रविचंद्रन अश्विन भले ही ऑफ़ स्पिनर हैं लेकिन कई मायनों में उनकी सही तुलना एक गेंदबाज़ और स्पिनर के तौर पर लेग स्पिनर अनिल कुंबले से ही हो सकती है। दक्षिण भारत से आने वाले इन दोनों खिलाड़ियों का मिज़ाज और स्वभाव काफ़ी हद तक मिलता जुलता है और अपनी अपनी टीमों के लिए ये बड़े मैच विनर साबित हुए हैं। यह सही है कि दोनों को भारत में खेलना हर विरोधी के लिए सबसे मुश्किल चुनौती रही है और करियर के क़रीब पहले एक दशक में दोनों को विदेशी ज़मीं पर तुलनात्मक लिहाज़ से कामयाब नहीं होने पर आलोचना से गुज़रना पड़ा।
कुंबले जैसी धार तो अश्विन पर भरोसा क्यों नहीं?
- खेल
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- 28 Dec, 2020

34 साल के अश्विन भारतीय क्रिकेट में अनोखे हैं। जहाँ पर हर क्रिकेटर चाहे वो मौजूदा खिलाड़ी हो या पूर्व, सत्ता का समर्थन करते हुए बातें करता, अश्विन संवेदनशील मुद्दों पर सरकार तो क्या सुप्रीम कोर्ट तक पर टिप्पणी करने से नहीं चूकते हैं। दरअसल, उनका आत्म-विश्वास अपने हुनर पर सिर्फ़ मैदान तक ही सीमित ना होकर उनकी शख्सियत का हिस्सा बन चुका है। कुंबले की ही तरह।
ऑस्ट्रेलिया से ही फिर बनेगी बात
कुंबले तो 2004 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर सिर्फ़ 3 मैचों में 24 विकेट (पूरी सीरीज़ में सबसे अधिक जबकि दूसरे सबसे कामयाब अजीत अगरकर को 16 विकेट के लिए 4 मैच खेलने पड़े थे) लेकर अपने करियर को पूरी तरह से एक नया मोड़ देने में कामयाब रहे। इसे अजीब इत्तिफ़ाक़ ही कहा जाएगा कि उस दौरे पर कुंबले से पहले मुरली कार्तिक और हरभजन सिंह प्लेइन इलेवन में खेले और इन दोनों के चोटिल होने पर ही कुंबले को एडिलेड में मौक़ा मिला था। 16 साल बाद फिर से उसी एडिलेड में अश्विन को पहला टेस्ट खेलने का मौक़ा सिर्फ़ इसलिए मिला कि इस बार बार रवींद्र जडेजा फिट नहीं थे! कुंबले की ही तरह यह ऑस्ट्रेलिया दौरा उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित होता दिख रहा है।