अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण होते ही जिस तरह चीन ने आगे बढ़ कर 'दोस्ती और सहयोग का रिश्ता' रखने की पेशकश कर दी और सरकार बनने के बाद आर्थिक मदद का एलान कर दिया, उससे यह सवाल उठता है कि क्या बीजिंग संकट में फँसे अफ़ग़ानिस्तान की नैया पार लगा देगा?
लेकिन इससे ज़्यादा अहम सवाल यह है कि क्या चीन के बलबूते काबुल की सरकार आर्थिक स्थायित्व हासिल कर लेगी?
इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि चीन अफ़ग़ानिस्तान के लिए अपना खजाना कितना, कब तक और किन शर्तों पर खोलेगा?
क्या अंत में अफ़ग़ानिस्तान चीन का 'सैटेलाइट स्टेट' बन कर रह जाएगा?
इन सवालों के अंतिम उत्तर देना अभी मुश्किल है, लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है।