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भारत में करप्शन की बहुत बड़ी जड़ पुलिस भी है।

भ्रष्ट देशों की सूची में भारत और लुढ़का, जानिये- पिछले 10 वर्षों में कितना गिरा?

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने 2024 के लिए भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (सीपीआई) जारी कर दिया है। यानी सूची बताती है कि दुनिया के भ्रष्ट देश या भ्रष्टाचार के मामले में कौन सा देश कहां खड़ा है। दुनिया के 180 देशों में से भारत 96वें स्थान पर है, जबकि इसका कुल करप्शन लेवल स्कोर गिरकर 38 पर जा पहुंचा है। हालांकि 2023 में यह 39 था और 2022 में 40 था। यह स्कोर बताता है कि भारत में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार लगातार बढ़ा है और उसकी हालत बदतर होती जा रही है। 

रिपोर्ट के मुताबिक 2012 के बाद से 32 देश अपने भ्रष्टाचार के लेवल में उल्लेखनीय कमी लाये हैं। लेकिन इसी अवधि के दौरान 148 देशों में भ्रष्टाचार स्थिर रहा है या उसकी स्थिति और खराब होती जा रही है। सबसे कम भ्रष्ट राष्ट्रों की सूची में डेनमार्क टॉप पर है, उसके बाद फिनलैंड और सिंगापुर का स्थान है।

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भारत के पड़ोसियों में, पाकिस्तान (135) और श्रीलंका (121) अपनी-अपनी निम्न रैंकिंग से जूझ रहे हैं, जबकि बांग्लादेश की रैंकिंग और भी नीचे 149 पर है। चीन 76वें स्थान पर है।

दुनियाभर में भ्रष्टाचार का औसत स्तर 43 वर्षों से स्थिर है। इनमें दो तिहाई से अधिक देशों का स्कोर 50 से नीचे है। अरबों लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहां भ्रष्टाचार जीवन को नष्ट कर रहा है और मानव अधिकारों को कमजोर कर रहा है।

भारत का पिछला रेकॉर्ड

भ्रष्टाचार के मामले में भारत की गिरावट अगर 2015 से देखी जाये तो वो चौंकाने वाली है। 2014 में केंद्र में बीजेपी सरकार सत्ता में आई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने नारा दिया था- न खाऊंगा न खाने दूंगा। यानी भ्रष्टाचार खत्म करने के नारे के साथ मोदी सत्ता में आये थे। लेकिन उनका यह नारा जुमला ही रहा, हकीकत में नहीं बदला। कम से कम पिछला रेकॉर्ड यही बता रहा है। 2015 में भारत करप्शन के मामले में 76वें, 2016 में 79वें, 2017 में 81वें, 2018 में 78वें, 2019 में 80वें, 2020 में 86वें, 2021 में 85वें, 2022 में 85वें ओर 2023 में 93वें स्थान पर आ गया। आंकड़ों अगर गौर से देखेंगे तो पायेंगे 2019 में मोदी सत्ता में दोबारा लौटे थे और उसके बाद भ्रष्टाचार हर साल तरक्की कर रहा है। 
रिपोर्ट में कहा गया है, "दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोग तापमान बढ़ने के गंभीर नतीजों का सामना कर रहे । क्योंकि तमाम देशों में ग्रीनहाउस गैस पैदा करने में कटौती के लिए जो फंड दिया जाता है, वो भ्रष्ट्राचार की गंगा में बह जाता है।ऐसे फंड का जमकर दुरुपयोग किया जाता है। इस भ्रष्टाचार की वजह से जलवायु परिवर्तन संकट से निपटने के मकसद से बनाई गई नीतियों में बाधा आती है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है।"

रिपोर्ट में कहा गया है कि अच्छे सीपीआई स्कोर वाले कई देशों के पास दुनिया भर में भ्रष्टाचार विरोधी जलवायु कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए संसाधन और शक्ति है, लेकिन इसके बजाय, वे अक्सर ईंधन कंपनियों के हितों की सेवा करते हैं। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि "कुछ देशों में भ्रष्टाचार, पर्यावरण विनाश और अन्य अपराधों से पैदा अवैध धन आता हैं। हालांकि सीपीआई इसे मापता नहीं है, लेकिन गंदा पैसा भ्रष्टाचार की बड़ी समस्या है। इसका खतरनाक असर इन देशों की सीमाओं से भी कहीं आगे तक पहुँचता है।" 
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रिपोर्ट के मुताबिक भ्रष्टाचार एक उभरता हुआ ग्लोबल खतरा है जो विकास को कमजोर करने से कहीं अधिक लोकतंत्र को कमजोर करता है, अस्थिरता लाता है और मानवाधिकारों का उल्लंघन भी इससे होता है। रिपोर्ट में सलाह दी गई है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और हर देश को भ्रष्टाचार से निपटने को शीर्ष प्राथमिकता देना चाहिए।

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क़मर वहीद नक़वी
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