तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाने, यज्ञ-हवन आयोजित करने और मठों की यात्रा कर साधु-संतों का आशीर्वाद लेने के मामले में सभी राजनेताओं को पछाड़ते दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी भी मंदिरों की यात्रा करने के मामले में केसीआर से पीछे हैं।
मुख्यमंत्री बनने से पहले भी केसीआर ने कई धार्मिक यात्राएँ कीं और कई अनुष्ठान करवाए पर वे कभी चर्चा का विषय नहीं बने। लेकिन 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 'धर्म-कर्म' से जुड़े उनके सभी कार्य चर्चा का विषय रहे हैं।
जन कल्याण के लिए कराए यज्ञ!
मुख्यमंत्री बनने के बाद केसीआर ने साल 2015 में पहली बार आयुत चंडी महायज्ञ करवाया। कहा गया कि मुख्यमंत्री ने यह यज्ञ तेलंगाना राज्य के विकास और जनता के कल्याण के मक़सद से करवाया है। दिलचस्प बात यह है कि इस महायज्ञ में राज्यपाल नरसिम्हन के अलावा कई सरकारी अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया था। यज्ञ में आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के अलावा दूसरी पार्टियों के नेताओं ने भी हिस्सा लिया था।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर रही कि केसीआर ने प्रधानमंत्री बनने के लिए ही यज्ञ करवाए। अभी यह चर्चा ख़त्म भी नहीं हुई थी कि केसीआर ने एक और बड़े महायज्ञ के आयोजन की घोषणा कर दी।
वापस लाना चाहते हैं मंदिरों का वैभव
केसीआर ने तेलंगाना में और भी कई मंदिरों का पुनरुद्धार शुरू करवाया है। उनका कहना है कि वे प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों का वैभव वापस लाना चाहते हैं। तेलंगाना राज्य के मंदिरों के जीर्णोद्धार के अलावा केसीआर ने आंध्र के प्रमुख मंदिरों के लिए दान भी दिया है। तेलंगाना सरकार की ओर से वे तिरुमला-तिरुपति बालाजी मंदिर के वेंकटेश्वर स्वामी और विजयवाड़ा के कनकदुर्गा मंदिर की माँ को आभूषण बनवाकर भेंट कर चुके हैं।
ओवैसी को कोई परेशानी नहीं
केसीआर ने मुख्यमंत्री के तौर पर कृष्णा नदी पुष्कर यानी कृष्णा कुम्भ और गोदावरी पुष्कर का भी आयोजन भव्य तरीके से करवाया। इन सब के बीच मज़ेदार बात यह है कि मंदिर की राजनीति को लेकर बीजेपी पर लगातार हमले बोलने वाले असदुद्दीन ओवैसी केसीआर के राजनीतिक दोस्त हैं और उन्होंने केसीआर के राजनीतिक अनुष्ठानों पर कोई सवाल नहीं उठाया है।
कांग्रेस चुप, वामपंथी कर रहे विरोध
बीजेपी पर धर्म के नाम पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस भी केसीआर के मामले में सख़्त नहीं है। सिर्फ़ वामपंथी पार्टियाँ और कुछ दलित संगठन ही धार्मिक अनुष्ठानों को लेकर केसीआर की तीख़ी आलोचना कर रहे हैं। एक और बात के लिए केसीआर की आलोचना होती है। वह यह कि मुख्यमंत्री मठों की यात्रा करते हैं और साधुओं के चरणों को छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
'साष्टांग प्रणाम' को लेकर होती है आलोचना
मुख्यमंत्री होकर साधुओं को 'साष्टांग प्रणाम' करने को लेकर भी केसीआर की आलोचना हुई है। वे वैष्णव साधु चिन्न जीयर स्वामी, विशाखा शारदा पीठ के स्वामी स्वरूपानंद, स्वामी परिपूर्णानंद का लोगों के समक्ष आशीर्वाद ले चुके हैं। बहरहाल, इन आलोचनाओं से बेपरवाह केसीआर धार्मिक अनुष्ठानों के मामले में सभी राजनेताओं से काफ़ी आगे हैं।सवाल उठाने से डरते हैं विपक्षी राजनेता
मुख्यमंत्री रहते हुए भी एक धर्म विशेष से जुड़े अनुष्ठानों को करवाने के बावजूद ज़्यादातर विपक्षी नेता इसे राजनीतिक रंग देने से कतराते दिखते हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की राय में इन विपक्षी नेताओं को डर है कि राजनीतिक रंग देने पर केसीआर इससे भी राजनीतिक फ़ायदा उठा सकते हैं और यही वजह भी है कि वे धर्म के मामले में उलझना नहीं चाहते हैं।
ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि दक्षिण भारत के कई नेता धार्मिक अनुष्ठान करवाते हैं लेकिन वे इन्हें सार्वजनिक तौर पर नहीं करते, लेकिन केसीआर इस मामले में कुछ रहस्य नहीं रखते।
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