मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि वो पूर्व मुख्यमंत्री जरूर बन गए हैं, लेकिन उन्हें जनता ने खारिज नहीं किया है, पद छोड़ने के बावजूद उनके प्रति लोगों का प्यार मजबूत बना हुआ है। शिवराज का यह बयान इन अटकलों के बीच आया है कि पार्टी उन्हें कहीं न कहीं एडजस्ट करेगी। लेकिन उसमें जितनी देरी हो रही है, शिवराज का बयान उतना ही बढ़ता जा रहा है।
पुणे के एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट में एक कार्यक्रम में शुक्रवार को शिवराज ने कहा- "भले ही अब मुझे पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में संबोधित किया जाता है, लेकिन मैं एक खारिज मुख्यमंत्री नहीं हूं। कई बार मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के बाद लोगों को गालियां मिलती हैं।लेकिन, मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी जहां मैं जाता हूं, लोग मुझे 'मामा-मामा' कहकर चिल्लाते हैं। लोगों का यह प्यार ही मेरा असली खजाना है।'' बता दें कि एमपी के लोग शिवराज को प्यार से मामा कहते हैं।
एमपी में भाजपा के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे वाले शिवराज ने कहा, "मुख्यमंत्री पद से हटने का मतलब यह नहीं है कि मैं सक्रिय राजनीति छोड़ दूंगा। मैं किसी पद के लिए राजनीति में नहीं हूं, बल्कि लोगों की सेवा करने के लिए हूं।" 1990 में बुधनी से लगातार जीत हासिल करने वाले शिवराज ने कहा कि ईमानदारी से चुनाव लड़ने की वजह से यह जीत हासिल होती रही। इसी जीत ने मेरा राजनीतिक करियर बनाया।
शिवराज ने कहा- "मैं अहंकार की भाषा नहीं बोलता। मैंने 11 चुनाव जीते हैं लेकिन मैं चुनाव में अपने लिए प्रचार नहीं करता। मैं नामांकन दाखिल करने से ठीक एक दिन पहले निर्वाचन क्षेत्र में जाता हूं, जब गांव के लोग मेरे पास आते हैं पैसे और चंदा देने वालों की सूची के साथ। यदि आप ईमानदारी से चुनाव लड़ते हैं, तो लोग आपके साथ होंगे।''
शिवराज के इन बयानों में संकेत तलाशिए
डॉ. मोहन यादव के सीएम बनने के बाद, शिवराज ने कहा था, "कभी-कभी जब राजतिलक की तैयारी हो रही होती है तो 'वनवास' मिल जाता है। लेकिन जो कुछ भी होता है वह वास्तव में एक बड़े उद्देश्य के लिए होता है।" इस बयान के बाद उन्होंने भोपाल में कहा था- "ऐसे लोग भी हैं जब कोई मुख्यमंत्री नहीं रहता है तो वे अपना रंग बदल लेते हैं। लेकिन एक बार जब वो मुख्यमंत्री बन जाता है, उसके चरणों में पड़े रहते हैं। सत्ता से हटते ही उसकी तस्वीरें होर्डिंग्स से ऐसे गायब हो जाती हैं जैसे गधे के सिर से सींग।'' शिवराज भाजपा के बहुत पुराने नेताओं में हैं। उनका नाम आडवाणी पीएम के रूप में भी चला चुके हैं। उनकी भाषा भाजपा को परेशान कर रही है। एमपी चुनाव में जब भाजपा आलाकमान ने उनसे चुनाव अभियान का नेतृत्व छीना तो उसके बावजूद शिवराज सिंह चौहान शालीन बने रहे। उन्होंने किसी तरह की बगावत आदि का संकेत कभी नहीं दिया।
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