उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले के 28 साल के मुहम्मद जावेद के 14 नज़दीकी रिश्तेदार जेल में हैं। जावेद की कपड़े की दुकान है। दुकान के पास ही 21 साल की युवती से जावेद को प्रेम हो गया। 17 नवंबर, 2020 को युवती घर से भाग गई और कथित रूप से धर्म परिवर्तन कर विवाह कर लिया। मामले में मुख्य आरोपी जावेद फ़रार है। पुलिस ने इस मामले में और 5 लोगों पर 25,000 रुपये का इनाम रखा है और अभियुक्तों को तलाश रही है।
भारत के संविधान में सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता और अबाध रूप से धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार दिया गया है। संवैधानिक प्रावधानों में बल, कपट, लोभ या फुसलाकर धर्म परिवर्तन को रोका गया है। संविधान के मूल अधिकारों में नागरिकों को दिए गए अधिकार और न्यायालय द्वारा समय-समय पर उसकी व्याख्याओं ने नागरिक अधिकारों की स्थिति साफ़ कर दी है। वहीं भारतीय जनता पार्टी के 2014 में सत्ता में आने के बाद ‘लव जिहाद’ जैसे शब्दों का तेज़ प्रचार शुरू हुआ। उत्तर प्रदेश में 2017 में बीजेपी की पूर्ण बहुमत सरकार बनने और 2019 में केंद्र में दोबारा सत्ता में आने के बाद यह चरम परिणति पर पहुँच गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 28 नवंबर 2020 को 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020' लागू कर दिया।
इस क़ानून ने तमाम समस्याएँ पैदा कर दी हैं। राज्यपाल द्वारा अध्यादेश को मंजूरी मिलने और उसे लागू होने के कुछ घंटे के भीतर बरेली ज़िले के देवरनिया थाने में इस क़ानून के तहत पहला मामला दर्ज हुआ, जहाँ शरीफनगर गाँव के किसान टीकाराम ने पुसिल में शिकायत दर्ज कराई कि उनके पड़ोस का एक युवक उनकी बेटी पर धर्म परिवर्तन का दबाव बना रहा है। दिलचस्प है कि अभियुक्त एक साल पहले लड़की के साथ चला गया था और उसके ऊपर मामला दर्ज किया गया था। दोनों पक्षों के बीच समझौता भी हो गया था। लेकिन नए अध्यादेश के बाद धर्म परिवर्तन कर शादी का दबाव बनाने का मुक़दमा दर्ज हो गया।
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद का एक वीडियो वायरल हुआ। धर्म के स्वयंभू रखवाले बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एक मुसलिम युवक और हिंदू लड़की से पूछ रहे थे कि क्या युवती ने धर्म परिवर्तन के अपने इरादे को लेकर ज़िलाधिकारी को अवगत कराया है, जो कि नए क़ानून के मुताबिक़ आवश्यक है? मामले में युवक और उसके भाई को गिरफ्तार कर लिया गया। वे 15 दिन जेल में रहे।
मुरादाबाद मामले में पुलिस ने जबरन धर्म परिवर्तन का कोई सबूत नहीं पाया और युवकों को रिहा कर दिया गया। मामले में यह भी सामने आया कि युवती को उसके पति से अलग कर दिया गया और उचित देखभाल न होने के कारण उसका गर्भपात हो गया।
मुसलिम के साथ ईसाइयों के ख़िलाफ़ भी बाक़ायदा अभियान चल रहा है। 22 दिसंबर, 2020 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ ज़िले में कथित रूप से एक परिवार के लोगों को ईसाई बनाने के आरोप में 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया। आजमगढ़ के कैथौली गाँव के अशोक कुमार यादव ने आरोप लगाया कि 3 लोग उसके पड़ोसी त्रिभुवन यादव को लुभावने पेशकश कर धर्म परिवर्तन करने को कह रहे हैं। इस मामले में भी यूपी के नए धर्म परिवर्तन क़ानून के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया।
