अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ अहमद की प्रयागराज में गोली मारकर हत्या करने के पीछे वजह क्या है? हत्या के आरोप में पकड़े गए तीन आरोपियों के हवाले से पुलिस ने कहा है कि उन्होंने कुख्यात होने के लिए यह हत्या की। लेकिन क्या यह संभव है? क्या यह बात इतनी आसानी से गले से उतरती है?
अतीक अहमद हाई प्रोफाइल गैंगस्टर से सांसद बने थे। उन पर हाई प्रोफाइल केस भी चल रहे थे। उन पर सौ से ज़्यादा मुक़दमे दर्ज थे। कहा जाता है कि लोगों में उनका खौफ था। तो सवाल है कि जो ऐसा कुख्यात गैंगस्टर था, जिसकी सुरक्षा में क़रीब 20 जवान थे, मीडिया कर्मियों के कैमरे लाइव थे, कोई कुख्यात होने के लिए इतना नज़दीक आकर धड़ाधड़ 10 राउंड गोलियाँ दाग देगा? पुलिस के अनुसार आरोपी हत्यारों ने पुलिस से कहा है कि उन्होंने नाम कमाने यानी कुख्यात होने के लिए यह वारदात की, क्या इसे आसानी से माना जा सकता है? इस दावे पर कई सवाल उठ रहे हैं।
लेकिन इन सवालों से पहले यह जान लें कि आख़िर वारदात कैसे हुई थी। अतीक अहमद और अशरफ़- दोनों को प्रयागराज पुलिस कॉल्विन अस्पताल में शनिवार रात को मेडिकल परीक्षण के लिए ले गई थी। दोनों अस्पताल के प्रवेश द्वार से कुछ गज की दूरी पर ही थे जब मीडियाकर्मी उनसे सवाल पूछने के लिए जुट गए। मीडियाकर्मियों ने अतीक से सवाल पूछने शुरू कर दिए। अतीक ने जवाब देना शुरू ही किया था कि वहाँ हलचल मच गई। कैमरे में अतीक के पीछे पिस्तौल लिए हुए एक हाथ दिखाई दिया जो अतीक की सफेद पगड़ी को बंदूक की नोक से धकेलता हुआ उसकी बाईं कनपटी पर प्वाइंट ब्लैंक रेंज से फायरिंग कर रहा था। बिल्कुल उसी वक़्त एक और गोली अशरफ की गर्दन में बाईं ओर से लग गई और दोनों भाई जमीन पर गिर पड़े।
इन घटनाक्रमों को देखकर ही कई सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या इन हत्याओं के पीछे की कुछ और कहानी तो नहीं है जो अब तक सामने नहीं आई है।
ये सवाल उठ रहे हैं
- वीडियो में दिखता है कि शूटर किसी भी कीमत पर दोनों भाइयों को जिंदा नहीं छोड़ा चाहते थे। बंदूक अतीक अहमद के सिर पर रख दी गई और फायर कर दिया गया। ऐसा दुस्साहस अंडरवर्ल्ड में भी शायद ही मिले। यदि किसी को सिर्फ़ कुख्यात होना होता तो दूर से भी निशाना लगाया जा सकता था। निशाना चूकने पर भी आरोपी कुख्यात तो हो ही जाते। पूरे घटनाक्रम में आसपास मौजूद पुलिस को कोई चोट नहीं आई। उन पर कोई गोली नहीं चलाई गई, यह थोड़ा हैरान करने वाला है।
- हैरानी की बात यह भी है कि हत्यारों ने भागने की कोशिश नहीं की। नाटकीय रूप से उन्होंने अपने हाथ ऊपर उठाए और चिल्लाए कि वे आत्मसमर्पण कर रहे हैं। उनमें घबराहट का नामो-निशान नहीं था। हमलावर बहुत संगठित थे, मानो वे जानते हों कि एक बार अपराध हो जाने के बाद क्या करना है।
- एक शातिर अपराधी का मनोविज्ञान अपराध करने के बाद भाग जाने का होता है। पुलिसकर्मी इतने दहशत में थे कि उन्होंने हत्यारों पर एक भी गोली नहीं चलाई। वे आसानी से वहां से भाग सकते थे। उनके भाग जाने से कई परेशान करने वाली थ्योरी सामने आती और सरकार कटघरे में होती। आत्मसमर्पण करके उन्होंने पुलिस के लिए काम आसान कर दिया है।
- यदि उनका मक़सद कुख्यात होना था तो हत्या और आत्मसमर्पण क्यों किया? यह सवाल इसलिए कि जब अपराध इतना संगीन है कि उन्हें आजीवन कारावास या मौत की सजा भी मिल सकती है। क्या कुख्यात होने वाला शख्स कभी ऐसा चाहेगा? ये तीनों हमलावर इतने भोले नहीं हो सकते।
- घटना में इस्तेमाल हुई पिस्तौल अत्याधुनिक है। यह तुर्की में बनी है, इसकी कीमत 6 लाख रुपये से अधिक है और भारत में यह प्रतिबंधित है। उनकी पृष्ठभूमि को देखते हुए इन तीनों के लिए ऐसी बंदूक तक आसानी से पहुँच होना बहुत मुश्किल है। साधारण अपराधी देशी पिस्तौल यानी कट्टा का उपयोग करते हैं जो कभी-कभी जाम भी हो सकती है। हथियार ऐसा इस्तेमाल किया गया कि बचने की कोई गुंजाइश न रहे।
- तीनों हमलावर तीन अलग-अलग शहरों के रहने वाले हैं। इस समय यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि उन्होंने पहले एक टीम के रूप में एक साथ काम किया हो। यह ज्ञात नहीं है कि तीनों कैसे मिले, चर्चा की और निष्कर्ष निकाला कि अतीक अहमद उनका एक समान लक्ष्य था। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस एक उद्देश्य के लिए तीनों को चुना गया था।
- तीनों आरोपी हत्यारे यह भी जानते थे कि पुलिस हिरासत में अतीक अहमद की हरकतें क्या होंगी। वे जानते थे कि दोनों को मेडिकल चेक-अप के लिए कहां, कैसे और किस समय ले जाया जाएगा और वे वहां मौजूद मीडिया से बात करेंगे। क्या उनकी कोई और मदद कर रहा था? क्या इतनी सटीक जानकारी जुटाना सिर्फ़ इन तीनों के बस की बात थी?
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