बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा किसने की थी? यदि इसका जवाब आप ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान के रूप में जानते हैं तो अब नया नाम याद करने की ज़रूरत पड़ सकती है। बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तकों में अब यह लिखा होगा कि 1971 में देश की स्वतंत्रता की घोषणा ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान ने नहीं, बल्कि जियाउर रहमान ने की थी। नई पाठ्यपुस्तकों में मुजीब की ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि भी हटा दी गई है। पाठ्यपुस्तकों में इस बदलाव की यह ख़बर द डेली स्टार ने दी है। पाठ्यपुस्तकों में ये बदलाव तब हो रहे हैं जब मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को पिछले साल अगस्त महीने में तख्तापलट कर हटा दिया गया है। अब वहाँ अंतरिम सरकार है।
नेशनल करिकुलम एंड टेक्स्टबुक बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर ए के एम रेजुल हसन ने द डेली स्टार को बताया, "2025 के शैक्षणिक वर्ष की नई पाठ्यपुस्तकों में लिखा होगा कि ‘26 मार्च, 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की और 27 मार्च को उन्होंने बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता की एक और घोषणा की'।"
यह पहली बार नहीं है कि बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तकों में इस तरह के बदलाव किए गए हैं। शेख हसीना के पिता मुजीब ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था। जियाउर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी के संस्थापक और वर्तमान बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया के पति थे। जब-जब इन दोनों परिवारों वाली पार्टियों की सरकार बनती है तब तब इस तरह के विपरीत दावे किए गए हैं।
इसके तथ्य जानने से पहले यह जान लें कि शेख मुजीबुर रहमान व जियाउर रहमान का इतिहास क्या रहा है। मुजीब ने 1973 के चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल की, हालाँकि अधिकांश रिपोर्टों के अनुसार, यह प्रक्रिया धांधली और हेरफेर से घिरी हुई थी। उन्होंने इस्लामवादी पार्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनके बारे में उनका दावा था कि उन्होंने मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया था। उन्होंने बांग्लादेश को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में स्थापित करने की कोशिश की।
स्वतंत्र बांग्लादेश में पहले तख्तापलट में 1975 में उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों के साथ उनकी हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के बाद जियाउर रहमान बड़े नेता के रूप में सामने आए। वह आगे बांग्लादेश के सैन्य प्रमुख से राष्ट्रपति बन गए। 1981 में एक और तख्तापलट के दौरान जियाउर की भी हत्या कर दी गई, लेकिन सत्ता में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने इस्लामी तत्वों पर शिकंजा कसना बंद कर दिया था और सबसे खास बात यह है कि 1978 में बांग्लादेश के संविधान से 'धर्मनिरपेक्षता' को हटा दिया।
यह आज तक मुजीब और जियाउर के राजनीतिक उत्तराधिकारियों हसीना और खालिदा के बीच मुख्य विवाद बना हुआ है। हसीना सरकारों ने इस्लामी तत्वों पर विशेष रूप से शिकंजा कसा है, जबकि खालिदा के नेतृत्व में उन्हें बढ़ावा दिया गया और उच्च पदों पर जगह दी गई।
अब ये नये बदलाव तब किए जा रहे हैं जब पिछले साल अगस्त में आंदोलन के बाद हसीना को हटा दिया गया था। 5 अगस्त को हसीना दिल्ली भाग गईं। उसी दिन ढाका में मुजीब की एक प्रतिमा को ढहा दिया। प्रदर्शनकारियों ने मुजीब के निवास को भी आग लगा दी और तोड़फोड़ की। इस निवास को 2001 में हसीना ने स्मारक में बदल दिया था। इसी घर में 1975 के तख्तापलट में उन्हें और उनके परिवार के अधिकांश लोगों को मार दिया गया था।
बहरहाल, हसीना को हटाए जाने के बाद अब देश में अंतरिम सरकार है। इस अंतरिम सरकार में बीएनपी और अन्य अवामी विरोधी पार्टियों का अहम प्रभाव है। इसी के तहत मुजीब और उनकी विरासत को निशाना बनाया गया है।
तो सवाल है कि आख़िर बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का सच क्या है? आख़िर स्वतंत्रता की घोषणा शेख मुजीबुर रहमान ने की थी या फिर जियाउर रहमान ने?
इस सवाल का बेहतर जवाब बांग्लादेश के अलग-अलग सरकार के दावों से अलग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौजूद ऐतिहासिक तथ्यों से समझा जा सकता है।
विभिन्न समकालीन स्रोतों से पता चलता है कि यह दावा कि मुजीब ने नहीं, बल्कि जियाउर ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की, बहुत अधिक तथ्यात्मक आधार नहीं लगता है। द इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में कहा है कि जियाउर ने 27 मार्च, 1971 को 'बंगबंधु' की ओर से घोषणा की थी, लेकिन मुजीब ने निश्चित रूप से एक दिन पहले ही पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किए जाने से ठीक पहले इसकी पहली घोषणा जारी कर दी थी। अख़बार के अनुसार 26 मार्च, 1971 को व्हाइट हाउस को यूएस डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी यानी डीआईए की रिपोर्ट में कहा गया था, "आज पाकिस्तान गृहयुद्ध में फंस गया था जब शेख मुजीबुर रहमान ने दो-भाग वाले देश के पूर्वी हिस्से को 'संप्रभु स्वतंत्र पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश' घोषित किया था।" 26 मार्च, 1971 को वाशिंगटन स्पेशल एक्शन ग्रुप मीटिंग के मिनट्स में भी मुजीब की घोषणा का ज़िक्र है। इस मीटिंग की अध्यक्षता तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने की थी। किसिंजर को यह बताते हुए कि पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह याह्या खान और मुजीब के बीच वार्ता क्यों टूट गई, तत्कालीन केंद्रीय खुफिया निदेशक रिचर्ड हेल्म्स ने कहा था, "एक गुप्त रेडियो प्रसारण में मुजीबुर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की है।"
सैयद बदरूल अहसान की ‘बंगबंधु’ की जीवनी के अनुसार, मुजीब ने टेलीग्राम के माध्यम से अपना संदेश भेजा था। उन्होंने संभवतः 26 मार्च, 1971 को लगभग 12.30 बजे संदेश भेजा था। अहसान ने लिखा, “जब छावनी से बाहर जाने वाले रास्ते से गोलियों की पहली आवाज़ें सुनी गईं, तो उनकी बड़ी बेटी हसीना याद करती हैं, मुजीब ने वायरलेस के माध्यम से बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए एक संदेश भेजा…” (शेख मुजीबुर रहमान: विद्रोही से संस्थापक पिता तक, 2014)।
इस घोषणा की व्यापक रूप से रिपोर्टिंग की गई थी, जिसे उसी दिन बाद में चटगाँव के कलुरघाट में स्वाधीन बांग्ला बेतार केंद्र (फ्री बंगाल रेडियो स्टेशन) से प्रसारित किया गया था। मुजीब की घोषणा का पाठ 26 मार्च, 1971 की दोपहर को अवामी लीग के सदस्य एम ए हन्नान ने बंगाली में पढ़ा। जियाउर रहमान, जो उस समय पाकिस्तानी सेना में विद्रोही मेजर थे, ने 27 मार्च, 1971 को एक और घोषणा पढ़ी, जिसकी भी व्यापक रूप से रिपोर्टिंग की गई, हालांकि अख़बारों ने जियाउर को 'जिया खान' के रूप में गलत तरीके से पहचाना।
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