योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के प्रशासन और क़ानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए 74 रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस अफ़सरों ने एक खुली चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में साफ तौर पर कहा गया है कि 'प्रदेश की शासन व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है' और 'नियम-क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाई गई हैं।'
चार पेज की इस चिट्ठी में शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर पुलिस ज़्यादती और निर्दोष लोगों की पुलिस यंत्रणा और लोगों की हत्या पर सवाल उठाए गए हैं।
इसमें 'लव जिहाद' का नाम लेकर और एनएसए व यूएपीए का दुरुपयोग करते हुए मुसलमानों को निशाने पर लेने का आरोप भी लगाया गया है।
इसमें यह भी कहा गया है कि विरोधियों और सरकार से असहमत लोगों को इन क़ानूनों की आड़ में फंसाया गया है और उन्हें परेशान किया गया है।
200 अहम लोगों का समर्थन
इस खुले पत्र का समर्थन 200 अहम व प्रतिष्ठित लोगों ने किया है। इसमें कहा गया है, 'हम इस पर बेहद चिंतित हैं कि उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार दिन प्रतिदिन संविधान के मूल्यों और शासन के स्थापित मॉडलों ने दूर होती जा रही है।'
चिट्ठी में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि कार्यकारी, मजिस्ट्रेट और पुलिस समेत प्रशासन की सारी शाखाएं ध्वस्त हो गई हैं। हमें आशंका है कि यदि इसे नहीं रोका गया तो संस्थाओं को जो नुक़सान होगा उससे लोकतंत्र ध्वस्त हो जाएगा और सड़-गल जाएगा।
कप्पन पर चिंता
केरल के पत्रकार सिद्दिक़ कप्पन की भी चर्चा की गई है और कहा गया है कि वे 200 दिनों से जेल में हैं। सरकार की कमियों को उजागर करने वालों को सजा देने के लिए व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है।
याद दिला दें कि मलयालम भाषा के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन हाथरस बलात्कार कांड की खबर जुटाने जा रहे थे कि पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में हिरासत में ले लिया। उन पर आतंकनिरोधी क़ानून, यूएपीए, राजद्रोह और दूसरे कई तरह की धाराएं लगा दी गई हैं।
'निशाने पर मुसलमान'
मुसलमानों के साथ हो रहे व्यवहार पर भी इस चिट्ठी में चिंता जताई गई है। इस खुले पत्र में कहा गया है कि मौजूदा सरकार सत्ता में आने के बाद से ही खुल कर और बेरोकटोक मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।
इसके आगे यह कहा गया है कि यदि इसे नहीं रोका गया तो राज्य में अगले साल होने वाले चुनावों को देखते हुए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ध्रुवीकरण बढ़ेगा और दंगे भी हो सकते हैं।
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