निशाने पर चंद्रशेखर
शुक्रवार को वे मुंबई पहुंचे थे। पता चला है कि उनको दिन भर मुंबई पुलिस ने उनको होटल में ही नज़रबंद रखा और शाम को गिरफ्तार कर लिया। वे बाबा साहब भीम राव आंबेडकर की चैत्य भूमि में दादर जाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते थे लेकिन लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही उन्हें पकड़ लिया गया। उनकी योजना शनिवार को मुंबई के वर्ली में सभा करने की थी, उनके पास अनुमति नहीं है। उसके बावजूद भी सभा करने पर आमादा चंद्रशेखर को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। एक वीडियो जारी करके चंद्रशेखर ने कहा कि वे अपने सहयोगियों से बात करना चाहते थे लेकिन पुलिस ने रोक लिया। उन्होंने सरकार से पूछा कि उन्होंने कौन सा कानून तोडा है जो उनको गिरफ़्तार किया गया है।
चंद्रशेखर ने कहा कि लगता है कि मनुस्मृति अब सरकार का नया क़ानून बन गया है जिसके तहत दलितों की बात करने या अपने तीर्थस्थानों पर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने अपनी लडाई को संविधान की रक्षा की लड़ाई बताया और दावा किया कि संघर्ष जारी रहेगा।
उन्होंने यह भी पूछा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी संविधान में मिले हुए अधिकारों को नष्ट करना चाहते हैं? क्या इस देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी समाप्त कर दी गई है?
दलित ऑइकॉन?
चंद्रशेखर को मनमांगी मुराद मिल गई है, वे यही तो चाहते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से उनकी गिरफ़्तारी और बाद में रिहाई के बाद वे एक दलित हीरो के रूप में तेज़ी से मान्यता हासिल कर रहे हैं। अब देश की आर्थिक राजधानी, मुंबई में विवाद के घेरे में आकर वे निश्चित रूप से अखिल भारतीय नेता हो जायेंगें और महाराष्ट्र सरकार उनकी योजना में अनजाने ही ज़रूरी सहयोग दे रही है। और चंद्रशेखर वह काम आगे बढ़ाने में लगे हैं जिसको कांशीराम ने शुरू किया था।
कांशीराम के रास्ते?
जब कांशीराम ने महाराष्ट्र में डॉ बी. आर. आम्बेडकर स्थापित रिपब्लिकन पार्टी के विभिन्न गुटों में एकता लाने की कोशिश की तो उनको ख़ास सफलता नहीं मिली। केंद्र सरकार के एक संस्थान के कर्मचारी के रूप में उन्होंने सरकारी सेवा में काम करने वाले दलितों का ट्रेड यूनियन तर्ज पर संगठन बनाने की कोशिश की लेकिन महाराष्ट्र में उनको कोई सफलता नहीं मिली।
जब जनता पार्टी के गठन के बाद बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लगभग सभी सवर्ण नेता एकजुट हो गए तो कांशी राम को मनोवांछित अवसर मिल गया। उसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश को अपना बनाया तो मायावती को आगे किया और उन्होंने देश की राजनीति का व्याकरण बदल दिया।
मायावती ने सहारनपुर में बहुत काम किया और उसी सहारनपुर से दलित राजनीति का एक नया नेता उभरा है। चन्द्रशेखर रावण ने भीम आर्मी नाम का एक संगठन बनाकर बड़े पैमाने पर नवजवानों को इकठ्ठा किया है। उत्तर प्रदेश ने सरकार ने उनको गिरफ़्तार किया और बाद में छोड़ना पडा। वही चंद्रशेखर रावण अब अपनी प्रभाव को बढाने के लिए महाराष्ट्र के रुख किया है।
महारों की याद
महाराष्ट्र बाबासाहब भीम राव आंबेडकर की कर्मभूमि है, वहां उन्होंने दलित चेतना के लिए बहुत काम किया, मंदिर प्रवेश आदि कार्यक्रम भी करवाए। डॉ आंबेडकर ने ही भीमा कोरेगांव में बने दलित शौर्य के स्तम्भ पर 1927 में उत्सव आयोजित किया और पेशवा की सेना पर ईस्ट इण्डिया कंपनी के महार रेजिमेंट की जीत का जश्न मनाया था। तब से १ जनवरी को हर साल वहां दलित और आंबेडकर के अनुयायी इकठ्ठा होते हैं और जश्न मनाते हैं।
दलित गौरव
पिछले साल भीमा-कोरेगांव की उस घटना के दो सौ साल पूरे होने पर विशेष कार्यकर्म आयोजित किया गया था।
भीमा- कोरेगांव की वह घटना जहां दलितों के लिए विजय का जश्न मनाने की बात है, वहीं पेशवा बाजीराव के समर्थकों के लिए शर्म की बात मानी जाती है। 1 जनवरी 2018 के दिन मराठा गर्व की बात भी सामने आ गई। संभाजी भिड़े नाम के एक बुज़ुर्ग ने दलितों के गौरव अंग्रेजों का समर्थन घोषित करके उनको घेरे में लेने की कोशिश की।
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