दूर करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होना चाहिए। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या ऐसे कैसे बीजेपी से लड़ पाएगी कांगेस?
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