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मुस्लिम मुख्यमंत्रीः पासवान वाली ग़लती दोहरा रहे हैं राजभर? 

 मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान करके या तो राजभर मुसलमानों के बड़े मसीहा के तौर पर उभरेंगे या फिर पिछले चुनाव में जीती हुई अपनी चारों सीटें भी गँवा देंगे। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कहीं पासवान की पार्टी की तरह राजभर की पार्टी भी अपने समाज में ही अपनी साख न गँवा दे।
यूसुफ़ अंसारी

तीन दिन पहले ओम प्रकाश राजभर ने अपने 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' की तरफ़ से 5 साल में 5 मुख्यमंत्री और 20 उपमुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया था। तभी लगा था कि देर-सबेर वो अपने गठबंधन में सहयोगी असदुद्दीन ओवैसी का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए ज़रूर पेश करेंगे। उनके फॉर्मूले में एक-एक साल के लिए चार अलग-अलग दलित और पिछड़ी जातियों को और एक साल के लिए किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री पद पर बैठाना है। 

क्या है मक़सद?

राजभर के इस ऐलान के पीछे असली मंशा और मक़सद क्या है और क्या वो अपने मक़सद में कामयाब हो पाएंगे, इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले हमें ये देखना होगा कि ऐसे प्रयोगों का पहले क्या अंजाम हुआ है। इस पर यूपी से लेकर बिहार तक के राजनीतिक इतिहास को खंगालना होगा। ये भी देखना होगा कि क्या राजभर राजनीति में वाक़ई कोई नया प्रयोग कर रहे हैं या फिर पुराने प्रयोगों को ही नए सिरे से दोहरा रहे हैं?

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क्या कहा राजभर ने?

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कहा है ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं बशर्ते वो मतदाता बन जाएँ। अपनी बात को और पुख़्ता करते हुए राजभर ने यह भी कहा कि प्रदेश में मुसलमानों को उनकी क़रीब 20 फ़ीसदी आबादी के हिसाब से सत्ता में भी भागीदारी मिलनी चाहिए। ये मुसलमानों का अधिकार है। बता दें कि भागीदारी मोर्चा दलित-पिछड़ों और मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी देने के हक़ में है।

राजभर का सवाल

उन्होंने सवाल किया, ‘मुसलमान का बेटा क्यों नहीं मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री बन सकता है? क्या मुसलमान होना गुनाह है?’ उन्होंने कहा, ‘अलगाववाद व पाकिस्तान की बात हमेशा करने वाली महबूबा मुफ़्ती से समझौता कर बीजेपी ने जम्मू कश्मीर में सरकार बनाई।’ उन्होंने प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री पर बाहरी होने का आरोप लगाया। 

उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि अगर योगी आदित्यनाथ उत्तराखंड से आकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो फिर असदुद्दीन ओवैसी यहाँ के मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकते?

जायज़ सवाल है

राजभर का सवाल जायज़ है। न तो मुसलमान होना कोई गुनाह है और न ही किसी मुसलमान के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनने पर कोई संवैधानिक पाबंदी है। न ही ऐसा कोई प्रावधान है कि राज्य में बाहर से आकर बसने वाला कोई व्यक्ति उस राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। मुख्यमंत्री बनने के लिए राज्य का मतदाता होना ज़रूरी है। इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि वो कितने दिन पहले मतदाता बना है। 2003 में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं उमा भारती को 2012 में बाजेपी ने उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करके विधानसभा का चुनाव लड़ा था।

