यह शर्मनाक तथ्य भी पहली बार सामने आया कि जलियाँवाला बाग़ क़त्लेआम के अगले दिन, 14 अप्रैल, 1919 को अंग्रेज़ों ने वायुसेना के एक जहाज़ को उड़ाते हुए ज़बर्दस्त बमबारी की थी। जब जहाज लौटा तो सड़कों पर कोई व्यक्ति नहीं दिख रहा था।
जलियाँवाला बाग़ स्मारक के जीर्णोद्धार में मोदी सरकार ने ऐसा क्या कर दिया कि उसकी चौतरफा आलोचना की जा रही है? इसने ऐसा क्या कर दिया कि उसे शहीदों का अपमान करने वाला बताया जा रहा है?
जलियाँवाला बाग़ में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए जघन्य हत्याकांड के 102 साल हो गए। इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि भारत के राजनेताओं ने इससे क्या सीखा है और क्यों इसकी बहुलतावादी परंपरा पर ख़तरा मंडरा रहा है।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड के लिए ब्रिटिश सरकार या वहाँ की रानी ने कभी माफ़ी नहीं माँगी, पर अब उनके नज़दीक समझे जाने वाले और ब्रिटेन के सबसे बड़े पादरी आर्चबिशप ऑफ़ कैंटरबरी ने माफ़ी माँगी है।
जलियाँवाला बाग़ क़त्लेआम में 381 शहीदों में से 222 हिन्दू, 96 सिख और 63 मुसलमान थे। साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन एक साझा आंदोलन था। यह भारत के इतिहास का एक गौरवशाली सच था, लेकिन यह सब फ़ाइलों में बंद पड़ा है।
सौ साल पहले आज ही के दिन ब्रिटिश सेना ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया था। इसके 21 साल बाद उधम सिंह ने माइकल डायर को गोली मारकर इसका बदला ले लिया था।