क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
अदालत ने कहा कि पीड़ितों को जमानत के मामले की सुनवाई सहित बाकी प्रक्रियाओं में शामिल होने का पूरा हक है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कई गैर जरूरी मुद्दों पर विचार किया और जल्दबाजी भी दिखाई जिस वजह से आशीष मिश्रा को जमानत दिए जाने के आदेश को रद्द किया जाता है।
आशीष मिश्रा केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे हैं और लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में उन्हें बीते साल 9 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन फरवरी में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आशीष को जमानत दे दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले में दर्ज एफआईआर को घटनाओं के एनसाइक्लोपीडिया के तौर पर नहीं देखा जा सकता और इस मामले में न्यायिक मिसालों को भी पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया और पीड़ितों को अदालत की कार्यवाही में भाग लेने के उनके हक से वंचित कर दिया।
क्या कहा था इलाहाबाद हाई कोर्ट ने?
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आशीष मिश्रा की जमानत मामले में सुनवाई के दौरान पुलिस के द्वारा मिश्रा पर लगाए गए आरोपों पर सवाल उठाए थे और उसकी जांच को भी खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने आशीष मिश्रा के द्वारा प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग करने के पुलिस के आरोप पर सवाल खड़े किए थे।
अदालत ने कहा था कि इस मामले में जांच के दौरान किसी भी मृतक या घायल शख्स के शरीर पर बंदूक की गोलियों के निशान नहीं मिले हैं।
अदालत ने कहा था कि घटनास्थल पर हजारों लोग मौजूद थे और ऐसा हो सकता है कि थार एसयूवी के ड्राइवर ने खुद को बचाने के लिए गाड़ी तेज रफ्तार में भगा दी हो और इस वजह से यह घटना घटी हो।
'आंखें बंद नहीं कर सकते'
अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि वह लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में थार एसयूवी में बैठे तीन लोगों की हत्या पर आंखें बंद नहीं कर सकती क्योंकि इस घटना के जो फोटो सामने आए हैं उन से पता चलता है कि प्रदर्शनकारियों ने कितनी बर्बरता की थी।आशीष की जमानत के खिलाफ लखीमपुर हिंसा के पीड़ित परिवारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
लखीमपुर खीरी की घटना में कुल 8 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से 4 किसान भी थे। किसानों के साथ ही बीजेपी के तीन कार्यकर्ताओं शुभम मिश्रा, श्याम सुंदर निषाद और हरि ओम मिश्रा की भीड़ ने जान ले ली थी। एक पत्रकार की भी मौत इस घटना में हुई थी।
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