प्लेटो अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘फीडो’ में लिखते हैं कि ‘आओ, हम सबसे अधिक इस बात का ध्यान रखें कि ऐसी विपत्ति से हम ग्रस्त न हों कि हम विवेकद्वेषी बन जाएँ, जैसे कि कुछ लोग मानवद्वेषी हो जाते हैं; क्योंकि मनुष्यों के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य कोई नहीं हो सकता कि वे विवेक के शत्रु बन जाएँ।’
धनकुबेर कंपनियों पर सिर्फ़ जुर्माने से पर्यावरण को कैसे बचाएगी सरकार?
- विमर्श
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- 10 Jul, 2022

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 में संशोधन क्यों किया जा रहा है? नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल की सजा क्यों हटाई जा रही है? क्या जुर्माने की राशि बढ़ाने से कुछ हासिल होगा?
केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा हाल ही में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (ईपीए 1986) में बदलाव को लेकर किए जा रहे प्रयास विवेकद्वेषी बनने के लक्षणों की ओर ले जा रहे हैं। मंत्रालय ने अधिनियम के महत्वपूर्ण प्रावधानों में बदलाव के लिए अपने प्रयासों के तहत संबंधित संशोधन प्रस्ताव को जन सुझावों के लिए अपनी वेबसाइट पर डाल दिया है। सरकार ने न सिर्फ ईपीए 1986 को बल्कि जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और वायु प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के उन सभी प्रावधानों को बदलने का प्रस्ताव रखा है जिनके तहत इन पर्यावरण क़ानूनों को तोड़ने वालों को जेल की सजा का प्रावधान है।