अल्पसंख्यकों की तरह टीचरों के लिए भी यह समय बुरा है। अघोषित आपातकाल का सामना उन्हें सबसे ज्यादा करना पड़ रहा है। किसी टीचर को सिर्फ इस बात पर किसी संस्था से हटा दिया जाए कि वो अपने छात्रों को सचेत करने का काम पूरी ईमानदारी से कर रहा था। किसी टीचर को इसलिए हटा दिया जाए कि वो अपने शोध पत्र में चुनाव की हकीकत पर टिप्पणी कर रहा था। चिंतक और पेशे से टीचर अपूर्वानंद की यह झकझोरती हुई टिप्पणी पढ़ेंः