कांग्रेस के पूर्व
अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी को चार साल पुराने एक बयान पर गुजरात की सूरत सेशन
कोर्ट ने दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई है। दोषी ठहराए जाने के बाद केरल के वायनाड से सांसद के रूप में उनकी स्थिति पर
सवाल उठने लगे हैं।
राहुल को सजा सुनाए जाने के
बाद लोकसभा अध्यक्ष के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को कहा उनकी सदस्यता
के मसले पर अदालत के आदेश की कॉपी और शिकायत आने के बाद ही इस पर कोई निर्णय लिया
जाएगा।
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राहुल गांधी की संसद
सदस्यता पर फैसला किया जाना है, वह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 (1) में सूचीबद्ध है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की इस धारा में कुछ
विशिष्ट अपराधों को ही शामिल किया गया जिसके तहत किसी सदस्य की सदस्यता रद्द की जा
सकती है। इन अपराधों में दो समूहों के बीच
दुश्मनी को बढ़ावा देना, रिश्वतखोरी और
चुनाव में अनुचित प्रभाव या व्यक्तित्व को शामिल किया गया है, मानहानि से जुड़े
मामलों को इससे सूची से बाहर रखा गया है।
इसके अलावा दूसरा,
यदि सांसद को किसी अन्य अपराध के लिए दोषी
ठहराया जाता है, और उसे दो साल या
उससे अधिक की सजा सुनाई जाती है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(3) के तहत सांसद को दोषी ठहराए जाने और कम से कम
दो साल कैद की सजा सुनाए जाने पर अयोग्य ठहराया जा सकता है।
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जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा
8 (4) में यह भी प्रावधान किया
गया है कि अयोग्यता दोषसिद्धि की तारीख से "तीन महीने बीत जाने के बाद"
ही प्रभावी होती है। उस अवधि के भीतर, राहुल गांधी सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं।
2013 के लिली थॉमस बनाम भारत
संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिध्तव कानून की धारा8(4) को असंवैधानिक
करार दिया था। इसका सीधा सा मतलब है कि राहुल गांधी द्वारा केवल अपील दायर करना काफी
नहीं होगा, उन्हें को ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा के आदेश के खिलाफ ऊपरी
अदालत से ट्रायल कोर्ट से स्टे आदेश लेना होगा। गौरतलब है कि यह रोक केवल सीआरपीसी
की धारा 389 के तहत सजा का निलंबन
नहीं बल्कि दोषसिद्धि पर रोक नहीं है।
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