किन राज्यों में बने मुस्लिम मुख्यमंत्री

ऐसा नहीं है कि किसी प्रदेश में कभी कोई मुस्लिम मुख्यमंत्री न बना हो। जम्मू-कश्मीर एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य रहा है। लिहाज़ा वहां हमेशा मुख्यमंत्री मुसलमान ही रहा है। जम्मू क्षेत्र हिंदू बहुल रहा है। लिहाज़ा संतुलन बनाने के लिए कई बार उपमुख्यमंत्री हिंदू बनाया गया। जम्मू- कश्मीर के अलावा देश के 6 राज्यों में भी मुस्लिम मुख्यमंत्री हुए हैं। केरल, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, असम और मणिपुर में थोड़े समय के लिए मुस्लिम मुख्यमंत्री रह चुके हैं। ख़ास बात यह है कि केरल और मणिपुर को छोड़कर बाक़ी सभी राज्यों में कांग्रेस ने मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाए। केरल में कुछ दिनों के लिए मुस्लिम लीग का और मणिपुर में मणिपुर पीपुल्स पार्टी का मुख्यमंत्री दो बार बना है। इनके अलावा विधानसभा वाले एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में कांग्रेस के एम ओ एच फ़ारूक़ तीन बार मुख्यमंत्री बने हैं। दो बार कांगेस से और एक बार डीएमके से।

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राजभर ने क्यों छेड़ा राग?

देश भर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का माहौल है। उत्तर प्रदेश में कुछ ज़्यादा ही है। हिंदू-मुसलमान करके बीजेपी पिछले चुनाव में 312 और अपने सहयोगियों के साथ 325 सीटें जीत गई थी। इस बार भी विधानसभा चुनावों से पहले रोहिंग्या मुसलमानों का राज्य में घुसपैठ और मूकबधिर बच्चों के धर्मांतरण जैसे मुद्दे गरमाकर बीजेपी पिछला प्रदर्शन दोहराने की रणनीति बना रही है। दो बच्चों के क़ानून पर भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत भड़काकर हिंदू वोट एकजुट करने के लिए ज़ोरशोर से चर्चा की जा रही है। मुसलमानों के तिरस्कार और सामाजिक बहिष्कार के दौर में मुस्लिम मुख्यमंत्री की बात करना तूफ़ान में दिया जलाने की कोशिश है।

मुसलमानों का मसीहा बनने की चाहत

लगाता है कि राजभर मौजूदा राजनीतिक हालात में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की बात करके मुसलमानों का मसीहा बनना चाहते हैं। कांशीराम की मौत और ‘मौलाना’ मुलायम के राजनीति में लगभर निष्क्रिय हो जाने के बाद यूपी में यह जगह ख़ाली है। कांशीराम दलित-मुस्लिम एकता के पैरोकार थे और मुलायम माई (MY) यानी मुस्लिम-यादव समीकरण के चैंपियन रहे हैं। दोनों ने ही सत्ता के सिंहासन तक पहुँचन के लिए मुसलमानों का भरपूर इस्तेमाल किया। लेकिन कभी मुख्यमंत्री तो छोड़िए कभी किसी मुसलमान को उपमुख्यमंत्री तक नहीं बनाया। मुसलमानों की बरसों से यह दबी हुई इच्छा रही है कि उनके समाज से भी कोई मुख्यमंत्री नहीं तो कम से कम उपमुख्यमंत्री तो बने। राजभर ने इसे भांप लिया है। अब वो मुसलमानों के दिल में अपनी जगह बनाकर अपनी पार्टी को विस्तार देना चाहते हैं।

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सपा-बसपा और मुसलमान

पिछले तीन दशक में सत्ता में तीन-तान बार रहने वाली सपा और बसपा की सरकारों में यूँ तो मुसलमनानों को ठीक-ठाक हिस्सेदारी मिली है। सपा की सरकार में आज़म ख़ान हमेशा 5-6 बड़े मंत्रालयों के साथ नंबर दो की स्थिति में रहे तो बसपा की सरकारों में नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी ने यही भूमिका निभाई। इन दोनों को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता था लेकिन नहीं बनाया गया। प्रदेश के मुसलमानों इसका मलाल तो है। इसीलिए असदुद्दीन जैसे नेता सपा-बसपा पर आरोप लगाते हैं कि इन्होंने मुसलमानों के वोट तो लिए लेकिन सत्ता में आने पर उन्हें वाजिब हिस्सेदारी नहीं दी। ओवैसी इसी पर राजनीति कर रहे हैं।

मुस्लिम मुख्यमंत्री पर क्या बोले थे मुलायम?

