अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनते ही तालिबान की सच्चाई सामने आने लगी है। इन दावों की पोल खुलने लगी है कि यह तालिबान 2.0 है, उदार है, पहले से अलग है, मध्य युगीन बर्बरता नहीं होगी वगैरह वगैरह।
अफ़ग़ानिस्तान में हुई कुछ ताज़ा घटनाओं ने साफ संकेत दे दिया है कि यह देश एक बार फिर 1996-2001 के युग की ओर लौट रहा है जब न पत्रकारों को काम करने की इजाज़त थी, न महिलाओं को कोई अधिकार था।
इसे इससे समझा जा सकता है कि तालिबान प्रशासन ने काबुल में दो पत्रकारों को निष्पक्ष रिपोर्टिेंग करने के लिए गिरफ़्तार किया और पुलिस हिरासत में उन्हें बुरी तरह पीटा।
पत्रकारों का 'ज़ुर्म'?
इन पत्रकारों का 'ज़ुर्म' यह था कि उन्होंने काबुल में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन की खबर की और उसका वीडियो भी जारी कर दिया।
लेकिन लगता है कि तालिबान को यह ख्याल नहीं रहा कि यह 1996-2001 का समय नहीं, सोशल मीडिया का युग है। अमेरिकी अख़बार 'लॉस एंजीलिस टाइम्स' के मार्सस याम और स्थानीय न्यूज एजेन्सी 'एतिलात्रोज़' ने एक तसवीर ट्वीट की है, जिसमें यह साफ दिखता है कि उन दोनों पत्रकारों को इस बुरी तरह पीटा गया कि उनके शरीर पर पिटाई के लाल निशान बने हुए हैं।
यह मामूली पिटाई नहीं थी, पिटाई कोड़े से की गई थी।
देखें यह तसवीर।
Painful. Afghan journalists from @Etilaatroz, Nemat Naqdi & Taqi Daryabi, display wounds sustained from Taliban torture & beating while in custody after they were arrested for reporting on a women’s rally in #Kabul, #Afghanistan.#JournalismIsNotACrime https://t.co/jt631nRB69 pic.twitter.com/CcIuCy6GVw
— Marcus Yam 文火 (@yamphoto) September 8, 2021
इस तसवीर में जो दो लोग दिख रहे हैं, वे स्थानीय समाचार एजेन्सी एतिलात्रोज़ के रिपोर्टर नेमतुल्लाह नकदी और तक़ी दरयाबी हैं।
एतिलात्रोज़ ने इसकी पुष्टि करते हुए अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक तसवीर जारी की है।
اطلاعات روز: تقی دریابی و نعمتالله نقدی، دو گزارشگر روزنامه اطلاعات روز پس از بازداشت توسط طالبان، به شدت مورد لتوکوب قرار گرفتهاند.
— اطلاعات روز | Etilaatroz (@Etilaatroz) September 8, 2021
آثاری از شلاق و کیبل بر سر، صورت و بدن این دو گزارشگر اطلاعات روز به چشم میخورد. pic.twitter.com/0vuEwYW28b
“
समाचार एजेन्सी के रिपोर्टरों तक़ी दरयाबी और नेमत नकदी को तालिबान ने गिरफ़्तार करने के बाद बुरी तरह पीटा। इन रिपोर्टरों के सिर और शरीर पर पड़े निशान आने वाले दिनों की ओर इशारा करते हैं।
समाचार एजेन्सी एतिलात्रोज़ के ट्वीट का हिन्दी अनुवाद
पुरानी तालिबान सरकार की याद
कोड़े की पिटाई से लोगों को तालिबान की पहली सरकार की याद आना स्वाभाविक है। यह वह दौर था जब अफ़ग़ानिस्तान में शरीआ लागू कर दिया गया था और पुरुष ही नहीं, महिलाओं को भी सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाए जाते थे।
इसका एक मक़सद यह भी था कि लोगों को मन में इतना ख़ौफ़ डाल दिया जाए कि वे प्रशासन के ख़िलाफ़ कुछ करने की ज़ुर्रत न करें। पत्रकारों की गिरफ़्तारी और कोड़ों से पिटाई से तालिबान वही संकेत एक बार फिर देना चाहता है।
पत्रकार चिल्लाते रहे, पिटते रहे
नकदी ने 'लॉस एंजीलिस टाइम्स' से कहा, "हम चिल्लाते रहे कि हम पत्रकार हैं, पर उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। मुझे लगा कि वे हमें मार डालेंगे, वे हमारा मज़ाक उड़ाते रहे।"
ज़की दरयाबी नामक ट्वियर यूज़र ने एक वीडियो क्लिप ट्वीट किया है, जिसमें कहा गया है, "हमने अपने पत्रकारों को अस्पताल भिजवाया।"
اصلاح می کنم:
— Zaki Daryabi (@ZDaryabi) September 8, 2021
همکاران مورد خشونت قرار نگرفته اند، آنها «شکنجه» شدهاند. شدید، متفاوت و بی سابقه. در طی چهار ساعت، چهار بار بیهوش شدهاند و به هوش آمده اند. می توانست حتی حالا زنده نباشند. بدن شان کبود و راه راه سیاه سیاه است. آنها شکنجه شدهاند بسیار طولانی و بیرحمانه. pic.twitter.com/bkA8eGWC0i
निशाने पर पत्रकार
तालिबान प्रशासन ने इसके पहले भी पत्रकारों पर हमले किए हैं, उन्हें गिरफ़्तार किया है।
स्थानीय समाचार टेलीविज़न चैनल 'टोलो न्यूज़' के कैमरामैन वहीद अहमदी, 'एरियाना न्यूज़' के रिपोर्टर शमी जहेश और फ़ोटोग्राफ़र को इसके पहले ही गिरफ़्तार कर लिया गया था।
पिछले महीने 'टोलो न्यूज़' के रिपोर्टर ज़ियार याद ख़ान को तालिबान के लड़ाकों ने पकड़ कर बुरी तरह मारा था, बाद में उनकी मौत हो गई।
इसके पहले तालिबान के लड़ाकों ने जर्मनी की सरकारी समाचार एजेन्सी 'डॉयचे वेले' के एक रिपोर्टर के एक रिश्तेदार की हत्या कर दी थी।
भारतीय फ़ोटोग्राफ़र दानिश सिद्दिक़ी को अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे गृह युद्ध के दौरान तालिबान ने मार दिया था। इसे लेकर तालिबान ने कई बार परस्पर विरोधी दावे किए।
लौट रहे हैं मध्य युगीन दिन?
