नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस (एनआरसी) की दहशत अब असम से बाहर भी पहुंच चुकी है। सत्ताधारी नेताओं द्वारा देश के कई राज्यों में इसे लागू करने की धमकी दी जा रही है। कुछ समय पहले मैं पश्चिम बंगाल के एक शहर में था। लोगों से बातचीत के दरमियान एक युवक ने मुझसे सवाल किया - ‘हमारे देश के बड़े नेता जब परदेस जाते हैं तो वहां बसे भारतीयों के बीच ख़ूब गरजते हैं, राजनीति और ख़ेमेबाज़ी भी करते हैं। अगर वहां भी एनआरसी जैसी ‘दोषपूर्ण और भयावह परियोजना’ का हवाला देकर कोई शासक या सियासी समूह तनाव और आतंक पैदा करने लगे तो क्या होगा?’ ऐसे सवालों को बचकाना कहकर कोई भी खारिज कर सकता है। पर हाल के वर्षों में अपने देश के कुछ दलों और नेताओं की तरफ़ से भारतीय प्रवासियों के बीच की जा रही गोलबंदी के संभावित ख़तरे पर गंभीरतापूर्वक सोचने की ज़रूरत है।