राजनेताओं और चुनाव पर हिसाब-किताब रखने वालों के मन में यह सवाल शायद उमड़-घुमड़ रहा होगा कि दस फ़रवरी की सुबह जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे तो क्या पिछली बार साल 2017 में हुए चुनावों के इतिहास को दोहराया जा सकेगा? क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश फिर से एक बार बीजेपी को सत्ता दिला पाएगा? या फिर यही मतदान प्रदेश को एक नई सरकार देने के अभियान की शुरुआत करेगा? क्या इस मतदान से साफ़ हो जाएगा कि एक साल तक चले किसान आंदोलन से हुए जख्म अभी भरे नहीं हैं या फिर केन्द्र सरकार के कृषि क़ानूनों को वापस लेने के फ़ैसले से वोटर ने उसे माफ़ कर दिया है? क्या यह वोट इस बात का इशारा भी करेगा कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशों को जनता ने नकार दिया है या वो लकीरें और गहरी होने लगी हैं?
पहला चरण: क्या किसान आंदोलन बीजेपी को रोक पायेगा?
- उत्तर प्रदेश
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- 9 Feb, 2022

यूँ तो चुनाव में हर चरण, हर विधानसभा सीट और हर वोटर की अहम भूमिका होती है, लेकिन माना जाता है कि पहले चरण की हवा आने वाले चरणों में माहौल बनाने में मदद करती है। मगर जीतने के लिए पश्चिम से पूरब तक हर जगह ताक़त लगानी पड़ती है।
राज्य के पहले चरण के चुनाव में जिन 58 सीटों पर वोट डाले जाने हैं उसमें पिछली बार बीजेपी ने सबका सफाया कर दिया था और उसने 53 सीटों पर कब्जा कर लिया था। इनके अलावा 4 सीटों पर वो दूसरे नंबर पर रही जबकि केवल एक सीट पर तीसरे नंबर पर आई थी। इस इलाक़े में बीएसपी को सिर्फ़ दो सीटें मिलीं। तीस सीटों पर वो दूसरे नंबर पर मुक़ाबले में रही जबकि बीस सीटों पर उसका स्थान तीसरा रहा।