ताक़तवर वही करते हैं जो वे चाहते हैं और कमजोर लोग वही भुगतते हैं जो उन्हें भुगतना चाहिए।
ईसा के जन्म के 400 साल पूर्व ग्रीस के सैन्य जनरल, दार्शनिक और इतिहासकार थ्यूसीडाइड्स ने पेलोपोनेसियन युद्ध, जो एथेंस और स्पार्टा के बीच हुआ था, के बारे में लिखा। ये दोनों प्राचीन राज्य आज ग्रीक के हिस्से हैं। पेलोपोनेसियन युद्ध के दौरान, एथेनियाई लोग मेलोस द्वीप को अपने पक्ष में करने के लिए मजबूर करने की कोशिश करते हैं। मेलियन्स ने पक्ष लेने से इनकार कर दिया। वे तटस्थ रहने और किसी भी पक्ष का साथ न देने के अपने स्वाभाविक अधिकार में विश्वास करते थे। इस घटना का उद्धरण पुस्तक के "मेलियन डायलॉग" में मिलता है जो 416 साल ईसा पूर्व में मेलोस की घेराबंदी से कुछ दिन पहले, एथेनियाई और मेलियन के बीच 'बातचीत' का एक नाटकीय रूप है।
सैन्य शक्ति से मजबूत एथेनियाई कहते हैं, ‘हम तुम्हें नष्ट करने जा रहे हैं और हम किसी को नहीं छोड़ेंगे; लेकिन इससे पहले कि हम तुम्हें मारें, तुम्हें यह अच्छी तरह समझना होगा कि हम तुम्हें क्यों मारेंगे’। और मेलियन्स कहते हैं, ‘हम जानते हैं कि हम मरे हुए समान हैं; लेकिन बदलाव के लिए हममें से हर किसी को मारकर यह साबित करने के बजाय कि आप मजबूत हैं, बदलाव के लिए हमें हमारी इच्छानुसार जीने की इजाजत देकर यह साबित क्यों नहीं करते कि आप मजबूत हैं’।
बंधकों की रिहाई की शर्तें
बंधक रिहाई सौदा अमेरिका और क़तर की मदद से हुआ जिसमें मिश्र ने भी भूमिका निभाई है। उनकी लगातार कोशिशों से और इजराइल के विरोध के बावजूद प्रभाव में लाया जा रहा है। एक समय इजराइल के कठोर रुख के कारण हमास ने बातचीत गत सप्ताह में पांच दिनों तक बंद कर दी थी, विशेष कर उस समय जब इजराइली सेना अल सिफ़ा अस्पताल में दाखिल हुई। अभी भी पूरे रिहाई के मसौदे का स्वरुप प्रकाशित नहीं हुआ है।
कई मसलों पर गतिरोध जारी है। पहले रिहाई गुरुवार से शुरू होनी थी जो शुक्रवार तक खिसका दी गयी। इसी दिन स्थानीय समय के दस बजे से चार दिनों का युद्ध विराम भी। जिन बिन्दुओं पर सहमति सामने आयी है उनमें प्रमुख रूप से सात शर्तें हैं।
दूसरा, प्रत्येक बंधक की रिहाई के बदले में, इजराइल तीन फिलिस्तीनी, जिनमें महिलाएँ और नाबालिग शामिल हैं, उनको अपनी जेलों से रिहा करेगा। इज़राइल ने इस पर भी सहमत होकर उनकी सूची प्रकाशित कर दी है। इनकी संख्या कुल 150 होगी, बशर्तें इन फिलिस्तीनी लोगों पर कोई गंभीर आरोप नहीं हों। इस तरह हमास ने यहाँ भी एक बंधक छोड़ने के बदले अपने तीन लोगों के अनुपात में छुड़ाने में सफल हो गया है। इस सूची पर इजराइल के उच्च न्यायलय की भी मुहर लग चुकी है।
तीसरा, इजराइल सबसे पहले अपने ही नागरिकों की रिहाई की मांग कर रहा था, पर अब अमेरिका के दबाब में दोहरी नागरिकता वाले बंदियों की रिहाई पर सहमत हो गया है। इजराइल को बचे हुए बंदी, जिनमें सिर्फ उनके नागरिक होंगे, की रिहाई में काफी दिक्कतें होने का अनुमान है। दूसरी तरफ़ दोहरी नागरिकता वाले बंदियों को रिहा कर हमास उन देशों में हो रहे विरोध को नाकाम कर आने वाले समय में उनके और इजराइल के बीच हो रहे संघर्ष को फिलिस्तीनी राष्ट्रीयता पर खतरा को उभारने में एक और कोशिश करेगा।
दोनों पक्षों को मालूम है कि यह सैन्य संघर्ष काफी लंबे समय तक चलेगा। बंधकों में शामिल इजराइली सैनिकों की वापसी सबसे अंत में होगी या फिर उन्हें हमास द्वारा मार दिया जायेगा।
चौथा, बंधकों की रिहाई की प्रगति को देखते हुए ग़ज़ा में मानवीय सहायता के आधार पर चिकित्सा सहित ईंधन आपूर्ति के लिए 300 ट्रक ग़ज़ा में प्रवेश करेंगे और अस्पतालों को निशाना नहीं बनाने पर इज़राइल की सहमति भी ले ली है। अल शिफा अस्पताल में हमले के बाद इजराइल के दावे के अनुरूप कुछ भी प्रमाण नहीं मिले। अब तक के सैन्य अभियान में मिले कुछ हथियार, लैपटॉप और एक सुरंग जो हमास के मुख्यालय अस्पताल के नीचे होने की इजराइली दावे को ही खोखला साबित करती हैं।
