जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ सरकार चलाने वाली हिंदू महासभा के वैचारिक संगठन आरएसएस को तब कोई परहेज नही रहा तो अब क्यों है ?आडवाणी जिन्ना की मजार पर मत्था टेके या जसवंत सिंह जिन्ना की तारीफ करें तो कोई फर्क नही पड़ता .न इन्हें कोई जिन्नावादी कहता है न नमाजवादी .पर अखिलेश यादव की टिपण्णी पर ये संदर्भ काट कर मुद्दा बनाना चाहते हैं .इतिहास की इस समझ पर ही आज की जनादेश चर्चा