भारत-चीन नियंत्रण रेखा पर पिछला साल पूरी तरह शांति से गुज़रा। न कोई झड़प हुई, न ही घुसपैठ की कोई ख़बर आई।अपरोक्ष रूप से भले ही उसने भारत से लगे नक्शे में फेरबदल, भारतीय शहरों और पहाड़ों के नामों में परिवर्तन, जी-20 सम्मेलनों का श्रीनगर एवं अरुणाचल प्रदेश में आयोजन का विरोध तथा फ़िलिपीन्स और अन्य देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास की आलोचना की। लेकिन भारत की सीमा पर कोई सैन्य हरकत का जोखिम लेने का साहस वह नहीं जुटा सका।
इसका कारण यह है कि पिछले कुछ सालों में भारत के साथ हुई सैन्य मुठभेड़ों ने उसे सबक़ सिखाया है कि चीनी सेना में अब उतना दम नहीं रहा जितना पहले था। 15 जून 2020 में गलवान में हुए अप्रत्यशित नुकसान और फिर 9 दिसंबर 2022 को अरुणाचल प्रदेश के हॉट स्प्रिंग इलाके में भारतीय सेना से मिली चुनौती ने चीन को अपने अग्रिम क्षेत्र में तैनात पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों की कमजोरियों की समीक्षा और आत्म-मूल्यांकन करने पर मजबूर किया।
2023 के प्रारंभिक महीनों में उसकी सेना ने अपने प्रशिक्षण केंद्रों में उत्साहवर्धक नारों का प्रयोग कर तिब्बत में तैनात सैनिकों के गिरते मनोबल को सँभालने की भरपूर कोशिश की परंतु साल का अंत आते-आते पीएलए के अंदर उभरते अंतर्विरोधों को छुपा नहीं पाया और इसके फलस्वरूप रक्षा मंत्री के साथ-साथ एक दर्जन से ज्यादा जनरलों और रक्षा उद्योग से जुड़े लोगों को गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया। इस सैन्य उथल-पुथल से जिसमें ज़्यादातर हिस्सा स्ट्रटीजिक रॉकेट फ़ोर्स के कर्मचारियों का है, पीएलए की कमज़ोर स्थिति उजागर हुई है। इससे यह भी पता चलता है कि आज की तारीख़ में चीनी सेना सीमा पर होने वाली किसी भी बड़ी झड़प का जोखिम लेने की स्थिति में नहीं है।
पीएलए का आत्म-मूल्यांकनः 2023 में पीएलए ने सार्वजनिक रूप से अपनी सेना की कुछ आत्म-मूल्यांकित कमियों को उजागर किया। इसते तहत उसने पाँच सैन्य नारे तैयार किए जो वास्तविक युद्ध स्थितियों के तहत पीएलए की तैयारी और युद्ध संचालन करने की उसकी क्षमता के बारे में चीनी चिंताओं को रेखांकित करते हैं। पीएलए के इन पाँच प्रमुख नारों का उल्लेख अमेरिकी रक्षा विभाग की उस वार्षिक रिपोर्ट में भी है जो उसने पिछले साल चीन की सैनिक और सुरक्षा तैयारियों पर बनाई है।
चीनी सेना की सबसे पहली और बड़ी चिंता सेना के नेतृत्व एवं कमान को लेकर है। पीएलए अपने कमांडरों और अधिकारियों की युद्ध लड़ने की क्षमता के बारे में चिंतित है। उसका मानना है कि उसके सैन्य अधिकारी आधुनिक युद्ध में उभरती हुई स्थिति को समझने और तुरंत कार्रवाई करने में असमर्थ हैं। पीएलए ने इसे 'पाँच अक्षमताएँ' और 'दो विसंगतियाँ' का नाम दिया है। 'पाँच अक्षमताओं’ में ये पाँच कमियाँ दर्ज हैं। क्या हैं वो पांच कमियांः
- 1. सैन्य कमांडरों द्वारा युद्ध की वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा नहीं लगा सकना
- 2. अपने उच्च अधिकारीयों की रणनीति को न समझ पाना
- 3. युद्ध छेत्र में अपने स्तर पर कोई भी निर्णय न ले पाना
- 4. सेना की टुकड़ियों का युद्ध के स्थितियों के अनुसार अपने सोच-विचार से सही जगह पर तैनात नहीं कर पाना
- 5. अप्रत्याशित परिस्थितियों से नहीं निपट पाना
'दो विसंगतियों’ में 1. सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में स्थानीय स्तर पर युद्ध लड़ने के लिए आवश्यक तैयारी का अभाव और 2. नई सदी के नए चरण में अपने ऐतिहासिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक तैयारियों की कमी।
सेना की चिंता का दूसरा पहलू अग्रिम स्थानों पर तैनात सैनिकों में युद्ध अनुभव के अभाव को लेकर है। पीएलए ने वियतनाम युद्ध (फ़रवरी-मार्च 1979) के बाद कोई युद्ध नहीं लड़ा है और वह मानता है कि शांति के इतने लंबे दौर ने एक बीमारी का रूप धारण कर लिया है जिसके चलते सेना की तैयारियों में शिथिलता और प्रशिक्षण के प्रति उदासीनता आ गई है।
सेना की तीसरी चिंता प्रशिक्षण को लेकर है। पीएलए का मानना है कि अभी जो प्रशिक्षण दिया जा रहा है, वह बहुत ही औपचारिक और पुराने ढर्रे का है जो आधुनिक वक़्त की ज़रूरतों और अप्रत्याशित ज़मीनी स्थितियों से मेल नहीं खाता।
चीनी सेना ने अनुभव किया है कि उसके पास संयुक्त रूप से युद्ध संचालन के जानकार अधिकारियों की कमी है। उसने इस कमी को दूर करने के लिए शैक्षिक कार्यक्रम एवं प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू किए है ताकि अलग-अलग सैनिक दस्ते मिलजुलकर युद्ध करने की रणनीति को अंजाम दे सकें।
पीएलए मानता है कि आधुनिकीकरण के तमाम उपायों के बावजूद चीनी सेना की आधुनिक युद्ध लड़ने की वास्तविक क्षमता ज़रूरत के हिसाब से बहुत कम है। इसे उसने 'दो बड़ी कमियाँ' (Two Big Gaps) के रूप में चिह्नित किया है। पहली कमी है - सेना राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती। दूसरी कम है, विश्व की उन्नत सैन्य क्षमताओं वाले देशों के मुक़ाबले वह काफ़ी पीछे है।
पीएलए की इस आत्म-मूल्यांकन का एक ध्येय यह पता लगाना भी हैः
- 1. क्या सेना चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के निरंकुश नेतृत्व को क़ायम रखने में सक्षम है?
- 2. क्या ज़रूरत पड़ने पर चीनी सेना पार्टी और जनता के हित में विजयी युद्ध लड़ सकती है?
- 3. क्या सभी स्तरों पर तैनात सैन्य कमांडर इतने सक्षम हैं कि वे अपनी सेनाओं और कमानों का नेतृत्व कर सकें?
(लेखक रक्षा कॉमेंटेटर हैं)
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