ख़राब हालात से गुजर रही कांग्रेस की मुश्किलें महाराष्ट्र में अपनी सहयोगी एनसीपी के मुखिया शरद पवार के एक ताज़ा बयान के बाद और बढ़ सकती हैं। पवार ने मंगलवार को कहा है कि देश में थर्ड फ्रंट यानी तीसरे मोर्चे की ज़रूरत है और वह इस मामले में कई पार्टियों के साथ बातचीत कर रहे हैं।
कांग्रेस के लिए यह बयान मुश्किलें बढ़ाने वाला इसलिए है क्योंकि ऐसे में जिस यूपीए की क़यादत वह कर रही है, उसका क्या होगा और डर यह है कि कहीं वह बेमतलब न हो जाए।
शरद पवार के मुताबिक़, सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी कहा है कि तीसरा मोर्चा ज़रूरी है। यह बात उन्होंने केरल कांग्रेस के पूर्व नेता पीसी चाको के एनसीपी में शामिल होने के दौरान कही। इस दौरान चाको ने जो कुछ कांग्रेस आलाकमान के लिए कहा है, वह भी पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है।
कांग्रेस के लिए अजब-गजब हालात इसलिए भी हैं कि पश्चिम बंगाल में तो वह वाम दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है लेकिन केरल में इन्हीं वाम दलों से उसकी अगुवाई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सीधी टक्कर है। बंगाल में ममता के ख़िलाफ़ लड़ने के कारण वह राजनीतिक विश्लेषकों के निशाने पर भी है।
महाराष्ट्र की महा विकास अघाडी सरकार में एनसीपी, कांग्रेस और शिव सेना शामिल हैं। शिव सेना इससे पहले यूपीए के चेयरपर्सन पद के लिए शरद पवार के नाम की खुलकर हिमायत कर चुकी है। शिव सेना सांसद संजय राउत यह तक कह चुके हैं कि कांग्रेस अब कमजोर हो चुकी है इसलिए विपक्षी दलों को साथ आने और यूपीए को मजबूत करने की ज़रूरत है।
शिव सेना ने कुछ महीने पहले कहा था कि यूपीए को देखकर ऐसा लगता है कि यह एक एनजीओ है। शिव सेना ने राहुल गांधी के नेतृत्व पर भी सवाल उठाए थे और तब महाराष्ट्र कांग्रेस ने इस पर एतराज जताया था।
शिव सेना कह चुकी है कि कांग्रेस की क्षमता सीमित है जबकि शरद पवार राष्ट्रीय स्तर पर एक ताक़तवर शख़्सियत हैं और क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल उन्हें अपना नेता मानते हैं।
किसान आंदोलन में कांग्रेस सक्रिय
हालांकि कांग्रेस ने किसान आंदोलन को मज़बूत ढंग से उठाने की कोशिश की है और राहुल गांधी और प्रियंका इसे लेकर किसानों के बीच में भी पहुंचे हैं। लेकिन कांग्रेस की मुश्किल उसके घर से ही शुरू होती है।
लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से स्थायी अध्यक्ष चुने जाने और आंतरिक चुनाव की मांग को लेकर पार्टी में जबरदस्त घमासान हो चुका है। सोनिया गांधी अस्वस्थता के बावजूद अध्यक्ष पद संभाले हुए हैं लेकिन ताज़ा हालात में पार्टी को ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो कई राज्यों की सियासी ज़मीन को तेज़ी से तो नापे ही, बीजेपी के ख़िलाफ़ डटकर लड़ता हुआ भी दिखे।
G23 गुट के नेता बने मुसीबत
उधर, G23 गुट के नेताओं ने पार्टी की अच्छी-खासी छीछालेदार कर रखी है। ये नेता खुलकर कांग्रेस आलाकमान को चुनौती देते नज़र आते हैं। कांग्रेस को पांच चुनावी राज्यों में से- असम, बंगाल, पुडुचेरी और केरल में दमदार प्रदर्शन करना होगा वरना G23 गुट के नेताओं के हमले और बढ़ जाएंगे।
दम तोड़ देगा यूपीए?
शरद पवार जिस थर्ड फ्रंट की बात कर रहे हैं, उसके बनने से कांग्रेस को नुक़सान यह होगा कि यूपीए में शामिल दल जैसे- आरजेडी, जेएमएम के तो इस फ्रंट में जाने की संभावना है ही, टीएमसी, बीजेडी, एसपी, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस और एनडीए से अलग हो चुका अकाली दल भी पवार के साथ जा सकता है और निश्चित रूप से इससे कांग्रेस की क़यादत वाला यूपीए भरभरा कर गिर जाएगा।
केसीआर की अलग क़वायद
दूसरी ओर, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी तीसरे मोर्चे के गठन की मुहिम में जुटने जा रहे हैं। सियासत में केसीआर के नाम से चर्चित राव बीजेपी के ख़िलाफ़ देश भर के विपक्षी दलों को साथ लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
केसीआर ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी बीजेपी को फिर से सत्ता में आने से रोकने के लिए थर्ड फ्रंट बनाने की कोशिश की थी लेकिन तब उन्हें सफलता नहीं मिली थी। तेलंगाना में बीजेपी की बढ़ती ताक़त को देखते हुए केसीआर को भी विपक्षी नेताओं का साथ चाहिए।
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