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जिस हमास को आतंकी संगठन बताया, उसी से ट्रंप प्रशासन की गुप्त वार्ता क्यों?

ट्रंप प्रशासन की एक चौंकाने वाली ख़बर सामने आई है। जिस हमास को वर्षों पहले अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है उसी के साथ ट्रंप प्रशासन की वार्ता की ख़बरें हैं। अमेरिकी समाचार वेबसाइट Axios ने बुधवार को रिपोर्ट दी है कि ट्रंप प्रशासन ग़ज़ा में बंधक बनाए गए अमेरिकी नागरिकों की रिहाई के प्रयास में है और इसी संभावना को लेकर इसने हमास के साथ गुप्त वार्ता की है।

रिपोर्ट में दो अज्ञात सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी गई है। इसमें कहा गया है कि ये दोनों सूत्र इन वार्ताओं से सीधे जुड़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यह गुप्त बातचीत अमेरिकी राष्ट्रपति के बंधक मामलों के दूत एडम बोहलर द्वारा पिछले कुछ हफ्तों में दोहा में हमास के साथ हुई है। यह ख़बर इसलिए भी अहम है क्योंकि अमेरिका ने 1997 में हमास को आतंकवादी संगठन घोषित किया था और इसके साथ पहले कभी सीधी बातचीत नहीं की थी।

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ट्रंप ने हमास को बार-बार भारी कीमत चुकाने की धमकी दी है और यहां तक कि ग़ज़ा पर अमेरिकी कब्जे की बात भी कही है। ऐसे में हमास के साथ गुप्त बातचीत एक अप्रत्याशित क़दम है। यह पिछले प्रशासनों से बिलकुल अलग है। Axios ने रिपोर्ट दी है कि इस रिपोर्ट के प्रकाशन से पहले व्हाइट हाउस और इसराइली प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई टिप्पणी नहीं की।

तो सवाल है कि क्या ट्रंप प्रशासन की इस बातचीत के बारे में इसराइल को पता है जो हमास के साथ किसी भी वार्ता के ख़िलाफ़ है? रिपोर्ट में कहा गया है कि हालाँकि अमेरिकी सरकार ने इस संभावना पर इसराइल से चर्चा की थी, लेकिन इसराइल को इस बातचीत की जानकारी अन्य स्रोतों से मिली। इसका मतलब है कि यह क़दम पूरी तरह से गोपनीय था और इसराइल को भी इसके बारे में साफ़ तौर पर नहीं बताया गया।

यह वार्ता मुख्य रूप से अमेरिकी बंधकों की रिहाई को लेकर थी। लेकिन सूत्रों के अनुसार सभी शेष बंधकों को रिहा करने और लंबी अवधि के युद्धविराम तक पहुंचने के लिए एक व्यापक समझौते पर भी बात हुई। हालांकि, अभी तक कोई समझौता नहीं हो सका है।
व्हाइट हाउस के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने क़तर के प्रधानमंत्री से युद्धविराम वार्ता के लिए मुलाकात की योजना बनाई थी, लेकिन एक अमेरिकी अधिकारी के अनुसार, हमास की ओर से रुचि न दिखाने के कारण यह यात्रा रद्द कर दी गई।

ग़ज़ा में बंधक संकट की स्थिति

फ़िलहाल, हमास के पास ग़जा़ा में 59 बंधक हैं, जिनमें से इसराइल रक्षा बलों ने 35 की मौत की पुष्टि की है। बचे हुए बंधकों में 5 अमेरिकी नागरिक शामिल हैं। ग़ज़ा बंधक समझौते का पहला चरण शनिवार को ख़त्म हो गया, लेकिन इसे बढ़ाने के लिए कोई सहमति नहीं बनी। हालाँकि युद्ध फिर से शुरू नहीं हुआ है, इसराइल ने ग़ज़ा में जाने वाली सभी सहायता को रोक दिया है, जिससे वहां अकाल की स्थिति क़रीब आती दिख रही है।

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यह ख़बर कई मायनों में अहम है। पहला, अमेरिका का हमास के साथ सीधा संपर्क एक नीतिगत बदलाव का संकेत दे सकता है। अब तक अमेरिका ने हमास को आतंकवादी संगठन मानते हुए उससे दूरी बनाए रखी थी और इसराइल के ज़रिए ही कोई संदेश भेजा जाता था। लेकिन अब ट्रंप प्रशासन का यह क़दम दिखाता है कि वह अपने नागरिकों की रिहाई के लिए नए रास्ते तलाश रहा है।

दूसरा, यह बातचीत इसराइल के साथ संबंधों में तनाव पैदा कर सकती है। इसराइल पहले से ही हमास के ख़िलाफ़ सख्त रुख अपनाए हुए है और ग़ज़ा में सैन्य कार्रवाई को तेज करने की तैयारी में है। ऐसे में अमेरिका का यह क़दम इसराइल को असहज कर सकता है।

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तीसरा, यह क़दम ट्रंप की विदेश नीति के अप्रत्याशित रवैये को दिखाता है। एक तरफ़ वह हमास को धमकी दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ़ उनके प्रशासन के अधिकारी गुप्त बातचीत कर रहे हैं। यह दोहरी रणनीति सफल होगी या उल्टा असर डालेगी, यह अभी साफ़ नहीं है।

ट्रंप प्रशासन की यह पहल एक जोखिम भरा लेकिन साहसिक क़दम है। अगर यह बातचीत सफल होती है, तो न केवल अमेरिकी बंधक रिहा हो सकते हैं, बल्कि ग़ज़ा में लंबे समय से चले आ रहे संकट का हल भी निकल सकता है। लेकिन हमास की अनिच्छा और इसराइल की संभावित नाराजगी को देखते हुए, इसकी सफलता संदिग्ध है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह गुप्त वार्ता क्या रंग लाती है और क्षेत्रीय समीकरणों पर इसका क्या असर पड़ता है।

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क़मर वहीद नक़वी
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