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वोकिज़्म क्या है जिस पर ट्रंप से लेकर भागवत तक हैं हमलावर?

पिछले साल विजयादशमी पर अपने भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, “डीप स्टेट, वोकिज़्म और कल्चरल मार्क्सिस्ट सांस्कृतिक परम्पराओं के शत्रु हैं। इन तीनों समूहों की कार्यप्रणाली है मीडिया और शिक्षा जगत को अपने कब्जे में लेकर शिक्षा, संस्कृति, राजनीतिक और सामजिक वातावरण में अराजकता और भ्रम की स्थिति पैदा करना। सांस्कृतिक मूल्यों और परम्पराओं का समूल ख़त्म करना इनका लक्ष्य है। इसके लिए समाज के संस्कार और आस्था को नष्ट करना इनकी कार्यप्रणाली का प्रथम चरण होता है।” उनका कहना था कि वोकिज़्म एक ऐसी खतरनाक अवधारणा है जिससे भारतीयों को बचना चाहिए।

आरएसएस नेता राम माधव एक आलेख में लिखते हैं कि ग्राम्शी से प्रेरित ये वोकिस्ट भारतीय सामाजिक व्यवस्था और परिवार व्यवस्था के विरोधी हैं। संघ का मानना है कि भारत की संस्कृति ‘हिन्दू संस्कृति‘ है और इसे वोकिज्म के माध्यम से नष्ट करने की कोशिशें की जा रही हैं। 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री के बाद संघ नेता राम माधव ने लिखा था, ‘बीबीसी की गिरावट’ ब्रिटिश अभिजात वर्ग में पनप रही ‘वोक कल्चर’ का नतीजा है। बीबीसी में पत्रकारों की एक एसी जमात पैदा हो गई है जो बीबीसी के मिशन स्टेटमेंट से ज़्यादा वोकिज़्म के प्रति प्रतिबद्धता रखती है। वोकिज़्म अराजकता का पर्याय है। मोदी पर बीबीसी के इस हमले के पीछे वोक पत्रकारों की इसी जमात का हाथ है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों मोहन भागवत से लेकर ट्रम्प तक दुनिया के दक्षिणपंथी रूढ़िवादी इस शब्द को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं? क्या वजह है कि ट्रंप द्वारा डीईआई को ख़त्म करने का आदेश, वोक कल्चर पर हमला माना जा रहा है? क्यों दक्षिणपंथी वोक शब्द को घृणा, तिरस्कार या अपमान करने के इरादे से इस्तेमाल करते हैं? क्या वजह है कि मीडिया और सोशल मीडिया की कानफोडू राजनीतिक और सांस्कृतिक बहसों में यह शब्द धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है?

यदि आप सामाजिक एव राजनीतिक मुद्दों की समझ रखते हैं और उन मुद्दों को लेकर न केवल जागरूक हैं बल्कि अपनी आवाज़ भी बुलंद करते हैं तो आप वोक हैं। सामाजिक न्याय, दलित चेतना की बात करने वाला व्यक्ति वोक है। पीड़ितों, वंचितों, दबे-कुचले तबक़ों के पक्ष में खड़े हैं तो आप वोक हैं। मानवाधिकारों, एलजीबीटीक्यू, लैंगिक समानता, स्त्री अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण जैसे जन सरोकारों के लिए संघर्ष करते हैं तो आप वोक हैं। नस्लभेद, रंगभेद, पितृसत्ता का विरोध करते हैं तो आप वोक हैं। समावेशिता के सूचक इस शब्द को क्यों गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है? यह बात समझ से परे हैं।
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क्या वोक होना अपराध है? क्या है यह वोकिज़्म? कहाँ से आया यह शब्द? आईए आज इसी के बारे में चर्चा करते हैं।

क्योंकि भारत की किसी यूनिवर्सिटी में वोकिज्म एक विषय के तौर पर पढ़ाया नहीं जाता है। इस कारण अंग्रेजी भाषा के शब्दकोष ऑक्सफोर्ड और मरियम-वेबस्टर डिक्शनरी के माध्यम से इसका अर्थ जानने की कोशिश करते हैं। इनके अनुसार ‘वोक’ का अर्थ है-- जागा हुआ या जागी हुई। या जाग जाओ। यदि वाक्य में प्रयोग करें तो ‘स्टे वोक’ stay woke यानी ‘जागते रहो’।

असल में Woke शब्द अफ्रीकी- अमेरिकन वर्नाक्युलर इंग्लिश का शब्द है जो अमेरिकन इंग्लिश के शब्द Awake के past participle ‘Awoke’  का समानार्थी है, समकक्ष है। अँग्रेज़ी के Awake का अर्थ है जागा हुआ, सचेत, सावधान। इस प्रकार अफ्रीकी– अमेरिका woke का अर्थ हुआ वह व्यक्ति जो जागा हुआ है, जागरूक है, सचेत है, सावधान है, चौकन्ना, चौकस, सजग,सतर्क है।

इसके इतिहास के बारे में बात करें तो नस्लभेद के चलते अमेरिकी अश्वेतों के मध्य उनके सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों और अधिकारों के बारे में पनप रही जागरूकता को वोकिज़्म कहा गया।

कह सकते हैं कि रेसिज्म की वजह से होने वाली हिंसा और अन्याय के ख़तरों के प्रति अश्वेतों को जागरूक या सतर्क रहने की ज़रूरत की तरफ़ एक संकेत था।

