एक जमाना वह था जब नीतीश कुमार अपने आप को मंडलवादी कहते थे और यह कहते थे कि जिस दिन भारतीय राष्ट्रवाद की जगह हिंदू राष्ट्रवाद आएगा उस दिन इस देश को एक रखना मुश्किल होगा। आज उसी मंडलवादी नीतीश कुमार के राज में खुलेआम हिंदू राष्ट्र की वकालत की जा रही है।
यह आने वाले चुनाव की वजह से हो या केवल इत्तेफाक, मगर इस हफ्ते बिहार में चार हिंदुत्वादी नेता अपने-अपने कार्यक्रम कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंचालक मोहन भागवत बिहार के 5 दिनों के दौरे पर हैं तो श्री श्री रविशंकर पटना में पधारे हुए हैं। बागेश्वर पीठाधीश्वर का गोपालगंज में कार्यक्रम चल रहा है तो द्वारिका पीठ आदिश्वर जगतगुरु शंकराचार्य सदानंद सरस्वती बांका में अपनी बात रख रहे हैं।
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गोपालगंज में अपने कार्यक्रम में पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने खुलेआम हिंदू राष्ट्र की बात करते हुए कहा कि उनका संकल्प हिंदुओं को बचाना है, उन्हें जगाना है। धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि सभी हिंदू एकजुट हों तो भारतवर्ष हिंदू राष्ट्र बनेगा।
बांका में द्वारिका पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने विवादास्पद दावा किया कि भारत के संविधान में हिंदुओं को धर्म की शिक्षा देने से रोका गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूलों में हिंदू बच्चों को धर्म की शिक्षा नहीं दी जाती जबकि हकीकत यह है कि स्कूलों में रामायण और गीता की शिक्षा दी जाती है। केंद्रीय विद्यालयों में बाल रामायण और बाल महाभारत पढ़ाया जाता है।
उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंचालक मोहन भागवत ने आरडीएस कॉलेज में लगने वाली शाखा में पहुंचकर अपने स्वयंसेवकों से संवाद किया।
आरएसएस वैसे तो एक सांस्कृतिक संगठन होने का दावा करता है लेकिन मोहन भागवत से जब यह पूछा गया कि संघ भाजपा से ज्यादा करीब क्यों है तो उन्होंने कहा कि आरएसएस का स्वयंसेवक भी भारत का नागरिक है और राजनीति में उसकी भी रुचि रहती है। उन्होंने कहा कि ऐसे स्वयंसेवक भाजपा को अपने विचारधारा के करीब मानते हैं।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भाजपा को छोड़कर कोई भी राजनीतिक दल आरएसएस के स्वयंसेवक को अपने साथ लेने को तैयार नहीं होता। उन्होंने दावा किया कि राजनीति में रुचि रखने वाले स्वयंसेवक भाजपा को अपने करीब इसलिए पाते हैं क्योंकि उसने ‘अनुच्छेद 370 हटाने और श्री राम मंदिर के आरएसएस के मुद्दे’ को पूरा किया।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सत्ता बनाए रखने के लिए नीतीश कुमार किस हद तक अपनी विचारधारा से समझौता कर सकते हैं, आज हिंदुत्ववादी शक्तियों की बिहार में सक्रियता से इसका पता चलता है। उनका मानना है कि नीतीश कुमार अब लगभग सरेंडर कर चुके हैं और पहले की तरह भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस से एक दूरी बनाए रखने की नीति भी त्याग चुके हैं। कई लोगों का कहना है कि पहले हिंदू राष्ट्र का विरोध करने वाले नीतीश कुमार के लिए अब यह बात चिंता की नहीं रह गई है कि उनके राज में खुलेआम इसकी वकालत की जा रही है।
नीतीश कुमार की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि पहले उनके शासनकाल में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी कि कोई इस तरह हिंदू राष्ट्र की बात खुलेआम कहकर कानून का सामना किया बिना वापस चला जाए। इन्हीं नीतीश कुमार ने 1992 के अपने भाषण में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के रथ को रोकने के लिए लालू प्रसाद को भारत का एक बहादुर लाल बताया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नीतीश कुमार भले ही हिंदुत्ववादी नेताओं के इन प्रयासों को नजरअंदाज करें लेकिन यह दरअसल उनकी सत्ता खत्म करने की तैयारी है। बहुत से लोगों का मानना है कि दरअसल आरएसएस और पूरा हिंदूत्ववादी समूह इस बार बिहार में किसी भी तरह भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनते देखना चाहते हैं और बहुत संभव है कि यहां भी महाराष्ट्र का प्रयोग दोहराया जाए।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल बार-बार लालू प्रसाद पर यह आरोप लगाते हैं कि उनके शासनकाल यानी राजद के शासनकाल में हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा बहुत होता था और उनके शासनकाल में यह खत्म हुआ है। दूसरी ओर राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि बिहार में आरएसएस को स्थापित करने में सबसे बड़ी भूमिका नीतीश कुमार की है।
- पिछले कुछ वर्षों में रामनवमी जैसे त्योहारों को सांप्रदायिक विद्वेष बढ़ाने के लिए पहले से कहीं ज्यादा इस्तेमाल किया गया है जिसमें बिहार शरीफ का ऐतिहासिक मदरसा भी जला दिया गया था।

बिहार एक ऐसा हिंदी भाषी राज्य है जिस पर सीधे सत्ता स्थापित करने में आरएसएस और भाजपा अब तक नाकाम रही है और यह माना जाता है कि इसको लेकर हिंदुत्ववादी समूह में बहुत छटपटाहट है। याद करने की बात यह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को केवल 43 सीट मिली थी और उसे तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। इसके बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार के पास रही। भाजपा से जुड़े नेताओं का कहना है कि वह अब नीतीश कुमार को एक और मौका नहीं देना चाहती और खुद सत्ता पर काबिज होना चाहती है।
पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार आए थे तब उन्होंने नीतीश कुमार को एनडीए का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया था और इसके बाद यह चर्चा शुरू हो गई थी कि अब भाजपा अपनी सरकार चाहती है। उसी के कुछ दिनों के बाद नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार के राजनीति में आने की चर्चा ने भी जोर पकड़ा और निशांत को यह कहना पड़ा था कि एनडीए नीतीश कुमार को अपना मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करे।
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भाजपा के कुछ प्रदेश नेता अब भी यह कहते है कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन उपमुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय कुमार सिन्हा की यह बात लोगों को याद रहती है कि उन्होंने कहा था कि अटल बिहारी वाजपेई को सच्ची श्रद्धांजलि तब मिलेगी जब बिहार में भाजपा की सरकार बनेगी।
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