तमिलनाडु के सीएम एम.के. स्टालिन और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी विपक्षी एकता की धुरी बन सकते हैं। जल्द ही गैर बीजेपी शासित मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन दिल्ली में होगा, जिसमें बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ सीएम हिस्सा ले सकते हैं। स्टालिन ने नीट परीक्षा में तमिल और ममता बनर्जी ने आईएएस कैडर में सरकार की मनमानी का मुद्दा हाल ही में उठाया था। उधर, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के साथ ऐसी ही मुहिम में जुटे हुए हैं। स्टालिन ने आज अपने ट्वीट के जरिए काफी कुछ संकेत दिया। उन्होंने लिखा है कि संवैधानिक अतिक्रमण और गवर्नरों द्वारा सत्ता का खुलकर गलत इस्तेमाल पर बातचीत करने विपक्षी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री जल्द ही बैठक करेंगे। बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने फोन पर अपनी तमाम चिंताओं को साझा किया और बैठक बुलाने का सुझाव दिया था।
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स्टालिन ने लिखा है कि मैंने अपनी पार्टी डीएमके की ओर से राज्य की स्वायत्तता बरकरार रखने के लिए पूरी प्रतिबद्धता का भरोसा दिलाया। जल्दी ही गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन दिल्ली से बाहर होगा।बंगाल में राज्यपाल धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। दोनों के बीच कई तीखे ट्वीट का आदान-प्रदान भी हो चुका है। ताजा विवाद विधानसभा के सत्रावसान को लेकर है।
स्टालिन ने इस पर कड़ी टिप्पणी कर चुके हैं। स्टालिन ने कहा था, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल द्वारा राज्य विधानसभा सत्र को स्थगित करने का काम इतने ऊंचे पद के व्यक्ति से अपेक्षित नहीं है। यह स्थापित मानदंडों और परंपराओं के खिलाफ है।
इसके बाद राज्यपाल धनखड़ ने स्टालिन पर हमला करते हुए कहा कि उनकी टिप्पणियां बहुत तीखी और आहत करने वाली हैं और तथ्यों के मुताबिक नहीं हैं। मैंने सत्रावसान का फैसला सरकार के सुझाव पर लिया था। इस संबंध में मैंने एक पत्र भी ट्वीट किया था।
स्टालिन के कड़े तेवरस्टालिन तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि पर राज्य के नीट विरोधी विधेयक को रोकने का आरोप लगा चुके हैं। स्टालिन का कहना है कि नीट परीक्षा तमिल में भी होना चाहिए। अंग्रेजी में परीक्षा की वजह से तमिलनाडु के प्रतिभाशाली बच्चे मेडिकल एंट्रेस परीक्षा निकालने में पीछे रह जाते हैं। अब स्टालिन और तमिलनाडु के कुछ अन्य राजनीतिक दलों ने उस विधेयक को फिर से राज्यपाल को भेजने का फैसला किया है। राज्यपाल से कहा गया है कि वो इस विधेयक को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की सहमति के लिए भेजें। इससे पहले स्टालिन केंद्र सरकार के आईएएस कैडर नियम बदलन पर भी आपत्ति जता चुके हैं।
आईएएस कैडर नियमावली बदलने पर पर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी आपत्ति जता चुकी हैं। इस मुद्दे पर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को जनवरी में दो बार पत्र लिखे। ममता ने जनवरी में लिखे गए पत्र में कहा था कि इससे अफसरों में भय का माहौल बनेगा और सरकार का कामकाज प्रभावित होगा। ममता ने धमकी दी थी कि अगर मोदी सरकार ने इस फैसले पर फिर से विचार नहीं किया तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा। इस नियम के लागू होने पर केंद्र-राज्य की दूरियां भी बढ़ेंगी। इससे केंद्र-राज्य के रिश्तों पर सीधा असर पड़ेगा।
ममता की पार्टी टीएमसी काफी दिनों से राज्यपाल धनकड़ को घेर रही है। उसने विधानसभा के मौजूदा बजट सत्र में राज्यपाल के खिलाफ प्रस्ताव लाने की घोषणा की थी। टीएमसी ने राज्यपाल पर संविधान की गरिमा भंग करने का आरोप लगाया है। इससे पहले ममता बनर्जी ने
राज्यपाल को ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया था। ममता धनकड़ के उस बयान से बहुत नाराज थीं, जिसमें राज्यपाल ने बंगाल के बारे में कहा था - राज्य लोकतंत्र के लिए एक गैस चैंबर बन गया है। उन्होंने कहा था कि मैंने पीएम मोदी से कई बार लिखित अनुरोध किया कि मुझे यहां से हटा दिया जाए। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
उधर, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी खुलकर पीएम मोदी, उनकी सरकार और बीजेपी के खिलाफ हमला बोल रहे हैं। रविवार को पत्रकारों से बाचतीत में सीएम राव ने कहा कि वह मुंबई में उद्धव ठाकरे से मुलाकात करेंगे और ममता बनर्जी की भी जल्द ही हैदराबाद में उनसे मिलने की योजना है। वह गैर बीजेपी, गैर कांग्रेस गठबंधन बनाने की कोशिश में कई विपक्षी दलों से बातचीत कर रहे हैं।
चंद्रशेखर राव पीएम मोदी को अदूरदर्शी तक कह चुके हैं। उन्होंने बीजेपी पर देश को बांटने का भी आरोप लगाया और कहा कि देश के लोग बीजेपी की इस हरकत को अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे। महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे खुद विवादास्पद बयान देने से बचते रहे हैं लेकिन शिवसेना की ओर से संजय राउत इस कमी को पूरा करते रहते हैं। माना जाता है कि राउत सीएम उद्धव ठाकरे के इशारे पर ही बयान देते हैं।केरल के सीएम पी. विजनय भी केंद्र सरकार को लेकर काफी मुखर हैं। उन्होंने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के कई बयानों पर आपत्ति जताते हुए ऐतराज किया। राज्यपाल पर राज्य की शिक्षण संस्थाओं में अनावश्यक हस्तक्षेप का आरोप लग चुका है। हाल ही में योगी आदित्यनाथ के बयान पर भी विजयन ने बीजेपी को घेरा था।
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इसी तरह दिल्ली में, सीएम अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। नौबत यहां तक आई कि केंद्र ने पिछले साल एक विवादास्पद विधेयक पारित किया, जिसमें दिल्ली की चुनी हुई सरकार की तुलना में केंद्र के प्रतिनिधि यानी एलजी को ज्यादा अधिकार दिए गए।
यह कानून सुप्रीम कोर्ट के 2018 में दिए गए उस बयान के बाद आया, जिसमें उसने कहा था कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं है और वास्तविक शक्ति चुनी हुई सरकार के पास होनी चाहिए।
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