इंडस्ट्री में इस्तेमाल के लिए बेचे जाने वाले डीजल और रिटेल में बिकने वाले डीजल में 25 रुपये का अंतर रह गया है। यानी उद्योगों के लिए डीजल का रेट 115 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है। इसका भी असर महंगाई पर पड़ेगा।
तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और सत्तारूढ़ बीजेपी ने पेट्रोलियम उत्पादों की बेतहाशा बढ़ती कीमतों से जिस तरह पल्ला झाड़ लिया है और इसके लिए पूर्व कांग्रेसी सरकार के ऊपर ठीकरा फोड़ दिया है, उससे कई अहम सवाल खड़े होते हैं।
पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ी कीमतों के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों ने संसद में ज़ोरदार नारेबाजी की, हंगामा किया और संसद की कार्यवाही रोकनी पड़ी। ऐसा एक बार नहीं, कई बार हुआ।
क्या पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों का बढ़ना जारी रहेगा और जल्द ही यह पूरे देश में 100 रुपए प्रति लीटर से ज़्यादा हो जाएगा और उसे ही सामान्य औसत मान लिया जाएगा? क्या केंद्र सरकार इसे रोकने में सक्षम है या वह इसे रोकना ही नहीं चाहती?