हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
Unacademy एक ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म है। जहां विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ टीचर पढ़ाते हैं। छात्र अपना रजिस्ट्रेशन करवाकर यहां पर कुछ फीस देकर पढ़ते हैं। लेकिन यहां के लॉ टीचर ने जब छात्रों को लेक्चर के दौरान यह अपील कर दी, वो वायरल हो गई। जो वीडियो वायरल हुआ, उसमें सांगवान को छात्रों को उन नेताओं को वोट न देने की सलाह देते हुए सुना जा सकता है जो केवल नाम बदलने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। सांगवान ने ऐसे नेताओं के बजाय ठीकठाक पढ़े लिखे व्यक्तियों को चुनने को कहा। टीचर सांगवान के पास एल.एल.एम. की डिग्री है। सांगवान भाजपा शासित केंद्र सरकार के नवीनतम विधेयक पर चर्चा कर रहे थे। इस विधेयक का उद्देश्य ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलना है।
“
किसी ऐसे व्यक्ति को चुनें जो शिक्षित हो, जो चीजों को समझता हो। किसी ऐसे व्यक्ति को न चुनें जो केवल नाम बदलना जानता हो। अपना निर्णय ठीक से लें।
-करण सांगवान, ऑनलाइन लॉ टीचर, अनएकेडमी सोर्सः ट्विटर
सांगवान के इस वीडियो बयान को किसी ने ट्विटर (एक्स नया नाम) पर डाल दिया। इसके बाद भाजपा आईटी सेल के लोग अलग-अलग नामों से सांगवान के पीछे पड़ गए। भाजपा आईटी सेल के लोगों ने सांगवान पर शिक्षा की आड़ में राजनीतिक प्रचार-प्रसार करने का आरोप लगाया। भाजपा आईटी सेल के लोगों ने लिखा, “तो कुल मिलाकर. वह इस बात से परेशान है कि वर्तमान सरकार ने कानूनों को बदल दिया है, अधिक आधुनिक कोड जोड़े हैं और उसे सब कुछ फिर से सीखना होगा। और यही व्यक्ति बाद में चाय की मेज पर कहेगा कि भारतीय कानून और कोड अभी भी ब्रिटिश काल के हैं और सरकार उन्हें नहीं बदलती है। हालांकि लोग लॉ टीचर करण सांगवान का समर्थन करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। ऐसे तमाम लोगों ने करण सांगवान का पक्ष लेते हुए लिखा- “शिक्षित राजनेताओं को चुनने के संबंध में उन्होंने जो कुछ भी कहा वह सही और सत्य है।”
प्रोफेसर दास ने 2019 के लोकसभा चुनावों में चुनावी 'हेरफेर' की संभावना का आरोप लगाते हुए यह पेपर लिखा था। 2109 में भाजपा 2014 की तुलना में बहुत अधिक अंतर के साथ सत्ता में वापस आई थी। प्रो. सब्यसाची दास ने ईवीएम से जोड़ते हुए इसी पर सवाल उठाया था।
भाजपा के आईटी सेल के संयोजक अमित मालवीय ने कहा, “अशोक विश्वविद्यालय के सब्यसाची दास का शोध पत्र कई डेटासेट और दर्जनों चार्ट को ‘सबूत’ के रूप में पेश करता है, जिसे वो ‘महत्वपूर्ण अनियमितताएं’ और ‘चुनावी धोखाधड़ी’ कहते हैं। ये बड़े दावे और सबूत ढेर हो गए हैं? उनके हर सवाल का जवाब नहीं है…।"
जब द वायर ने रविवार शाम को उनसे यह जानने के लिए संपर्क किया कि क्या वह बात करने की स्थिति में होंगे, तो प्रो. दास ने कहा- “मैं इस समय मीडिया से बात नहीं कर रहा हूं। मैं मीडिया से बात करने से पहले अपना पेपर प्रकाशित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं।'' जब दास से स्पष्ट रूप से पूछा गया कि क्या उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि अशोक यूनिवर्सिटी की तीन फैकल्टी सदस्यों ने प्रो. दास के इस्तीफे की पुष्टि की है। लेकिन इस्तीफा स्वीकार हुआ या नहीं, यह साफ नहीं है।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें