उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले जिस बीजेपी की हालत ख़राब बताई जा रही थी वह आख़िर चुनाव जीतने में कैसे सफल रही? जिस राज्य में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा था, जहाँ एंटी-इंकंबेंसी थी, जहाँ बीजेपी के ही सहयोगी ऐन चुनाव से पहले साथ छोड़ रहे थे और जहाँ रिपोर्टों में कहा गया था कि हालात संभालने के लिए संघ को लगना पड़ा है वहाँ आखिर किस वजह से बीजेपी सत्ता बचाने में सफल हो पाई?
इन सवालों के जवाब बीजेपी की उत्तर प्रदेश शाखा ने ही दी है। रिपोर्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन पर रिपोर्ट मांगी थी। समझा जाता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए इस रिपोर्ट का विश्लेषण कर रणनीति बनाई जाएगी।
रिपोर्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट में जीत के सबसे अहम कारण 'बसपा से वोटों का स्थानांतरण' और 'फ्लोटिंग वोट' माने गए हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ओबीसी वोट दूर जा रहे हैं और सहयोगी दलों के वोट बीजेपी को स्थानांतरित नहीं होने के कारण सीटों की संख्या में गिरावट आई है।
रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कुशवाहा, मौर्य, सैनी, कुर्मी, निषाद, पाल, शाक्य, राजभर जैसी विभिन्न ओबीसी जातियों ने बड़े पैमाने पर बीजेपी को वोट नहीं दिया और इसके बजाय इनके वोट सपा गठबंधन में स्थानांतरित हो गए। 2017 में इन जातियों ने बीजेपी का समर्थन किया था। इसी वजह से पिछले चुनाव में बीजेपी गठबंधन को जबर्दस्त जीत भी मिली थी, लेकिन इस बार सीटें कम हो गईं। बीजेपी और उसके सहयोगी अपना दल (एस) व निषाद पार्टी को 273 सीटें मिली हैं।
चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी इस बात को लेकर अति उत्साह में थी कि इस बार उसका प्रदर्शन बढ़िया रहेगा और चुनावी रैलियों में सपा नेताओं के भाषणों से लग रहा था कि वे इस बार बीजेपी को सत्ता से दूर कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
चुनावी रैलियों में सपा गठबंधन के नेता इसका भी संकेत देते रहे थे कि बीएसपी सपा गठबंधन को नुक़सान पहुँचाएगी और बीजेपी को फायदा पहुँचाएगी।
तभी सपा गठबंधन के नेता बीएसपी पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगाते रहे थे और दावा कर रहे थे कि केंद्रीय एजेंसियों के डर से मायावती ने हथियार डाल दिए हैं। मायावती बीजेपी की बी टीम होने के आरोपों को खारिज करती रही हैं। हालाँकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी और सपा दोनों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन उनका प्रदर्शन तब भी ख़राब ही रहा था।
अब जो यूपी बीजेपी ने चुनाव में प्रदर्शन का विश्लेषण किया है उसमें भी बीएसपी के वोट को बीजेपी को ट्रांसफर होने की बात कही गई है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने बीजेपी के सूत्रों के हवाले से यह रिपोर्ट दी है। पार्टी के सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट क़रीब 80 पृष्ठों की है जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय से मांगे जाने के जवाब में भेजी गई है।
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि बीजेपी के सहयोगी अपना दल (कुर्मियों) और निषाद (निषादों) के प्रमुख जाति आधारों ने बीजेपी का समर्थन नहीं किया, भले ही बीजेपी का वोट बैंक उनके पास गया। यह इस तथ्य से संकेत मिलता है कि उनकी संख्या 2017 से बढ़ी, जबकि बीजेपी की घटी। सिराथू निर्वाचन क्षेत्र से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की हार में इन जातियों के समर्थन की कमी को एक प्रमुख कारण के रूप में पहचाना गया है।
सपा के पक्ष में मुसलिम समुदाय के ध्रुवीकरण को भी कुछ सीटों के नुक़सान के कारणों में से एक के रूप में पहचाना गया।
रिपोर्ट में इसका भी ज़िक्र है कि क्या लाभार्थियों के वोट बीजेपी को मिले। बीजेपी ने यह भी बारीकी से देखा है कि विभिन्न सरकारी योजनाओं के अनुमानित 9 करोड़ लाभार्थियों ने कैसे मतदान किया। एक नेता ने कहा, 'यह पाया गया कि बहुमत ने राजनीतिक रूप से बीजेपी का समर्थन नहीं किया, हालांकि उन्होंने एनडीए की कल्याणकारी योजनाओं की प्रशंसा की।'
रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी ने इस पर भी गौर किया है कि कम से कम 311 सीटों पर सपा गठबंधन को उससे ज़्यादा डाक वोट क्यों मिले। लगभग 4.42 लाख डाक मतों में से, सपा गठबंधन को 2.25 लाख वोट मिले और भाजपा व सहयोगियों को 1.48 लाख वोट मिले।
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