साल 2003 में जब मुलायम सिंह यादव तीसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने तो एक मुलाक़ात के दौरान मैंने उनसे कहा कि आप आज़म ख़ान को उपमुख्यमंत्री बना दीजिए। ख़ुद तीसरे मोर्चे की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बन जाइए। साथ ही ये ऐलान कर दीजिए कि मैं अगर प्रधानमंत्री बना तो आज़म यूपी के मुख्यमंत्री होंगे। इससे देशभर का मुसलमान आपको वोट दे देगा। वो हँसे और बोले मुसलमान तो वोट दे देगा लेकिन यादव बीजेपी में भाग जाएगा। आप नहीं जानते हमारे समाज को। अपने साथ रखने के लिए क्या-क्या जतन करन पड़ते हैं। साथ ही बोले आज़म बग़ैर उपमुख्यमंत्री बने ही बहुत ताक़तवर हैं।

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पासवान का तजुर्बा 

मुलायम की कही बात को मैंने पासवान के तजुर्बे पर खरी उतरते हुए देखा। ओमप्रकाश राजभर जो फ़ॉर्मूला लेकर आए हैं, इसे 2005 में बिहार में रामविलास पासवान आज़मा चुके हैं। किसी मुसलमान को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने की मांग करके उन्होंने ख़ुद अपनी पार्टी का बंटाधार कर लिया। फ़रवरी 2005 में हुए चुनाव में बिहार में त्रिशंकु विधानसभा बनी। नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ तो ली थी लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाए थे। लिहाजा राष्ट्रपति शासन लग गया था। इस बीच रामविलास पासवान ने फ़ॉर्मूला सुझाया कि अगर नीतीश जदयू के किसी मुस्लिम नेता को मुख्यमंत्री बना दें तो वो उसे समर्थन देंगे। साथ ही उन्होंने कांग्रेस से भी समर्थन देने की अपील की थी। नीतीश राज़ी नहीं हुए। कोई सरकार नहीं बन पाई। नवंबर में फिर विधानसभा चुनाव हुए। रामविलास पासवान को उसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ा। फ़रवरी में हुए चुनाव में उनकी पार्टी को 29 सीटें मिली थीं। नवंबर में हुए चुनाव में पार्टी महज 10 सीटों पर सिमट कर रह गई। उसके बाद पासवान की पार्टी की विधानसभा में कभी 10 का आँकड़ा पार नहीं कर पाई।

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क्या होगा राजभर का?

बिहार में रामविलास पासवान ने जब मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी तब वह अपने समर्थन से सरकार बनाने की स्थिति में थे। लेकिन उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर जब मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की बात कर रहे हैं तब वह इस स्थिति में नहीं हैं। मौजूदा विधानसभा में उनके सिर्फ़ 4 विधायक हैं जो कि उन्होंने बीजेपी के समर्थन से जीते थे। हालाँकि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं और पाने के लिए पूरा जहां पड़ा हुआ है। राजभर ने 2002 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की स्थापना की थी। तब से उनकी पार्टी विधानसभा और लोकसभा का हर चुनाव लड़ती रही है। बिहार में भी उन्होंने चुनाव लड़े हैं। हर चुनाव में नए गठबंधन के साथ सामने आते हैं। 2012 में पीस पार्टी और अपना दल के साथ मिलकर उनकी पार्टी ने 52 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जीत तो एक सीट भी नहीं पाए थे। लेकिन 4 लाख 77 हजार वोट उनकी पार्टी को मिले थे। इन्हीं वोटों के आधार पर बीजेपी से सौदेबाज़ी की और 2017 में उसके साथ मिलकर 8 सीटों पर चुनाव लड़ा और चार जीत ली।

अब मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान करके या तो राजभर मुसलमानों के बड़े मसीहा के तौर पर उभरेंगे या फिर पिछले चुनाव में जीती हुई अपनी चारों सीटें भी गँवा देंगे। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कहीं पासवान की पार्टी की तरह राजभर की पार्टी भी अपने समाज में ही अपनी साख न गँवा दे।

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