पाँचवाँ, इन युद्ध विराम के दौरान इजराइल कोई भी ड्रोन या हवाई जहाज़ से विशेष कर दक्षिण ग़ज़ा के ऊपर निगरानी नहीं करेगा जिससे हमास द्वारा बंधकों की छिपाई गई जगहों की जानकारी किसी को भी पता चल सके। यह हमास की दूर की सोच को भी उजागर करती है कि उन्होंने 7 अक्टूबर के हमले से पहले ही बंधकों के लम्बे समय तक छिपने और इजराइल की मार से सुरक्षित रखने की योजना बना डाली थी।
छठा, मिस्र का बंधक रिहाई में महत्वपूर्ण समावेश, इजराइल की लम्बी राजनयिक नीति को भी दिखलाता है। क़तर की जमीन पर हमास के नेता की मौजूदगी और उन्होंने ही बंधकों की रिहाई की पहल अमेरिका से की थी, यह जग जाहिर हो चुका है। ऐसे में मिस्र को इस प्रकरण में शामिल कर इजराइल कई राजनयिक निशाने साधने की कोशिश कर रहा है। इजराइल का मिश्र के साथ शांति संधि है। इजराइल मिस्र को आगे कर तुर्की के प्रभाव को काम करने की कोशिश कर रहा है। हमास का सम्बन्ध आज के मिश्र में प्रतिबंधित इस्लामिक ब्रदरहुड से है, जिसका विरोध उनके वर्तमान राष्ट्रपति सिसि करते हैं। और सबसे महत्वपूर्ण रफा से ग़ज़ा के अंदर आने वाले गेट पर मिश्र के नियंत्रण को बरकरार रखना भी है।
इजराइली सैन्य कमजोरी
इजराइली सेना ने अतीत में हार और विषमताओं को पार कर अपनी असीम दृढ़ता का परिचय देकर विश्व में एक प्रोफेशनल सैन्य शक्ति का परिचय दिया था। आज भी विश्व के सभी सैन्य ट्रेनिंग संस्थानों में एंटेब्बे हवाईअड्डा, युगांडा पर छापेमारी कर इजराइली सेना ने अपने बंधकों को छुड़वाया था। ऑपरेशन थंडरबोल्ट के तहत, 4 जुलाई 1976 को, इज़राइल ने 100 कमांडो को 4,000 किलोमीटर (2,500 मील) से अधिक दूर युगांडा तक भेजा था। 90 मिनट के ऑपरेशन के दौरान, 102 बंधकों को सफलतापूर्वक बचाया गया, जिनमें से तीन मारे गए। इज़राइली सेना के पांच घायल हुए और एक की मौत हो गई। कर्नल योनातन नेतन्याहू आज के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बड़े भाई थे। इसके बाद के समयक्रम में इजराइल को बंधक बनाए जाने की कई घटनाओं का सामना करना भी पड़ा है। पर आज की हालत देख यही लगता है कि उन्हें कोई सैन्य शिक्षा नहीं मिली है। उनके पास इंटेलिजेंस और फिर उससे उत्पन्न हालत पर काबू करने की कोई ठोस योजना नहीं है। इजराइली सैन्य प्रणाली हमास की रणनीति के आगे बेबस नज़र आ रही है।
संघर्षविराम समझौता के बाबजूद इजराइल और हमास की बयानबाजी में नरमी नहीं आई है। दोनों पक्ष अपने स्वयं के निर्धारित नीतियों पर अडिग हैं। हमास, जिसे अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है, घोषणा करता है, “हम संघर्ष विराम समझौता की पुष्टि करते हैं पर हमारी उंगलियाँ ट्रिगर पर रहेंगी, और हमारे विजयी लड़ाके बचाव के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे और इजराइली कब्जे को हराएँगे''। दूसरी तरफ इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक संदेश में कहा : “हम इजराइली युद्ध में हैं और हमास को संपूर्ण ध्वंस करने, सभी बंधकों को वापस लाने, इज़राइल को धमकी देने वाले किसी यूनिट के ग़ज़ा में नहीं रहने देने के सभी लक्ष्य पाने तक हम युद्ध जारी रखेंगे”।
एक सर्वे के मुताबिक़ संघर्ष के आरम्भ में हमास को ग़ज़ा में सिर्फ 33 प्रतिशत फिलिस्तीनी नागरिकों का समर्थन मिला हुआ दिखाई देता था। इजराइल के ताबड़तोड़ हमले ने ग़ज़ा में रह रहे फिलिस्तीनीओं को एक बार फिर से उनका समर्थक बना दिया और यह हमला उनके युवाओं में ज्यादा प्रभाव डाल कर समर्थन में बदल दिया है। यह इजराइल की एक राजनैतिक विफलता है। हमास अब ग़ज़ा में पहले से ज्यादा ताकतवर हो गया है। ज़रूरत थी इंटेलिजेंस पर आधारित ऑपरेशन की। अब तक जब भी इजराइल और फिलिस्तीन समस्या होती थी तब दो राष्ट्र की बात होती थी। अब हमास के रूख को देख कर लगता है कि इजराइल को तीन राष्ट्र की बातें करनी चाहिए- इजराइल, पश्चिमी बैंक पर अल फ़तेह और ग़ज़ा में हमास की पृथक राष्ट्र। पर इसके अपने अलग ही विनाशकारी दुष्परिणाम होंगे।
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