राजनेताओं और चुनाव पर हिसाब-किताब रखने वालों के मन में यह सवाल शायद उमड़-घुमड़ रहा होगा कि दस फ़रवरी की सुबह जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे तो क्या पिछली बार साल 2017 में हुए चुनावों के इतिहास को दोहराया जा सकेगा? क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश फिर से एक बार बीजेपी को सत्ता दिला पाएगा? या फिर यही मतदान प्रदेश को एक नई सरकार देने के अभियान की शुरुआत करेगा? क्या इस मतदान से साफ़ हो जाएगा कि एक साल तक चले किसान आंदोलन से हुए जख्म अभी भरे नहीं हैं या फिर केन्द्र सरकार के कृषि क़ानूनों को वापस लेने के फ़ैसले से वोटर ने उसे माफ़ कर दिया है? क्या यह वोट इस बात का इशारा भी करेगा कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशों को जनता ने नकार दिया है या वो लकीरें और गहरी होने लगी हैं?