आज कहीं आपातकाल नहीं लगा है फिर भी जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक और मौलिक अधिकार निलंबित हैं। इससे बुरा यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन अधिकारों को लागू करने वाले संवैधानिक उपायों को भी छीन लिया है।
कश्मीर और कश्मीरी आज ख़बर के विषय हैं पर विडम्बना देखिये, उन्हें अपनी ख़बर भी नहीं मिल रही। क्या ऐसे हालात ‘इमरजेंसी’ में भी थे? तब सेंसरशिप का प्रतिरोध जारी था। आज जैसा संपूर्ण (सरेंडर) नहीं था!