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धर्म परिवर्तन को कथित रूप से रोकना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे में रहा है। आरएसएस समय-समय पर इस मसले को उठाता रहा है। वहीं अब बीजेपी के सत्ता में आने के बाद बजरंग दल सहित अनेक संगठन खड़े हो गए हैं, जो धर्म परिवर्तन के नाम पर जगह-जगह अपने मुताबिक़ क़ानून चला रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार का यह क़ानून बीजेपी शासित राज्यों के लिए रोल मॉडल बन गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने भी इसी तरह का क़ानून ‘मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2020’ को मंजूरी देने के लिए अगले शनिवार यानी 26 दिसंबर, 2020 को कैबिनेट की बैठक बुलाई है। मध्य प्रदेश में इसे ‘एंटी लव जिहाद क़ानून’ कहा जा रहा है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 22 दिसंबर, 2020 को दिए गए एक फ़ैसले में एक बार फिर साफ़ किया है कि कोई भी वयस्क अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ विवाह करने और धर्म बदलने को लेकर स्वतंत्र है। नांदिया ज़िले के दुर्गापुर गाँव के एक 44 साल के किसान ने न्यायालय में कहा कि उसकी बेटी 15 सितंबर को घर छोड़कर चली गई। उसने धर्म परिवर्तन कर मुसलिम नाम रखा और विवाह कर लिया। लड़की के घर छोड़ने पर पिता ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि उसकी बेटी का अपहरण हो गया है। पुलिस ने लड़की को गिरफ्तार कर जब न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया तो उसने बयान में कहा कि उसने अपनी मर्ज़ी से विवाह किया है।
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ऐसा नहीं है कि देश में बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन हो रहा है। स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन के मामले भी न के बराबर हैं। ऐसा लगता है कि धर्म परिवर्तन न होने के कारण आरएसएस-बीजेपी के लिए प्रेम विवाह का मसला ही बच गया है। भारत में प्रेम विवाहों को समाज में मान्यता नहीं दी जाती है और समय-समय पर ऐसे मामले आते हैं कि एक ही जाति में स्वेच्छा से विवाह करने वाले युवक-युवतियों को परिजन उत्पीड़ित करते हैं और उनकी हत्या तक हो जाती है। अंतरजातीय विवाह में प्रेमी जोड़ों के उत्पीड़न के मामले और बढ़ जाते हैं। अंतरधार्मिक होने पर स्वाभाविक रूप से स्थिति और बिगड़ती है।
भारत में बच्चे पैदा करने वाले माता-पिता की यह मानसिकता बनी हुई है कि वे जहाँ तय करें, उन्हीं के साथ उनके बच्चे यौन और वैवाहिक संबंध बनाएँ। प्रेम विवाह के मामलों में माता-पिता की कथित ‘इज्जत’ कहीं चली जाती है। उसे वापस पाने की कवायद में माता पिता अपने बच्चों को उत्पीड़ित करते हैं। यह उत्पीड़न हत्या तक पहुँच जाता है और ऐसा करने वाले यह भी नहीं सोचते कि उनके फ़ैसलों से कई पुस्तों के लिए उनके और उनके बच्चों की तबाही होने वाली है।
बीजेपी-आरएसएस ने लोगों की मनोभावना को पकड़ लिया है। उसके लिए यह धर्म परिवर्तन का मुद्दा कम, राजनीतिक मुद्दा ज़्यादा है। सरकार के पास कोई आँकड़े भी नहीं हैं कि देश में कितनी अंतरधार्मिक शादियाँ हुई हैं।
तमाम ऐसे प्रेम विवाह हैं, जिनमें हिंदू युवाओं ने मुसलिम युवतियों से विवाह किया है। स्वाभाविक रूप से अगर कोई मुसलिम लड़की हिंदू परिवार में आती है तो वह व्यावहारिक रूप से हिंदू धर्म अपना लेती है। इस तरह के मामलों में मुसलिम लड़कियाँ हिंदू बन जाती हैं। अगर कोई आँकड़ा होता तो यह बेहतर तरीक़े से स्पष्ट हो पाता कि इस तरह की शादियों में धर्म बदलने का संतुलन किसके पक्ष में है। हालाँकि यह जान लेने का भी कोई मतलब नहीं बनता, लेकिन सरकार को ये आँकड़े भी नहीं पता हैं।
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