इज़राइल ने कई बार चेतावनी दी कि वह ग़ज़ा पर हमले करने जा रहा है। पिछले गुरुवार को उसने उत्तरी ग़ज़ा को 24 घंटे के भीतर खाली करने का आदेश दिया था और कहा था कि ग़ज़ावासी वह जगह खाली कर दें ताकि वह 'आतंकियों' के ख़िलाफ़ कार्रवाई करे। उसकी मियाद ख़त्म हो गई। फिर उसने कहा कि कुछ घंटों में वह हमला करने वाला है। इज़राइली सेना आईडीएफ़ लगातार हमले को लेकर चेतावनी जारी करता रहा। दुनिया भर के मीडिया में यही ख़बरें आती रहीं कि हमला कभी भी हो सकता है। लेकिन पहली चेतावनी के चार दिन बाद भी आज यानी मंगलवार को आईडीएफ़ ग़ज़ा में हमला नहीं कर पाया है। आख़िर इसकी वजह क्या है कि वह देरी कर रहा है?
ग़ज़ा में हमले में देरी के पीछे वजह क्या इज़राइल की योजना का तैयार नहीं होना है? या फिर अब अंतरराष्ट्रीय दबाव इतना ज़्यादा हो गया है कि इज़राइल कुछ रास्ता ढूंढ रहा है?
दरअसल, जो हालात बने हैं उसमें इसके पीछे कई वजहों को बताया जा सकता है। बड़ी वजहों में से एक प्रमुख है हिजबुल्लाह। लेबनॉन स्थित यह संगठन इज़राइल का कट्टर दुश्मन रहा है। समझा जाता है कि इज़राइली सेना आई़डीएफ़ को लगता है कि हिजबुल्लाह उस क्षण का इंतजार कर रहा है जब अधिकांश आईडीएफ जमीनी सेना पूरी तरह मोर्चा खोलने के लिए उत्तरी ग़ज़ा में उतरे।
हिजबुल्लाह की प्रतिक्रिया को देखते हुए आईडीएफ़ को कुछ संदेह हो रहा है। शनिवार सुबह युद्ध की शुरुआत में हिजबुल्लाह शामिल नहीं हुआ था और उसने इज़राइल पर अपने हमलों को सीमा पर ही रखा है। कहा जा रहा है कि इससे यह साबित नहीं होता है कि वह डरा हुआ है। जेरुसलम पोस्ट ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि इज़राइली सेना में कुछ लोगों को लगता है कि हिजबुल्लाह की ओर से इज़राइली सेना को लुभाने के लिए यह चारा फेंका गया हो।
इज़राइल के लिए यह संदेह पैदा करने वाली वजह हो सकती है कि वर्षों तक चुपचाप बैठे रहने वाले हमास ने यह युद्ध शुरू किया है। यानी हमास का हमला पूरी तरह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है और इस वजह से आईडीएफ भी हमास के खिलाफ पूरी तैयारी से ही हमला करना चाहेगा। इसमें वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहेगा।
एक और वजह दूसरे देशों की तीखी प्रतिक्रिया भी हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र की लगातार तीखी प्रतिक्रिया आ रही है। बहुत संभव है कि अरब देश ग़ज़ा में बड़ी त्रासदी पर गोलबंद हों। ग़ज़ा में इज़राइली रॉकेट के इस्तेमाल के बाद अब दुनिया भर की प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। मिश्र ने कहा है कि इज़राइल अब अपनी आत्मरक्षा की हद से बाहर निकल रहा है। कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया चीन और रूस की ओर से भी आ रही है। ईरान तो इस मामले में काफ़ी आक्रामक है ही।
हालाँकि, इसके बावजूद इज़राइल को अमेरिका से भारी समर्थन मिल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन यात्रा भी करने वाले हैं। तो क्या बाइडेन की यात्रा के बाद इज़राइल हमले में तेज़ी लाएगा या फिर इस अभियान को यहीं रोक देगा? यह तो अब बाद में ही पता चल पाएगा।
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