मजबूत संगठन और जुझारू कार्यकर्ताओं वाली समाजवादी पार्टी (एसपी) आज वैचारिक स्तर पर जूझ रही है। पार्टी के एजेंडे में अनवरत होने वाले परिवर्तन इसकी गवाही देते हैं। पार्टी में कभी बाबा साहब आंबेडकर की जयंती मनाई जाती है और कभी परशुराम की मूर्तियां लगाने की बात होती है। क्या हिन्दुत्व और बहुजनवाद का एजेंडा एक साथ चल सकता है? दूसरे शब्दों में पूछा जा सकता है, क्या बामसेफ़ और ब्राह्मणवाद एसपी में एक साथ चल सकते हैं?