इंदौर सीट से आठ बार की सांसद सुमित्रा महाजन का टिकट कटने की सुगबुगाहट काफी दिनों से थी। चूंकि पार्टी आलाकमान स्पष्ट संकेत नहीं दे रहा था, लिहाज़ा ताई आशान्वित थीं कि देर-सबेर ‘प्लस 75’ वाले फ़ॉर्मूले को दरकिनार करते हुए पार्टी उन्हें ही टिकट देगी।
ख़त से ‘राजनीतिक धमाका’
ताई ने शुक्रवार को लिखे एक खत से ‘राजनीतिक धमाका’ किया। बिना किसी को संबोधित किये महज ‘प्रकाशनार्थ’ (स्पष्ट होता है कि मीडिया को लिखे गये) शब्द का उपयोग पत्र में ताई ने करते हुए कहा है, ‘भारतीय जनता पार्टी ने आज दिनांक तक इंदौर में अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। यह अनिर्णय की स्थिति क्यों है?'
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संभव है कि पार्टी को निर्णय लेने में कुछ संकोच हो रहा है। हालांकि मैंने पार्टी में वरिष्ठों से इस संदर्भ में बहुत पहले ही चर्चा की थी, निर्णय उन्हीं पर छोड़ा था। लगता है - उनके मन में अभी भी कुछ असमंजस है। इसलिये मैं यह घोषणा करती हूं कि मुझे अब लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना है। अतः पार्टी अपना निर्णय मुक्त मन से करे, निसंकोच होकर करे।’
सुमित्रा महाजन, सांसद, इंदौर
पीड़ा झलकी
ख़त के बाद ताई मीडिया से रूबरू भी हुईं। खत में लिखीं बातें दोहराईं। मीडिया से मुख़ातिब ताई के चेहरे पर पार्टी द्वारा विश्वास में लिये बिना टिकट काटकर कथित तौर पर लज्जित किये जाने का अवसाद साफ़ तौर पर दिखा। ताई अपना मर्म छिपाने का प्रयास करते हुए मीडिया के सामने ज़्यादा कुछ ना बोलीं। लेकिन इंदौर की राजनीति को बेहद क़रीब से जानने वाले मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष खांडेकर ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘अपमानित करने की बजाय ताई को विश्वास में लेकर पार्टी पहले ही फ़ैसला कर लेती तो ताई का मान रह जाता और पार्टी के रणनीतिकारों को असमंजस में नहीं रहना पड़ता।’
बहू बन कर आईं, बेटी का दर्जा पाया
महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले के चिपलूण में संघ प्रचारक पिता के यहां 12 अप्रैल 1943 में जन्मी सुमित्रा महाजन ताई 22 वर्ष की उम्र में ब्याह कर इंदौर आयीं थीं। मीसा बंदियों की मदद के चलते आरएसएस की नज़र में आईं। अवसर आया तो इंदौर की तीन नंबर विधानसभा सीट से टिकट मिला। कांग्रेस और इंदौर के धुरंधर लीडर महेश जोशी से चुनाव हार गईं। बाद में उपमहापौर चुनी गईं।
'भाई’ से ताई की अदावत
इंदौर और मध्य प्रदेश भाजपा में ख़ास मुकाम बनाने वाले कैलाश विजयवर्गीय से ताई की ज़बरस्त अदावत रही और आज भी है। इन दोनों के बीच शह और मात के किस्से भी खूब हैं। भाजपा द्वारा टिकट के लिए जमकर ‘तरसाने’ के बाद ताई को ख़ुद को ‘क्विट’ करने के पीछे भी ‘भाई’ के ‘हाथ’ को ताई के क़रीबी देख रहे हैं। हालांकि इस बारे में कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है।
दरअसल कैलाश विजयवर्गीय इंदौर लोकसभा सीट से काफ़ी समय से टिकट के दावेदारों में शुमार रहे हैं। इस बार भी उनका नाम सीट के लिये चलता रहा है।
भाजपा में ही उठ रहा था यह सवाल
मध्य प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता और इंदौर के निवासी सत्यनारायण सत्तन लंबे समय से ताई के टिकट का विरोध कर रहे थे। सत्तन ने तो यह तक घोषणा कर रखी थी कि ‘पार्टी ने ताई को टिकट दिया तो वह स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ेंगे।’ सत्तन कहते रहे हैं कि ‘पार्टी ने ताई को क्या कुछ नहीं दिया, ख़ुद सामने आकर उन्हें सीट नई पीढ़ी या दूसरे प्रत्याशी के लिये खाली कर देना चाहिये।’ ताई के ख़त से इंदौर और मध्य प्रदेश बीजेपी में खुश होने वाले नेताओं की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी बतायी जा रही है। इनमें यदि सबसे ज़्यादा कोई खुश हैं तो वह हैं सत्तन।
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