ये सवाल अहम इसलिए हैं कि तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा करते ही लंबे चौड़े वादे किए थे। उसने कहा था कि वह उदार है, पत्रकारों को काम करने की पूरी छूट होगी, मानवाधिकारों का सम्मान किया जाएगा, लड़कियों के स्कूल-कॉलेज बंद नहीं होगे, शरीआ के तहत उन्हें पूरे अधिकार मिलेंगे, तालिबान समावेशी सरकार बनाएगा वगैरह।
तीन हफ़्ते के अंदर यह साफ हो गया है कि तालिबान ने ये वादे सिर्फ अपनी छवि चमकाने और खुद को स्वीकार्य बनाने के लिए किए थे। यह बिल्कुल नहीं बदला है।
गर्भवती पुलिस कर्मी की हत्या
महिलाओं की स्थिति इससे समझी जा सकती है कि तालिबान लड़ाकों ने एक गर्भवती महिला पुलिस कर्मी की हत्या कर दी।
इस महिला के परिवार ने आरोप लगाया कि तालिबान ने हत्या को अंजाम दिया है। हालाँकि तालिबान ने हत्या की इन रिपोर्टों को खारिज कर दिया, एक पत्रकार ने गर्भवती महिला पुलिसकर्मी के परिवार के बयान के हवाले से तालिबान द्वारा हत्या किए जाने की रिपोर्ट दी है।
“Nigara a police officer was shot dead infront of her kids and husband last night at 10PM in Ghor province. Nigara was 6 months pregnant, she was shot dead by the Taliban.” Her family members says. pic.twitter.com/w5vs1Eahsq
— BILAL SARWARY (@bsarwary) September 5, 2021
अफ़ग़ानिस्तान पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार बिलाल सरवरी ने ट्वीट किया, "महिला के परिवार वाले कहते हैं, "घोर प्रांत में कल रात 10 बजे एक पुलिस अधिकारी निगारा की उसके बच्चों और पति के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई। निगारा 6 महीने की गर्भवती थीं, तालिबान ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी'।"
तालिबान का इनकार
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी छवि सुधारने के प्रयास के तौर पर महिला अधिकारों के समर्थन का दावा करने वाले तालिबान ने इस बात से इनकार किया कि वे निगारा की हत्या में शामिल थे।
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने बीबीसी से कहा, 'हम घटना से अवगत हैं और मैं पुष्टि कर रहा हूँ कि तालिबान ने उसे नहीं मारा है, हमारी जाँच जारी है।'
रिपोर्ट के अनुसार, मुजाहिद ने कहा कि 'व्यक्तिगत दुश्मनी या कुछ और' कारणों से पुलिसकर्मी की हत्या की गई होगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान ने पहले ही पिछले प्रशासन के लिए काम करने वाले लोगों के लिए आम माफ़ी की पुष्टि कर दी है।
महिला को गोली मारी
एक दूसरी घटना में तालिबान ने पहले एक महिला को पीटा और फिर उसे गोली मार दी।
बीबीसी के अनुसार, तालिबान ने महिला को उसके पति और बच्चों के सामने पीटा और गोली मार दी।
कई अन्य लोग बदले की कार्रवाई के डर से बोलने से डर रहे थे। उन्होंने कहा कि तीन बंदूकधारी घर पहुँचे और परिवार के सदस्यों को बांधने से पहले उसकी तलाशी ली। बीबीसी द्वारा ज़िक्र किए गए एक गवाह के अनुसार, वे अरबी बोल रहे थे।
उस महिला कार्यकर्ता ने तालिबान शासन के तहत राजनीतिक अधिकारों की मांग करते हुए काबुल में एक विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था।
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