पिछली शताब्दी के तीसरे दशक यानी 1930 के आसपास अमेरिका में प्रचलित नस्लभेद के ख़तरों और अन्याय के प्रति अश्वेतों को जागरूक करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल शुरू हुआ। कहा जाता है कि प्रसिद्ध अश्वेत सिंगर लीड बैली ने 1938 में पहली बार प्रतिरोध की आवाज़ उठाते हुए अपने एक गीत "Scottsboro Boys" में ‘Stay Woke’ वाक्यांश का इस्तेमाल किया था। साठ के दशक में अमेरिका में सिविल राइट्स मूवमेंट stay woke का ही विस्तार था। उसके बाद से अश्वेतों के मध्य सामाजिक और राजनीतिक चेतना जगाने के लिए लगातार Stay Woke यानी जागते रहो, वाक्यांश का प्रयोग होता रहा। इंटरनेट के आगमन से पहले तक वोक मुख्यत: अश्वेत समुदाय के भीतर ही विमर्शों का केंद्र बिंदु बना रहा। सोशल मीडिया ने वोकिज़्म के विचार को एक नया और मज़बूत स्वर दिया। इस बारे में चर्चाओं का दायरा विस्तृत होने लगा। इस सदी के बीते दो दशकों में यूएस में सूक्ष्म नस्लीय भेदभाव और पुलिसिया दमनचक्र के चलते समय-समय पर जो Black Lives Matter आन्दोलन हुए उनकी धुरी यही Stay Woke या कहें Wokeism बना। इसके बाद ही 2017 में वोक को ऑक्सफोर्ड और मरियम वेबस्टर डिक्शनरी में जोड़ा गया था।

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धीरे–धीरे प्रगतिशील सोच रखने वाले, जनसरोकारों की बात करने वाले एक्टिविस्टों, समूहों और व्यक्तियों और युवाओं के बीच  वोकिज़्म, Stay Woke एक लोकप्रिय और बहुप्रचलित नारा बन गया। वोकनेस सामजिक जागरूकता और उच्च नैतिक मानदंडों का प्रतीक मानी जानी लगी। इसके बाद तो श्वेत, अश्वेत, कलर्ड सभी नस्लों के सेलेब्रिटीज, राजनेता भी अपनी सोच को प्रगतिशील दर्शाने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करने लगे।

वोकिज़्म नस्लभेद और रंगभेद की अमेरिकी दुनिया से निकलकर दुनियाभर के देशों में प्रगतिशील तबक़ों में आज एडवोकेसी और ऐक्टिविज़्म का वैश्विक प्रतीक बन गया है। दिलचस्प बात ये है कि अमेरिकी अश्वेत प्रतिरोध की यह आवाज़ हर देश में उसकी सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप ढलकर अलग-अलग आकार प्रकार में सामने आई। कहीं पर्यावरण, कहीं आप्रवासी, कहीं अभिव्यक्ति की आज़ादी, कहीं मानवाधिकार, कहीं सामाजिक न्याय के पक्ष में जनता को जागरूक करने तो कहीं धार्मिक कट्टरता, धार्मिक सांप्रदायिकता के विरोध को वोकिज़्म की संज्ञा दी गई।   

जैसे-जैसे वोकिज़्म सामाजिक सरोकारों के समानार्थी के रूप में जोर पकड़ने लगा वैसे-वैसे वोकिज़्म पर दक्षिणपंथी रूढ़िवादी राजनीतिज्ञों और टिप्पणीकारों का हमला तेज होता गया। वोकिज़्म की आइडेंटिटी पोलिटिक्स, पोलिटिकल करेक्टनेस, और कैंसिल कल्चर को वे एक बेहूदी अतिवादी प्रगतिशील विचारधारा बताकर खारिज करने लगे। उन्हें समाज और संस्कृति के लिए हानिकारक भटके हुए तत्व बताकर धिक्कारने लगे।

यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में दक्षिणपंथी रूढ़िवादी राजनेताओं ने समावेशिता के विचारों को ‘वोक’ कहकर मजाक उड़ाया है।

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वोकिज़्म पर बड़ा हमला करते हुए डीईआई को ख़त्म करने का आदेश कर दिया है। डीईआई डाइवर्सिटी, इक्वालिटी और इंक्लूसिवनेस का संक्षिप्त रूप है। बाइडेन प्रशासन में यह प्रावधान किया गया था कि समाज के सभी वर्गों को सरकारी नौकरियों में नियुक्तियों के समय सर्वसमावेशिता का ध्यान रखा जाए।

भारत में मीडिया और सोशल मीडिया की राजनीतिक और सांस्कृतिक बहसों में उन्हें अर्बन नक्सल, आन्दोलनजीवी, बड़ी बिंदी गैंग, टुकड़े-टुकड़े गैंग जैसी गालियों से नवाज़ा जाता है। दलित चेतना की बात करने वालों के लिए अत्यंत अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल बेहिचक किया जाता है। स्त्री अधिकारों की बात करने वाली महिलाओं को बड़ी बिंदी गैंग बताकर उनकी खिल्ली उड़ाई जाती है। जब से राहुल गांधी और कॉंग्रेस पार्टी ने जाति जनगणना का मुद्दा जोरशोर से उठाना शुरू किया तब से संघ परिवार ने उन पर भी वोकिस्ट का ठप्पा लगा दिया है।

जातिभेद को लेकर यथास्थिति बनाए रखने की कोशिशों के चलते  अब संघ परिवार और भाजपा वोकिज़्म की काट के तौर पर एक अत्यंत वीभत्स क़िस्म का नारा लेकर आए हैं- ‘बंटोगे तो कटोगे’।

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मीनू जैन
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